नवविवाहिताओं के आस्था का पर्व मधुश्रावणी शुरू
मिथिला की लोक आस्था का पर्व मधुश्रावणी शुरू हो गया है।
बेगूसराय : मिथिला की लोक आस्था का पर्व मधुश्रावणी शुरू हो गया है। इस पर्व को नवविवाहिता बहुत ही श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाती है। यह पर्व सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से शुरू होता है तथा सावन महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न हो जाता है। मधुश्रावणी पूजा कराने वाली पंडिताइन विष्णुपुर निवासी सुधीरा देवी ने बताया कि मधुश्रावणी का पर्व नवविवाहिता सुखी दांपत्य जीवन एवं पति के दीर्घायू होने की कामना के साथ करती हैं। जिसमें नवविवाहिता शंकर-पार्वती, राम-जानकी, राधाकृष्ण की कथा एवं पूजा के साथ नाग-नागिन की पूजा करती हैं। नवविवाहिता पूजा के लिए प्रत्येक दिन संध्या काल में अपने सखी सहेली के साथ समूह गान गाते हुए फूल लोढने बगीचे में जाया करती है। वहां से रंग बिरंगे फूल, बेलपत्र, बांस का पत्ता, अकान, धथूरा व भांग का पत्ता डाली भर कर लाती हैं। इसमें संध्या में लाए गए बासी फूल से दूसरे दिन सुबह में पूजा करने एवं कथा सुनने का विधान है। इसका समापन सावन मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को नवविवाहिताओं को टेमी दागने के साथ होता है। इसमें व्रती को आंख पर पट्टी बांध घुटने पर पान का पत्ता रखकर एक जलती बाती से दागा जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप नवविवाहिता को फफोले हो जाते हैं। फफोला होना शुभ व हितकारी माना जाता है। मधुश्रावणी का पर्व खासकर मिथिलांचल परंपरा को मानने वाले लोगों द्वारा विशेष उत्सव के रुप में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर नवविवाहिता अगर ससुराल में होती है तो मायके वालों द्वारा या मायके में होती है तो ससुराल पक्ष से पूजन सामग्री एवं नव वस्त्र सहित फल, मिष्टान आदि भेजने के परंपरा रही है।