जैविक कतरनी की फसल का मूल्यांकन करने पहुंची बीएयू की टीम
जैविक कतरनी धान के उत्पादन के लिए जगदीशपुर में किसान की आधा एकड़ जमीन पर प्रयोग किया गया है। कतरनी की खुशबू वापस करने के लिए रिसर्च किया जा रहा। जैविक कररनी धान की फसल को देखने बीएयू की टीम वहां पहुंची।
भागलपुर, जेएनएन। जैविक कतरनी की फसल देखने बीएयू के विज्ञानियों की टीम जगदीशपुर पहुंची। वहां किसान राजशेखर के खेत में लगी फसल को टीम ने देखा और सफलता का मूल्यांकन किया।
जीआइ प्राप्त भागलपुर के कतरनी धान में फिर पुरानी सुगंध लाने और उसे ज्यादा गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए विज्ञानी रिसर्च कर रहे हैं। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाइ) से वित्त पोषित जगदीशपुर और बांका में किसानों के खेत और सबौर और बांका केवीके के प्रक्षेत्र सहित कुल चार जगहों पर जैविक कतरनी की फसल लगाई गई है। फसलों का सफलतापूर्वक मुल्यांकन किया जा रहा है।
फसल तैयार होने के बाद बीएयू में यंत्र द्वारा उसकी सुगंध की गुणवत्ता को परखा जाएगा। फिर यह सिलसिला तीन वर्षों तक लगातार चलेगा।
बताया गया कि लोगों की शिकायत रहती है कि कतरनी में पुरानी सुगंध नहीं आ रही है। किसान पहले कम से कम उर्वरक का उपयोग कीटनाशक आदि नहीं डालकर कतरनी उत्पादित करते थे। विज्ञानियों ने किसानों की इसी थीम पर काम करते हुए जैविक खेती से कतरनी धान उत्पादन कर रहे हैं, ताकि संभव हो तो कतरनी में पुरानी सुगंध वापस आ जाय। कतरनी उत्पादन होने वाली विभिन्न जगहों पर फसल लगाकर तीन वर्षों तक रिसर्च किया जाएगा। इससे मिल रही सफलता से बीएयू के विज्ञानी उत्साहित हैं। जैविक उत्पादन से सुगंध के अलावा अन्य गुणवत्ता पर भी अध्ययन किया जा रहा है।