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विदेशों में हो रही खेती को देख ज्ञानार्जन करने जाएंगे अधिकारी, कर्मी, विज्ञानी और किसान

जीवन शैली की तरह फसलों के उत्पादन की तकनीक भी बदल रही है। बिहार में भी जलवायु अनुकुल खेती का कार्यक्रम चल रहा है। उसे व्यापक रुप देने के लिए अब बीएयू के अगुवाई में सरकार के अधिकारी विज्ञानी कर्मी और समूह में किसानी करने वाले अब विदेश जाएंगे

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2021 12:50 PM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2021 12:50 PM (IST)
विदेशों में हो रही खेती की नई तकनीक का अनुशरण कर धरातल पर उतारेंगे विज्ञानी और किसान

जागरण संवाददाता, भागलपुर । बदलते मौसम के अनुसार जीवन शैली की तरह फसलों के उत्पादन की तकनीक भी बदल रही है। बिहार में भी जलवायु अनुकुल खेती का कार्यक्रम चल रहा है। उसे व्यापक रुप देने के लिए अब बीएयू के अगुवाई में सरकार के अधिकारी, विज्ञानी, कर्मी और समूह में किसानी करने वाले प्रगतिशील किसान देश के बड़े संस्थानों से लेकर विदेश जाकर हो रही खेती को देखकर ज्ञानार्जन करेंगे। वहां के तकनीक को भागलपुर सहित अन्य जिलों में उसे धरातल पर उतारा जाएगा।

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जलवायु अनुकुल खेती की होगी व्यापकता

सह निदेशक फिजा अहमद कहते हैं कि जलवायु अनुकुल कृषि कार्यक्रम के तहत बिहार कृषि विश्वविद्यालय में विगत सप्ताह एक उच्चस्तरीय बैठक किया गया था। बैठक में कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थान भाग लिया था। जलवायु अनुकुल खेती की व्यापकता बढ़ाने के उद्देश्य से निर्णय लिया गया कि यहां के कृषि से जुड़े सभी स्तर के लोगों को मौसम अनुसार उच्चतकनीक से लैस गुणवत्ता पूर्ण खेती जहां हो रही है वहां ले जाया जाएगा। ताकि देख कर उसे बिहार की धरती पर अपनाया जा सके। पहले चरण में चयनित प्रखंडों के कर्मी व किसानों को दिखाने ले जाया जाएगा। इसकी तैयारी बीएयू कर रहा है। इस कार्यक्रम में कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थान बीएयू के पार्टनर हैं।

क्या होगा फायदा

विदेशों और देश के उच्चतर किसानी की तकनीक से बिहार में खेती होगी। मौसम के बेरूखी का असर नहीं होगा। क्योंकि बदलते मौसम के कदम से कदम मिलाकर किसान खेती करेंगे। कम समय कम खर्च में आय ज्यादा होगा नुकसान कम होगा। किसान समृद्ध बनेंगे।

क्‍या कहते हैं कुलपति

बीएयू के कुलपति डॉ आरके सोहाने ने कहा कि राज्‍य में मौसम अनुकुल खेती की प्रायोगिक सफलता के बाद इसका विस्तार किया जा रहा है। इसी कड़ी में विदेशों में हो रही किसानी को यहां के किसान अपना सकें इसके लिए विश्वविद्यालय प्रयास कर रहा है।  


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