वस्त्र उद्योग संकट में : साडिय़ां व दुपट्टे बनवाने के बाद लेने को तैयार नहीं महाजन
वस्त्र उद्योग संकट में भागलपुर के 80 हजार हैंडलूम व पावरलूम से जुड़े बुनकर और श्रमिकों के साथ-साथ 160 से अधिक थोक व्यापारियों परेशानी में हैं।
भागलपुर, जेएनएन। लॉकडाउन खुला, पर लूमों से धूल की परतें अब तक नहीं हटी हैं। सिल्क सिटी में कपड़ा उत्पादन ठप है। साडिय़ां और दुपट्टे बनकर तैयार हैं, महाजन लेने को तैयार नहीं। भागलपुर के 80 हजार हैंडलूम व पावरलूम से जुड़े बुनकर और श्रमिकों के साथ-साथ 160 से अधिक थोक व्यापारियों परेशानी में हैं। अनलॉक-1 में भी कपड़ों के बाजार अभी पूरी तरह से खुले नहीं हैं। विभिन्न राज्यों के कपड़ा व्यापारी भी बकाया राशि का भुगतान नहीं कर रहे हैं। बुनकर अगर दबाव बनाने का प्रयास करते भी हैं तो उन्हें माल वापस भेज देने की धमकी मिल रही है।
चार माह पहले चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरू, आदि शहरों से लिलेन व सूती की साड़ी व दुपट्टे का काफी आर्डर मिला था। किसी पावरलूम संचालक ने पांच हजार तो किसी ने 10 हजार दुपट्टा तैयार किया। बुनकर ऐनुल ने सिर्फ तीन हजार दुपट्टा तैयार किया, लेकिन महाजन ने लेने से इन्कार कर दिया। इनका पारिश्रमिक भी देने को तैयार नहीं है। वहीं चंपानगर क्षेत्र में दो लाख पीस से अधिक सूती व लिलेन साडिय़ां तैयार हैं। कपड़ा व्यवसायी सरवर ने बताया कि करीब 10 लाख रुपये का तैयार माल अब गोदाम में धूल फांक रहा है।
ट्रांसपोर्ट सेवा बहाल होने का इंतजार
विदेशी बाजारों में यहां के कपड़े की काफी डिमांड है। लेकिन हवाई सेवा शुरू नहीं होने की वजह से कपड़े की आपूर्ति बाधित हुई है। रेल सेवाओं की वजह से दिल्ली, मुंबई व दक्षिण भारत के विभिन्न शहरों में तैयार माल भेजना मुश्किल हो गया है।
बुनकरों ने सरकार से की मांग
- कच्चा माल उपलब्ध कराया जाए।
- कच्चे माल के लिए सरकार पूंजी उपलब्ध कराए।
- तैयार उत्पाद के लिए बाजार मिले।
- छह माह की अवधि तक का बिजली बिल माफ हो।
- निगम के वाणिज्य कर से मुक्त रखा जाए।
- पीएम मुद्रा योजना से बुनकरों को पांच लाख रुपये का ऋण मिले।
- शहर में सूत बैंक की स्थापना की जाए।
- चार फीसद ब्याज दर पर बुनकरों को ऋण मिले।
- भागलपुरी सिल्क के लिए सभी राज्यों में आउटलेट हो।
लॉकडाउन के समय से ही गोदाम में तैयार कपड़ा रखा हुआ है। आर्डर देकर भी दक्षिण भारत के महाजन माल लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में पूंजी फंस गई और बुनकरों को मजदूरी देने को पैसे नहीं है। रोजगार डूब गया, इससे उबर पाना मुश्किल है। - गुलाम सरवर, कपड़ा व्यवसायी
लॉकडाउन से ही पावरलूम बंद पड़े हंै। दिल्ली से तीन हजार पीस दुपट्टा का आर्डर मिला, लेकिन अब माल लेने को तैयार नहीं है। पूरी पूंजी फंस गई। अब तो जीविका चलाने का भी संकट है, क्योंकि कहीं से आर्डर तक नहीं मिल रहा। - हाजी ऐनुल, बुनकर
सिल्क उद्योग को बड़ा झटका लगा है। इससे उबरना मुश्किल है। नया आर्डर नहीं दे रहे। जब रोजगार शुरू होगा, तभी बुनकरों को पैसा मिलेगा। अब सरकार को लॉकडाउन अवधि का बिजली बिल माफ कर बुनकरों को ऋण उपलब्ध कराना होगा, क्योंकि बुनकरों की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है। - अयाज अंसारी, सचिव, बुनकर संघर्ष समिति