सूबे का पहला आर्ट कॉलेज, अब डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स में सिमट गया, संस्थापक प्राचार्य थे बंकिमचंद्र
भागलपुर यह राज्य का पहला आर्ट कॉलेज है जो विश्वविद्यालय से जुड़ा था। 1954 में बंकिमचंद्र बनर्जी बने संस्थापक प्राचार्य थे। लेकिन यह उपेक्षा का शिकार है।
भागलपुर, जेएनएन। भले ही आज कलाकेंद्र को उपेक्षित हो गया है। इसकी ख्याति सिमट रही है। पर, यह राज्य का पहला आर्ट कॉलेज है जो विश्वविद्यालय से जुड़ा था। यहां के बाद ही पटना और दूसरी जगह कॉलेज की स्थापना हुई। कला केंद्र की स्थापना सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की तहत हुई है। शुरुआत में कलाकेंद्र बिहार विश्विद्यालय से जुड़ा था। बाद में भागलपुर में विवि बनने के बाद इसे टीएमबीयू से संबद्ध कर दिया गया। विवि की ओर से वर्ष 1954 में बंकिमचंद्र बनर्जी को संस्थापक प्राचार्य बनाया गया था। टीएमबीयू ने इन्हें फाइन आर्ट संकाय का डीन भी बनाया था। धीरे-धीरे कलाकेंद्र की पहचान एक आर्ट कॉलेज के रूप में हो गई। कुछ वर्ष बाद तत्कालीन बिहार के शिक्षा मंत्री कुमुद रंजन झा ने कला केंद्र को डिग्री स्तर के लिए संबंधन दिया था। बाद में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट में सीमित रह गया।
डिग्री कॉलेज बनाने की मांग कर रहे छात्र
यहां कला और शिल्प की पढ़ाई करने वाले छात्र कलाकेंद्र को लगातार डिग्री कॉलेज बनाने और डिप्लोमा को अद्यतन कर पंचवर्षीय बनाने की मांग कर रहे हैं। राजभवन ने डिग्री के सम्बंधन के लिए जमीन आदि का मानक निर्धारित किया है। फिलहाल कला केंद्र के पास जमीन उपलब्ध नहीं है।
फाइन आर्ट में भविष्य
फाइन आर्ट में रोजगार के कई अवसर हैं। बताया कि कलाकेंद्र में स्थापित मंच संस्थान के कार्यक्रमों के लिए है। यह सार्वजनिक ऑडिटोरियम है। कलाकेंद्र को बचाने और बढ़ाने का मतलब है कॉलेज को बचाना। अभी लॉकडाउन की वजह से यहां पढ़ाई से लेकर कला तक की गतिविधियां बंद है। कलाकार रिहर्सल करने भी नहीं आ रहे हैं। इस कारण कलाकारों का भविष्य भी अंधेरे में दिख रहा है। कुछ कलाकार घर पर ही ऑनलाइन रिहर्सल कर रहे हैं।
जानकारों की मानें कलाकेंद्र पूरी तरह राजनीति का शिकार हो गया है। सितार वादन प्रशिक्षण बंद कर दिया गया है। ऐसे में सितार वादन के छात्र अब यूपी और पंजाब में नाम लिखा रहे हैं। सत्र 2020-21 के लिए कलाकेंद्र 15 सितार वादन ने वहां से कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। सितार वादन गुरु प्रवीर राय अपने घर पर सभी को ट्रेनिंग दे रहे हैं।