विकास को तरस रहा शेर-ए-बिहार बाबू सियाराम का पैतृक गांव
-स्वतंत्रता सेनानी सियाराम बाबू की गाथा कह गौरवान्वित होते हैं प्रखंडवासी
-स्वतंत्रता सेनानी सियाराम बाबू की गाथा कह गौरवान्वित होते हैं प्रखंडवासी आनंद राज
सुल्तानगंज हिदुस्तान से लेकर ब्रिटेन तक चर्चित रहे स्वतंत्रता सेनानी बाबू सियाराम सिंह की कुर्बानी को भले ही सरकार भूल गई हो लेकिन प्रखंड में उनकी कुर्बानी को आज भी याद किया जाता है। तिलकपुर सहित आसपास के गांवों के दिलों में आज भी उनके प्रति सम्मान और देश प्रेम की भावना उतनी ही है जितनी कि आजादी के पूर्व हुआ करती थी। लोग उनकी चर्चाएं कर अघाते नहीं हैं।
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-जिले के अंदर अंग्रेजी हुकूमत की नाक में कर रखा था दम
सियारामबाबू ने देश को आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत को परेशान कर रखा था। स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन, नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन सहित कई आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 1930-1931 के दरम्यान वह कई बार जेल भी गए लेकिन उनका जुनून कम नहीं हुआ और अपना आंदोलन जारी रखा। जिला क्षेत्र के सबौर से शुभारंभ किए गए नमक सत्याग्रह आंदोलन के बाद कई स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर अपनी अहम भूमिका निभाई। 1940 में सियाराम बाबू डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के उपाध्यक्ष चुने गए। यह पद उनके जुनून में बाधक बन रहा था। इससे उन्होंने कुछ दिन में पद से इस्तीफा दे दिया। -सुल्तानगंज पर बारूद से भरी ट्रेन को सहयोगियों संग लूटा आजादी के पांच साल पहले 15 अगस्त 1942 को सुल्तानगंज स्टेशन पर खड़ी गोला-बारूद से भरी ट्रेन अपने सहयोगियों संग सियाराम बाबू ने लूटना शुरू कर दी। इसमें गोलियां चलने लगीं तो उनके कई साथी बलिदान हो गए। लेकिन किस्मत के धनी रहे सियाराम बाबू वहां से बच निकले और स्टेशन के समीप गड्ढे में जलकुंभी में हफ्तेभर से ज्यादा छिपे रहे। वहां से निकलने के बाद बसंतपुर गांव में करीब 10 दिन तक भूखे-प्यासे भूसे के ढेर में छिपे रहे। -तीन दर्जन से अधिक स्वतंत्रता सेनानी देने वाले गांव की नहीं लेता कोई सुध देश को आजादी दिलाने में तिलकपुर गांव के तीन दर्जन से अधिक लोगों ने सियाराम सिंह के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था। इसके बावजूद वीर सपूत के पैतृक गांव तिलकपुर को आदर्श गांव तक का दर्जा नहीं मिल पाया है। पूर्वी बिहार के दूसरे वीर कुंवर सिंह के नाम से प्रसिद्ध सियाराम सिंह के घर जाने वाली पीसीसी सड़क की हाल खस्ता हो गई है। सरकार ने उनकी जन्मभूमि तिलकपुर गांव को आदर्श गांव बनाने की घोषणा की थी। वह भी सपना बी रह गया।
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-नहीं हो पाया सियाराम बाबू का सपना पूरा आज सियाराम बाबू की वीर गाथाओं को याद करके लोग अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। लेकिन आज ही सियाराम बाबू का सपना साकार नहीं हो पाया। 18 फरवरी 2009 को सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीर सपूतों का गांव जाने वाले रास्ते पर बाबू सियाराम सिंह प्रवेश द्वार का शिलान्यास किया था लेकिन आज रखरखाव के अभाव में प्रवेश द्वार जर्जर हो गया है। इसे देखने वाला कोई नहीं है। साथ ही सियाराम बाबू के नाम से अकबरनगर स्टेशन का नामकरण का सपना भी अधूरा रह गया।
है।
(साभार : सियाराम बाबू के 84 वर्षीय सुपुत्र राजेंद्र प्रसाद सिंह)