बांका में परशुराम दल के सेनानियों ने अंग्रेजों के नाक में कर रखा था दम, इस तरह 1942 के आंदोलन में मचाई थी सबसे अधिक तबाही
1942 के आंदोलन में बांका का अहम योगदान रहा था। जमदाहा से अमरपुर तक थाना डाकघर आदि को आंदोलकारियों ने निशाना बनाया था। क्रांतिकारियों का बड़ा दल झारखंड से लेकर भागलपुर गंगा के किनारे तक पूरी तरह सक्रिय था।
जागरण संवाददाता, बांका। आजादी के आंदोलन में परशुराम दल के सेनानियों ने अंग्रेजों से खूब लोहा लिया है। बांका में सबसे बड़ी तबाही सन 42 के भारत छोड़ो आंदोलन में मचाई गई थी। जमदाहा के समीप बसमाता निवासी परशुराम सिंह की अगुवाई में क्रांतिकारियों का बड़ा दल झारखंड से लेकर भागलपुर गंगा के किनारे तक सक्रिय था।
महात्मा गांधी के आह्वान पर सन 42 में इन सेनानियों ने अंग्रेज सैनिकों के नाक में दम कर रखा था। गांधी के आह्वान पर परशुराम दल से जुड़े महेंद्र गोप, शाही बंधू, सिरी गोप, दरबारी टुडू, भुवनेश्वर मिश्र की अगुवाई में अलग-अलग क्रांतिकारी दस्ता सक्रिय हो गया था। इस आंदोलन में जमदाहा डाकबंगला से लेकर अमरपुर थाना तक को क्रांतिकारियों को अपना निशाना बना लिया था। क्रांतिकारियों ने तब सौ से अधिक पुल तोड़कर अंग्रेजों को खुली चुनौती दे डाली थी। क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम देकर कटोरिया और बौंसी सीमा पर मतवाला पहाड़ को अपने छुपने का ठिकाना बनाए हुए थे। 42 के आंदोलन में बांका में तबाही का मंजर ब्रिटिश संसद तक में गूंज गई थी। भागलपुर का तात्कालीन कलक्टर परशुराम सिंह और महेंद्र गोप का नाम सुनते ही आग बबूला हो जाते थे।
परशुराम सिंह के घर को ही बना दिया पुलिस कैंप
इस आंदोलन की गूंज के दहले अंग्रेजी हुकूमत ने बसमाता में परशुराम सिंह के घर पर ही पुलिस कैंप बना दिया। कहा जाता है कि तब अंग्रेज सेना का हेलीकॉप्टर भी लगातार मतवाला पहाड़ के चारों ओर कई दिनों तक मंडराता रहा। अंग्रेज की सक्रिय खूफिया टीम ने स्थानीय लोगों को मिलाकर परशुराम सिंह को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद महेंद्र गोप भी बीमारी की अवस्था में गिरफ्तार कर लिए गए। कचनसा के तीनों शाही बंधु की गिरफ्तारी हो गई। इसमें महेंद्र गोप को फांसी पर लटका दिया गया। शाही बंधु भी फंसी पर लटका दिए गए।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बांका के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। परशुराम दल भागलपुर जिला भर में सक्रिय था। आंदोलन में सरकारी नुकसान की आवाज तब ब्रिटिश संसद में गूंजी थी। महेंद्र गोप और परशुराम दल के दो दर्जन सक्रिय क्रांतिकारियों ने इसे अंजाम दिया था। इसी आंदोलन बांका खड़हरा के सतीश प्रसाद झा पटना सचिवालय में तिरंगा फहराने के दौरान गोली के शिकार बन शहीद हो गए।
डा. रविशंकर चौधरी,इतिहास प्राध्यापक, टीएनबी कॉलेज