कभी कुआं पर से ही मिठी मुस्कान के साथ होती थी दिन की शुरुआत, महिलाओं की मिलन स्थली के फिर बहुरेंगे दिन Bhagalpur News
गावों में पानी लाने का काम अधिकतर महिलाएं करती हैं। सुबह के समय कुआं की जगत पर खाली बरतन लिए अनेक महिलाएं जुटती थीं। पानी भरने की उनकी बारी आने तक आपस में हंसी मजाक करती थी।
भागलपुर [ललन तिवारी]। कभी गांव के बीच कुआं पर सुबह शाम बाल्टी और डोरी लेकर महिलाएं पहुंचती थी। स्नान से लेकर बर्तन कपड़ा धोने तक का काम कुआं के चारो ओर होता था। घर की चर्चा होती थी। मिठी मुस्कान के साथ दिन की शुरुआत होती थी। लेकिन, आज यह सब अतीत बन कर रह गया है। नई तकनीक ने कुआं की उपयोगिता ही समाप्त कर दी।
हालांकि, अब गिरते जलस्तर ने कभी महिलाओं का मिलन स्थली रही कुआं को फिर से याद करा दिया है। अब सरकारी प्रयास से इसके दिन बहुरेंगे। सरकार गांव के सार्वजनिक कुआं का सर्वे करा रही है। सबौर में भी इस तरह का सर्वे कार्य जारी है। प्रखंड के कर्मी विभिन्न गांवों में जाकर बचे हुए कुएं का पता लगा रहे हैं। ताकि उनका जीर्णोद्धार किया जा सके। इससे जल संचय को बढ़ावा मिलेगा।
यहां मिल रहा है कुआं
बढ़ती जनसंख्या और कंक्रिट के जंगल का फैलाव के कारण सघन आबादी वाला ग्रामीण इलाके में तो कुंआ जमीन दोज हो चुका है। लेकिन गांव से बाहर बगल के खेतों में अब भी कुछ कुआं का अस्तित्व बचा है जो जीवंत होने की वाट जोह रहा है।
पानी के बहाने महिलाओं का होता था जुटान
गावों में पानी लाने का काम अधिकतर महिलाएं करती हैं। सुबह के समय कुआं की जगत पर खाली बरतन लिए अनेक महिलाएं जुटती थीं। पानी भरने की उनकी बारी आने तक आपस में हंसी मजाक करती थी। एक दूसरे को गुदगुदा कर खूब हंसती थी। कुछ महिलाएं पानी निकालते वक्त लोकगीत गुनगुनाती थी। कुछ घर बाहर की आपस में बात भी करती थी। कुआं पर गांव भर की दास्तान सुनी जा सकती थी। कुंआ ही महिलाओं का परस्पर मिलन स्थल था। जीर्णोद्धार की सरकारी पहल गांव की पुरानी अपनापन का सुखद एहसास करा रही है।
सबौर बीडीओ ममता प्रिया ने कहा कि कुआं का सर्वे रिपोर्ट बन रहा है। तकरीबन 150 कुआं प्रखंड क्षेत्र में है। कुआं के जीवंत होने से एक ओर गिरता जलस्तर में कमी होगा वहीं दूसरी ओर पुरानी ग्रामीण परिवेश की संस्कृति मुखर होगी।
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