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बिहार: भूदान की जमीन पर कबजा को ले दो सौ राउंड फायरिंग, पुलिस पर भी हमला

बिहार के मुंगेर में भूदान की जमीन के लिए दो गांवों के लोग भिड़ गए। वे पुलिस के आने पर भी नहीं माने। दोनों ओर से दिनभर गोलीबारी होती रही। इसमें एक पुलिस जवान भी घायल हो गया।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 10:28 AM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 10:36 AM (IST)
बिहार: भूदान की जमीन पर कबजा को ले दो सौ राउंड फायरिंग, पुलिस पर भी हमला
मुंगेर [जेएनएन]। विनोबा भावे ने देश में भूदान आंदोलन इसलिए चलाया था कि भूमिहीनों को जमीन मिल सके। लेकिन बिहार में भूदान की जमीन के लिए हिंसा के कई उदाहरण मिले हैं। मुंगेर में तब तो हद हो गई, दो गांवों के लोग इस जमीन पर कब्‍जे के लिए भिड़ गए। इस दौरान दोनों ओर से दिनभर हुई फायरिंग से पूरा इलाका दहल उठा, अपराधियों की पुलिस से भी मुठभेड़ हो गई। घटना के अगले दिन रविवार को भी वहां जबरदस्‍त तनाव बना हुआ है। पुलिस एहतियातन सतर्क है।
पुलिस के पहुंचने पर भी नहीं माने अपराधी
बिहार के मुंगेर स्थित असरगंज थाना क्षेत्र में चोरगांव और गंगनिया के ग्रामीणों के बीच भूदान की जमीन पर कब्जे को लेकर झड़प हो गई। दोनों पक्ष ने शनिवार की सुबह से शाम तक 200 राउंड से अधिक फायरिंग की। फायरिंग से पूरा इलाका दिनभर दहलता रहा। इस बीच पुलिस पहुंची, लेकिन दबंग अपराधी नहीं माने। पुलिस की मौजूदगी में भी फायरिंग जारी रही।
फायरिंग से जवान जख्‍मी, पुलिस पर पथराव
अपराधी नहीं माने तो पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की। इस दौरान उनकी पुलिस से भी मुठभेड़ हो गई। अपराधियों की गोली से एक जवान मधु कुमार जख्मी हो गया। पुलिस के अनुसार अपराधियों को बचाने के लिए ग्रामीणों ने पुलिस पर पथराव भी किया।
घटनास्‍थल से हथियार बरामद, दो दर्जन हिरासत में
घटना की सूचना मिलने पर मुख्‍यालय से बड़ी संख्‍या में पुलिस बल को भेजा गया। डीआइजी मनु महाराज व एसपी गौरव मंगला के नेतृत्व में पुलिस ने छापेमारी कर दो दर्जन ग्रामीणों को हिरासत में ले लिया। डीआइजी मनु महाराज ने बताया कि पुलिस ने घटनास्‍थल से दो राइफल, दो देसी कट्टा तथा कई खोखा बरामद किया है। एसपी गौरव मंगला ने बताया कि स्थिति नियंत्रण में है।
क्‍या था विनाबा का भूदान आंदोलन, जानिए
भूदान आंदोलन संत विनोबा भावे द्वारा सन् 1951 में आरंभ किया गया स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था। विनोबा की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से भी इसकी कोशिश की जाए।
1955 तक आते-आते भूदान आंदोलन ने एक नया रूप धारण किया। इसे ‘ग्रामदान’ के रूप में पहचाना गया। ग्रामदान वाले गांवों की सारी भूमि सामूहिक स्वामित्व की मानी गई, जिसपर सबका बराबर का अधिकार था। उम्मीदों के बावजूद साठ के दशक में भूदान और ग्रामदान आंदोलन कमजोर पड़ गए। दान में मिली 45 लाख एकड़ भूमि में से 1961 तक 8.72 लाख एकड़ ही गरीबों व भूमिहीनों के बीच बांटी जा सकीं। दान में मिली भूमि का बड़ा हिस्सा खेती के लायक नहीं था। कई जगह यह भूमि मुकदमे में फंसी थी।
नई नहीं भूदान की जमीन को ले हिंसा
ऐसे में भूदान की जमीन को ले विवाद व हिंसा नई बात नहीं है। विनाबा के भूदान आंदोलन की भूमि का विवाद आज भी जारी है। मुंगेर में हुई घटना इसकी ताजा कड़ी है।

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