यहां के केला किसानों को सरकारी मदद की आस, हर साल बाढ़ में डूब जाती है फसल
खगडिय़ा के केला किसानों को हर साल बाढ़ आंधी-तूफान की मार झेलनी पड़ती है। इस बार बाढ़ के कारण सबसे अधिक नुकसान हुआ। फसल क्षतिपूर्ति नहीं मिल पाती है। किसान अभी भी बाहरी व्यवसायी के भरोसे हैं। स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध नहीं है।
खगडिय़ा, जेएनएन। खगडिय़ा जिला केला उत्पादन में खास स्थान रखता है। यहां का परबत्ता प्रखंड केला उत्पादन में अब्बल माना जाता है। यहां आजादी के बाद से केला की खेती आरंभ हुई। आज तीन हजार एकड़ में केले की खेती होती है। इस खेती की बदौलत यहां के किसान समृद्ध हुए। झोपड़ी में रहने वाले किसान पक्के मकान में रह रहे हैं। लेकिन उनकी समस्याएं भी हैं।
केला की फसल बाढ़ में डूब जाती है। आंधी-तूफान में नष्ट होती है। फसल क्षतिपूर्ति नहीं मिल पाती है। किसान अभी भी बाहरी व्यवसायी के भरोसे हैं। स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध नहीं है। जिससे केला क्रय-विक्रय में दलालों की चलती है।केला की खेती को प्रोत्साहन और बाजार मिल जाए, तो यहां के किसानों की समृद्धि की राह और आसान होगी। यह बड़ा मुद्दा है।
इस साल केले के किसानों को काफी नुकसान
करना के किसान कुमोद ङ्क्षसह, अमित कुमार, कुल्हडिय़ा के बिशो यादव ने कहा कि इस वर्ष केला किसानों को काफी नुकसान हुआ है। लॉकडाउन के कारण सावन- भादो में बाहर केले भेज नहीं पाए। यह मुख्य सीजन होता है। स्थानीय स्तर पर दाम नहीं मिला। खपत भी स्थानीय स्तर पर कम है। लॉकडाउन के कारण कांवरियों की आवाजाही नहीं हुई। पहले सावन-भादो में अगुवानी होकर हजारों कांवरिये गुजरते थे। वे अगुवानी गंगा घाट पारकर सुल्तानगंज पहुंचते थे और वहां से जल भरकर वैद्यनाथधाम जाते थे।इससे केला की काफी खपत होती थी। लेकिन लॉकडाउन ने किसानों, लोकल व्यवसायियों की कमर तोड़ दी।
केला किसानों की नहीं है कोई सुनने वाला
केला किसान खजरैठा के श्याम नंदन चौधरी और नयागांव के कृष्णानंद राय ने कहा कि किसानों की सुनने वाला कोई नहीं है। अगर इस ओर हाकिम और नेताजी ध्यान दें, तो परबत्ता परबत्ता की समृद्धि में चार चांद लग जाएगा। यहां के केला किसान वर्षों से विभिन्न तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।