पुरानी कतरनी अब नए कलेवर में; लागत भी कम... उत्पादन भी अधिक Bhagalpur News
पहले कतरनी धान की फसल 155 दिनों में तैयार होती थी नई किस्म 135 दिनों में ही तैयार हो जाएगी। उत्पादन भी 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की जगह 45 क्विंटल हो जाएगा।
भागलपुर [ललन तिवारी]। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर ने भागलपुर की खास कतरनी की नई किस्म ईजाद की है। इसके पौधे बौने होंगे। पानी की जरूरत भी कम होगी। लागत कम और उत्पादन अधिक होगा।
पहले जहां कतरनी धान की फसल 155 दिनों में तैयार होती थी, नई किस्म 135 दिनों में ही तैयार हो जाएगी। उत्पादन भी 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की जगह 45 क्विंटल हो जाएगा। खुशबू और गुणवत्ता और बेहतर हो जाएगी।
भागलपुर में चानन और चंपा नदी के किनारे कतरनी धान की खेती होती थी। नदी के सूख जाने के बाद धीरे धीरे कतरनी धान की उपज भी समाप्त हो गई, जबकि बिहार सरकार ने कतरनी धान की जीआई टैगिंग कराई है। एकाएक कतरनी की उपज घटने के बाद बीएयू ने नई किस्म इजाद की। इस किस्म में खास तौर से पानी की जरूरत कम होगी। पहले कतरनी का पौधा 160 सेमी का होता था। ये खेत में गिर जाते थे। नई किस्म में पौधा 110 सेमी का होगा। इसलिए इसके गिरने की संभावना कम होगी।
तो महक उठेगी कतरनी
पौधा प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभाग के युवा विज्ञानी डॉ. मंकेश कहते हैं कि इस बार किसानों को अपने खेतों में बोआई करने के लिए नई कतरनी के बीज उपलब्ध कराए जाएंगे। यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो भागलपुर और आसपास का इलाका एक बार फिर कतरनी की खुशबू से महक उठेगा।
यहां होती है खेती
प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आरके सोहाने बताते हैं कि कतरनी धान की खेती भागलपुर में चार सौ एकड़, बांका में तीन सौ एकड़ और मुंगेर में एक सौ एकड़ में खेती होती है। उत्पादन क्षमता कम होने की वजह से किसानों का रुझान इससे कम हो गया था। अब इस नई किस्म की जानकारी देकर किसानों को इसके प्रति जागरूक किया जाएगा।
भागलपुर की पहचान कतरनी की नई किस्म किसानों के लिए फायदेमंद रहेगी। बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जा सकेगी। देश के बाजारों में इसकी धमक होगी। विश्वविद्यालय इसको लेकर लगातार प्रयास कर रहा है। - डॉ. अजय कुमार सिंह कुलपति बीएयू सबौर