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जलीय पौधे ने मुर्गी पालकों की बढ़ाई आय, लागत खर्च हुआ कम

खनिज व लवण से भरपूर इस वनस्पति के खाने से न सिर्फ मुर्गा-मुर्गियों की अच्छी बढ़वार होती है

By JagranEdited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 11:34 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 11:34 PM (IST)
जलीय पौधे ने मुर्गी पालकों की बढ़ाई आय, लागत खर्च हुआ कम

खगड़िया (निर्भय) : जल में आसानी से पैदा होने वाला फर्न प्रजाति की वनस्पति एजोला खगड़िया जिले में मुर्गा-मुर्गियों के चारे के रूप में खासी लोकप्रिय हो रही है। खनिज व लवण से भरपूर इस वनस्पति के खाने से न सिर्फ मुर्गा-मुर्गियों की अच्छी बढ़वार होती है, बल्कि यह उनका पसंदीदा भोजन भी है। कम लागत में ही उपजाई जाने वाली इस मुर्गी चारे की बदौलत न केवल मुर्गी पालकों के व्यय में कमी आ रही है, बल्कि उनकी आय में काफी वृद्धि भी हो रही है। इस तरह यह वनस्पति जिले की ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को ठोस आधार प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो रही है।

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जिले के कई मुर्गी पालकों ने बताया कि वे जिला कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा सुझाए गए इस चारे को मुर्गा-मुर्गियों को खिलाकर वे अपनी आमदनी दोगुणी कर रहे हैं। इस जलीय पौधे का पानी की सतह पर आसानी से उत्पादन किया जा सकता है। उस पर मामूली खर्च आता है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ. ब्रजेंदु कुमार ने बताया कि इसके प्रयोग से मुर्गीपालकों की 70 प्रतिशत लागत बचती है और आय में बढ़ोतरी होती है। एजोला में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, खनिज-लवण और विटामीन पाए जाते हैं। इससे मुर्गा-मुर्गियों के लिए आवश्यक कैल्शियम,फॉस्फोरस और लोहे की भी पूर्ति होती है। सबसे बड़ी बात फर्न प्रजाति का यह पौधा सुपाच्य होता है।

इससे मुर्गा व मुर्गी का तेजी से विकास भी होता है। बुढ़वा पररी के मुर्गी पालक रामदास, रंजय कुमार आदि ने बताया कि मुर्गा-मुर्गी को 30-50 ग्राम एजोला प्रतिदिन खिलाने से उनका शारीरिक भार और अंडा उत्पादन की क्षमता में दस से 15 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है। फलत: यह नया चारा उनके लिए वरदान साबित हो रहा है। मालूम हो कि मुर्गा व मुर्गी पालकों का एक बड़ा हिस्सा उनके चारे पर खर्च होता है। परंतु, एजोला नामक जलीय पौधे ने मुर्गी पालकों के खर्च में कटौती ला दी है और आमदनी बढ़ा दी है।

कोट

'एजोला फर्न प्रजाति का पौधा है। यह दुधारू पशुओं और मुर्गियों के लिए आदर्श आहार है। पानी में तीव्र गति से इसकी पैदावार होती है। फिलहाल जिले में 40 मुर्गी पालक इसका उपयोग कर रहे हैं।'

-डॉ. सतेंद्र कुमार, पशु वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया। === ===


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