भागलपुर श्मशान घाट : दाह संस्कार के दौरान मनमाना राशि नहीं वसूलेंगे घाट राजा, जानिए और क्या है हुआ निर्णय
भागलपुर श्मशान घाट घाट राजा को मिली संजीव की संजीवनी। घाट राजा के बीच बनी सहमति मुखाग्नि के बदले मनमाना राशि नहीं वसूलने का लिया संकल्प। एक-दो बैठक के बाद नगर आयुक्त से मिलेंगे बहिष्कृत हितकारी संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष।
जागरण संवाददाता, भागलपुर। भागलपुर श्मशान घाट : बरारी श्मशान घाट पर शवों के दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों को परेशानी नहीं होगी। घाट राजा की मनमानी पर लगाम लगेगा। इसके लिए संजीव कुमार ने मंगलवार को घाट राजा के साथ बैठक की। काफी देर तक चली बैठक के उपरांत संजीव की संजीवनी का असर घाट राजा में देखने को मिला। इस दौरान सभी घाट राजा ने संकल्प लिया कि स्वेच्छा से जो मिलेगा वो कबूल करेंगे। साथ प्रशासन की नीति से भी दूर रहेंगे।
संजीव ने कहा कि एक-दो राउंड की बैठक के बाद नगर आयुक्त से भी मिलेंगे। साथ ही उनसे घाट की रसीद नहीं काटे जाने की भी मांग की जाएगी। बैठक में संजीव ने कहा कि घाट राज की मनमानी नहीं बल्कि उनकी मजबूरी है। समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े मल्लिक के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। शिक्षा दर भी काफी कम हैं। इन्हें स्कूल तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हुई। जबकि मल्लिक परिवार समाज के अभिन्न अंग हैं। भागलपुर की जो छवि खराब हुई है। उसमें परिवर्तन देखने को मिलेगा। लोगों को घाट पर परेशान नहीं किया जाएगा, इसका संकल्प लिया गया है। सुलतानगंज, खगडिय़ा व सहरसा में लोगों के इच्छा के अनुसार मुखाग्नि की राशि ली जाती है। यहां भी घाट पर निगम ने जो दर निर्धारित किया है, उस पचड़े में घाट राजा नहीं पड़ेंगे। वे अब बिल्कुल मोलजोल नहीं करेंगे। सैनिक व शहीद से एक पैसा भी नहीं लेंगे। सरकारी सेवा में योगदान देने वालों से भी राशि नहीं ली जाएगी, जो स्वेच्छा से मिलेगा उसे स्वीकार कर लेंगे।
कौन हैं संजीव :
संजीव अभी बहिस्कृत हितकारी संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वर्ष 2012 में वो अमीर खान के सत्यमेव जयते के शो में शामिल हुए थे। 2019 में केबीसी शामिल हुए और इसी वर्ष यूनाइटेड नेशन द्वारा दिल्ली में क्रमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्हें उपराष्ट्रपति से अवार्ड मिल चुका है। संजीव ने समाज में जाति व्यवस्था, डोम समुदाय, छुआछूत आदि पर जब अध्ययन शुरू किया तब समाज की बहुत ही भद्दी तस्वीर उनके सामने आई। इस तस्वीर को देखकर उनके मन में उथल-पुथल मच गयी। वर्ष 2006 में अपना अच्छा-खासा भविष्य दिल्ली में छोड़, समुदाय के लिए कुछ करने के ठोस इरादे से वे हमेशा के लिए अपने गांव खगडिय़ा लौट आए। फिर उपेक्षित समुदाय की बस्ती में बच्चों को शिक्षा से से जोडऩे के लिए चलो चलें स्कूल अभियान शुरू किया। भागलपुर में भी अब इसकी शुरुआत की जाएगी।