कटिहार में एक ऐसा मंदिर है जहां शेरशाह सूरी ने मांगी थी बंगाल फतह की मन्नत, जानिए... ऐतिहासिक महत्व
कटिहार के बरारी हाट में भगवती का एक मंदिर है। जहां शेरशाह सूरी आए थे। उन्होंने यहां पूजा की थी। मां भगवती से बंगाल विजय का उन्होंने आशीर्वाद मांगा था। बंगाल विजय के बाद मुगल वंश के शासक ने बरारी भगवती मंदिर को पांच सौ एकड़ जमीन दी थी।
कटिहार [भूपेन्द्र सिंह]। कटिहार जिले के बरारी प्रखंड मुख्यालय में एक ऐसा मंदिर है, जहां कभी शेरशाह सूरी के कहने पर उनके सेनापति ने बंगाल फतह की मन्नत मांगी थी। साथ ही सेनापति की मन्नत पूरी होने पर शेरशाह सूरी ने इस मंदिर के नाम पांच एकड़ जमीन दान में दे दी थी। यह वाकया भगवती मंदिर, बरारी हाट से जुड़ी हुई है। यह मंदिर अभी भी क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है और दूर-दूर से लोग यहां पूजा-अर्चना को पहुंचते हैं।
जानकारी के अनुसार बंगाल पर चढ़ाई के दौरान इस होकर गुजरने के दौरान शेरशाह सूरी के कहने पर उनके सेनापति ने स्थानीय भगवती मंदिर बरारी हाट में माता के समक्ष शीष नवाकर जीत की मन्नत मांगी थी। यह मन्नत पूरी होने पर ही वे शेरशाह खॉ से शेरशाह सूरी कहलाए तथा मन्नत अनुसार स्थानीय भगवती मंदिर को पांच सौ एकड़ जमीन भी दान दी। यही नहीं उनके द्वारा निर्मित गंगा दार्जिलिंग सड़क सहित बरारी हाट और भैसदीरा अवस्थित निर्मित कुंआ अब भी उस इतिहास को ताजा कर रही है। जानकारों के अनुसार करीब 1539-40 ई में बंगला पर चढ़ाई के दौरान शेरशाह सूरी ने गंगा नदी के रास्ते काढ़ागोला गंगा घाट पहुंचकर काढ़ागोला घाट से बरारी हाट-फुलवड़िया गेड़ाबारी पुर्णिया होते हुए दार्जिलिंग के चटगांव तक सड़क का निर्माण कराया था। तभी से यह मुख्य सड़क गंगा दार्जिलिंग के नाम से प्रसिद्व है। आज भी दार्जिलिंग के चटगांव में एक पीतल के बोर्ड पर काढ़ागाेला का जिक्र है।
स्थानीय समाजसेवी सह स्वतंत्रता सेनानी स्व. नक्षत्र मालाकार के पौत्र बिमल मालाकार बताते है कि गंगा दार्जिलिंग सड़क के निर्माण के उपरांत इसी रास्ते से वे अपने पलटन के साथ बंगाल पर चढ़ाई के लिए कूच किए थे। आज भी भैसदीरा के समीप पलटन पारा के नाम से एक गांव मौजूद है। यहां उन्होंने अपने सैनिको के साथ रात्री विश्राम किया था। अल सुबह उनके हिन्दू सेनापति जब बरारी हाट स्थित भगवती मंदिर में पूजा अर्चना के लिए निकले तो शेरशाह खॉ ने अपने सेनापति को कहा था कि अगर तुम्हारे पूजा अर्चना और माता की कृपा से बंगाल पर फतह हुआ तो वे मंदिर को पांच सौ एकड़ जमीन दान में देंगे।
अंतत: बंगाल पर फतह होने के बाद वे शेरशाह खॉ से वे शेरशाह सूरी कहलाए और उस समय एक झोपड़ी में स्थापित माता के मंदिर के नाम से पांच सौ एकड़ जमीन भी दान दे दी। बाद में अंग्रेजी शासनकाल में मंदिर की कांफी जमीन को कब्जा कर लिया गया। बाद में काफी जमीन दरभंगा महाराज के नाम कर दी गई। वर्तमान में भी मंदिर के नाम काफी जमीन है। इसमें भगवती मंदिर महाविद्यालय भी संचालित है। साथ ही शेष जमीन में हाट बजार सहित पट्टे पर देकर मंदिर का विकास किया जा रहा है।
यहां बता दे कि 1962 में चीन से युद्ध् के दौरान भी गंगा नदी के रास्ते शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित गंगा दार्जिलिंग सड़क से ही भारतीय सेना की बड़ी टुकड़ी सरहद तक पहुंची थी।