बांस लगाएं, मोबाइल रेडिएशन को दूर भगाएं, लाभ भी इतना... नहीं होगी आर्थिक तंगी
तिमांविवि ने बांस की खेती को बढ़ावा दिया है। यह पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है। किसानों को भी बांस की खेती से ज्यादा मुनाफा होगा।
भागलपुर [अमरेंद्र कुमार तिवारी]। बांस की खेती यानी आम के आम गुठलियों के दाम। यह मुहावरा इसकी खेती पर फिट बैठता है। जैसे-जैसे राज्य में इसकी खेती बढ़ेगी। किसानों की आय दोगुनी होगी और मोबाइल टावर का दुष्प्रभाव भी कम होगा। बांस में विकिरण (रेडिएशन) को सोखने की अद्भुत क्षमता है, इसलिए यह मोबाइल टॉवरों के दुष्प्रभाव को रोकने में काफी मददगार साबित हो सकता है। इसकी पुष्टि टीएनबी कॉलेज वनस्पति विज्ञान विभाग के वरीय प्राध्यापक सह बांस टिश्यू कलच्यर के प्रधान अन्वेषक डॉ. अजय कुमार चौधरी ने भी की है। उन्होंने कहा कि यह सबसे अधिक कार्वनडाइऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण को बेहतर बनाता है। उसे कार्बनिक पदार्थ में भी परिवर्तित करता है जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाता है। किसानों के लिए बांस अक्षय हरा सोना से कम नहीं है। एक बांस को काटते ही बिट्टे में अनेक छोटे-छोटे पौधे निकल आते हैं। यानी इसकी एक बार खेती शुरू कर लेने के बाद आगे कम से कम लागत पर यह अत्यधिक लाभकारी खेती है। जो न सिर्फ किसानों को आॢथक समृद्धि प्रदान करता है बल्कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुद्ध प्राण वायु भी वायुमंडल में उपलब्ध कराता है।
24 घंटे रेडिएशन के साए में लोग
वैज्ञानिकों की माने तो जो लोग लंबे समय से स्थापित मोबाइल टावर के 350 मीटर के दायरे में रहते हैं, उन्हें कैंसर होने की आशंका चार गुना बढ़ जाती है। 2004 में जर्मन शोधकर्ताओं के अनुसार मोबाइल टावरों के 400 मीटर के दायरे में एक दशक से रह रहे लोगों में अन्य लोगों के मुकाबले कैंसर होने का अनुपात ज्यादा पाया जाता है।
मोबाइल से ज्यादा उसके टावर से परेशानी
वैज्ञानिकों का कहना है कि मोबइल से अधिक परेशानी उसके टावरों से है। क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, लेकिन टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते रहता हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटे भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिल जाते हैं, जबकि टावर के पास रहने वाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। विशेषज्ञ दावा करते हैं कि अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहने वाले लोगों को दो से तीन वर्ष के अंदर सेहत से जुड़ी तरह-तरह की समस्याएं शुरू हो सकती हैं।
गुणों का खान है बांस
टीएनबी कॉलेज टिश्यू कल्चर के प्रधान अन्वेषक डॉ. चौधरी के अनुसार बांस गुणों का खान है। यह पर्यावरण का गहरा मित्र है। बांस उच्च मात्रा में जीवनदायी ऑक्सीजन गैस का उत्सर्जन करता है। बांस की जड़ जमीन को इतनी मजबूती से पकड़ती है कि तेज आंधी भी इसे उखाड़ नहीं पाती। बांस की जड़ मिट्टी को कटाव से बचाती है और इस खूबी के कारण ही यह बाढ़ वाले इलाके के लिए वरदान है।
बांस प्रदूषण रहित ईंधन भी है, क्योंकि यह जलने पर बहुत कम कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करता है। पूर्वोत्तर में इससे कई तरह की घरेलू दवाएं बनायी जाती हैं। च्यवनप्राश बनाने के लिए जरूरी तत्व वंशलोचन बांस के तने से ही प्राप्त होता है। चीन में बांस की कोपलें लोगों की पसंदीदा सब्जी है और वहां के शर्मीले पशु पांडा का प्रिय भोजन भी यही है। एक अध्ययन के मुताबिक, बांस देश के पांच करोड़ ग्रामीणों को रोजगार दे सकता है।
बांस की खेती बहुआयामी है। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए विवि प्रतिबद्ध है। इससे न सिर्फ किसानों की आय दोगुनी होगी। कुटीर उद्योग को बढ़ावा मिलेगी। रोजगार का सृजन होगा। सूबे के राजस्व में भी वृद्धि होगी। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति, टीएमबीयू भागलपुर