बिहपुर के गवारीडीह में मिले चंपा से भी प्रचीन पुरातात्विक अवशेष, देखेंगे तो रैहत में पड़ जाएंगे Bhagalpur News
यहां मिले अवशेष 1000 ईसा पूर्व की काले और लाल मृदभांड (बीआरडब्लू) संस्कृति और द्वितीय नगरीकरण से लेकर 12वीं शताब्दी तक की भौतिक संस्कृतियों से जुड़े हैं।
भागलपुर, जेएनएन। पुराविदों एवं इतिहासकारों की टीम ने नवगछिया अनुमंडल के बिहपुर में कोसी के किनारे गवारीडीह स्थित करीब 25 फीट ऊंचे टिल्हे पर मिले प्राचीन अवशेषों का अध्ययन किया। टीम के सदस्यों ने बताया कि गवारीडीह अंग की राजधानी चंपा से भी पुरानी है।
दल में टीएमबीयू के पीजी प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारी लाल चौधरी, एसएम कॉलेज के पीजी इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. रमन सिन्हा व पूर्व उप जनसंपर्क निदेशक शिवशंकर सिंह पारिजात सहित प्राचीन इतिहास विभाग के डॉ. पवन शेखर, डॉ. दिनेश कुमार व पीजी टूरिज्म विभाग की छात्रा रिंकी कुमारी शामिल थीं। टीम ने कहा कि यहां मिले अवशेष 1000 ईसा पूर्व की काले और लाल मृदभांड (बीआरडब्लू) संस्कृति और द्वितीय नगरीकरण से लेकर 12वीं शताब्दी तक की भौतिक संस्कृतियों से जुड़े हैं। यहां से टेराकोटा की मूर्तियां, बर्तनों के टुकड़े, तांबे के टुकड़े, गोपन गुल्ला, सिल-लोढ़ा, हैंडल युक्त बर्तन, चौड़े आकार की ईंट आदि मिले हैं। इसकी निरंतरता 12वीं शताब्दी तक रही होगी। महानगर के रूप में चंपा का अभ्युदय छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ। अंग का महाजनपद के रूप में आकार लेना एक क्रमिक विकास की परिणति थी।
अधिसंख्या में गवारीडीह में बीआरडब्लू काल के पात्रों का पाया जाना नगरीय अवस्थापना से पूर्व की स्थिति को इंगित करता है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जब लोहे के उपयोग के कारण अधिशेष उत्पादन हुआ और नगरों का विकास शुरू हुआ तब चंपा अस्तित्व में आई। इतिहासकारों व पुराविदों की टीम ने इस स्थल की विस्तृत खोदाई एवं प्राप्त सामग्रियों के संरक्षण के साथ कोसी के कटाव में तेजी से विलीन होते गवारीडीह टिल्हे को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया।