जिले में 23 फीसद लोग तनाव रोग के मरीज , जानिए वजह
23.6 फीसद लोग तनाव रोग से ग्रस्त है। इन्हें उच्च या निम्न रक्तचाप की शिकायत है। वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। इस हिसाब से जिले के चार लाख से अधिक लोग तनाव रोग या रक्तचाप रोग से पीडि़त हैं।
जागरण संवाददाता,जमुई । जिले की आबादी का 23.6 फीसद लोग तनाव रोग से पीड़ित हैं। इन्हें उच्च या निम्न रक्तचाप की शिकायत है। वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। इस हिसाब से जिले के चार लाख से अधिक लोग तनाव रोग या रक्तचाप से पीडि़त हैं। अब स्वास्थ्य विभाग ऐसे रोगियों की पहचान कर दवाई उपलब्ध कराने की कवायद में जूट गया है। इंडियन हाइपरटेंशन कंट्रोल इनसिएटिव कार्यक्रम के तहत जांच व दवा उपलब्ध कराया जा रहा है। बताया जाता है कि बिहार के पांच जिले में पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह कार्यक्रम शुरू किया गया है। जिसमें जमुई सहित मुजफ्फरपुर, बैशाली, रोहतास व पुर्णिया जिला शामिल है।
दर सहित सभी पीएचसी में किया जा उपचार
सदर अस्पताल सहित जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ऐसे रोगियों की रक्तचाप जांच कर दवा उपलब्ध कराई जा रही है। रोगियों को बीपी पासपोर्ट नामक क्यूआर कोडेड मेडिकल कार्ड भी दिया जाता है। साथ ही सारी जानकारी मोबाइल एप पर अपलोड की जाती है।
डिजिटली रोगियों की जा रही मॉनिटिरंग
सिम्पल नामक मोबाइल एप के माध्यम से रक्तचाप रोगियों की मॉनिटिरंग की जाती है। स्वास्थ्य विभाग के संबंधित पदाधिकारी एप के माध्यम से रोगियों की अद्यतन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा एप भी स्वत: रोगियों को मैसेज के माध्यम से सूचना देता है। मतलब, पहली बार दिखलाने व दवाई लेने के बाद दूसरी निर्धारित तिथि पर जांच के लिए नहीं पहुंचने पर रोगी के मोबाइल पर एप स्वत: मैसेज भेजती है। साथ ही रोगी के फोन नंबर के साथ एप पर दवाई खत्म होने की जानकारी संबंधित पदाधिकारी को दिखलाती है। पदाधिकारी फोन कर रोगी को सूचित करते हैं।
स्कैन करते ही मिल जाती है पूरी जानकारी
मेडिकल कार्ड पर उपलब्ध क्यूआर कोड को एप से स्कैन करते ही रोगी के मेडिकल इतिहास की जानकारी हो जाती है। बताया जाता है कि पहली बार जांच होने के साथ ही रोगी के संबंध में पूरी जानकारी एप में अपलोड कर दी जाती है।
बोले डीआइओ
डीआइओ सह नोडल पदाधिकारी डा विमल कुमार चौधरी ने कहा कि सदर सहित पीएचसी में बीपी की जांच व दवा उपलब्ध कराई जा रही है। एप पर अपलोड करने को लेकर चिकित्सा पदाधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है।