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पुलिस ने खेला अजब-गजब का खेल; केस में लगा दी वह धारा... जिसका अस्तित्व ही नहीं

पुलिस ने खेला अजब-गजब का खेल बिहार पुलिस हमेशा कुछ नए कारनामे के लिए चर्चा में रहते हैं। पुलिस ने उस धारा में एक मुकदमा दर्ज किया है जिसका कोई असित्‍व ही नहीं है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 14 Jun 2020 09:46 AM (IST)Updated: Sun, 14 Jun 2020 09:46 AM (IST)
पुलिस ने खेला अजब-गजब का खेल; केस में लगा दी वह धारा... जिसका अस्तित्व ही नहीं
पुलिस ने खेला अजब-गजब का खेल; केस में लगा दी वह धारा... जिसका अस्तित्व ही नहीं

भागलपुर [कौशल किशोर मिश्र]। लोकसभा चुनाव-2019 में जब आदर्श आचार संहिता का पालन कराने में जिला प्रशासन सतर्क था, तब नगर कोतवाल ने अजीबो-गरीब रपट दर्ज की। जिस कानून का सूबे में अस्तित्व ही नहीं उस कानून में कोतवाल ने न सिर्फ केस दर्ज किया बल्कि एक काल्पनिक धारा भी बैठा दी। दरअसल उस कानून का आज तक बिहार में अस्तित्व है ही नहीं। ऐसा अजब-गजब कोतवाली थाने में हुआ है। 29 मार्च 2019 को कोतवाली थाने में जगदीशपुर के राजस्व कर्मचारी सुबोध कुमार तिवारी के लिखित बयान पर रपट दर्ज हुई थी।

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तत्कालीन कोतवाली थानाध्यक्ष इंस्पेक्टर केदार नाथ सिंह ने तब आवेदन का मजमून पढ़ा भी नहीं और बिहार प्रीवेंशन आफ डैमेज टू प्रापर्टी एक्ट 1985 की धारा 3 में केस दर्ज कर लिया। इस कानून का अस्तित्व ही नहीं है। थानाध्यक्ष ने तफ्तीशकर्ता भी नियुक्त कर अपना काम खत्म कर लिया। मामला सूजागंज के टोडरमल लेन में सरकारी पोल पर एक ड्रायक्लीनर्स का बैनर टंगा हुआ जब्ती का था। तफ्तीश शुरू हुई। अनुसंधानकर्ता ने केस को दर्ज किए गए कानून की धारा को सत्य बताया। केस की फाइल इंस्पेक्टर, डीएसपी, एसएसपी की नजरों से होते हुए आरोप पत्र की तैयारी तक पहुंची। सारे पुलिस पदाधिकारियों ने केस को सत्य पाया और न्यायालय में आरोप पत्र भी दाखिल हो गया। अब न्यायालय की संज्ञान में मामला पहुंच गया है। मामले में न्यायालय का जल्द ही बड़ा कदम सामने आ सकता है।

रमाकांत समेत अन्य पर दर्ज हुई थी आदर्श आचार संहिता का केस

लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर लगे आदर्श आचार संहिता में कोतवाली थाने में दर्ज केस में रामसर निवासी रमाकांत रजक समेत अन्य चार लोगों को आरोपित बनाया गया था। कोतवाली थाने में तैनात तफ्तीशकर्ता जयवीर सिंह ने आरोपितों को थाने में उपस्थिति के लिए जो नोटिस जारी किया था उस नोटिस में भी उसी कानून और धारा का उल्लेख था जिसका अस्तित्व ही सूबे में नहीं है।

दर्ज प्राथमिकी में जिस एक्ट का उल्लेख है, उसका सूबे में अस्तित्व ही नहीं है। बिहार प्रीवेंशन आफ डैमेज टू प्रापर्टी एक्ट 1985 में कोई कानून ही नहीं बना। - अजय कुमार सिन्हा, वरीय अधिवक्ता, भागलपुर।


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