सरकारी सुविधाओं से अभी तक महरूम हैं शहीद अशोक कुमार के परिजन
बेगूसराय। शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन के पर प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीदों क
बेगूसराय। शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन के पर प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीदों के परिवारों की क्या यही दशा होगी। यह एक बहुत बड़ा सवाल केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और अन्य सरकारी महकमों के सभी पदाधिकारियों व क्षेत्र के सांसद, विधायक सहित पंचायती व नगर निकाय के तमाम जनप्रतिनिधियों के लिए है कि क्या इनकी भी कुछ नैतिक जिम्मेदारियां भी बनती है अमर शहीद हुए परिजनों के प्रति। देश के नागरिक चैन की नींद सोए इसके लिए देश की सुरक्षा में अपनी जान देने वाले वीर योद्धाओं के परिवार बैचैन हैं अपनी ¨जदगी गुजर बसर करने को। तत्कालीन गढ़हरा - एक पंचायत वर्तमान में बीहट नगर परिषद वार्ड 11 निवासी अशोक कुमार पिता तेज नारायण राय साधारण किसान परिवार में जन्म लिया। बचपन से ही प्रतिभा के धनी अशोक कुमार को देश सेवा के लिए कुछ करने का जज्बा ने सितंबर 1984 में आर्मी के जवान के रूप में देश सेवा करने का मौका दिया। परिवार के सदस्यों के साथ-साथ गांव के लोगों में भी खुश थे कि गांव का लड़का देश की सेवा के लिए चयनित हुआ। आशोक कुमार का पांच भाई और चार बहनें, माता पिता एक सहित खुशहाल परिवार था। छोटी बहन मीरा की शादी में छुट्टी पर आए आशोक बहुत खुश थे। छुट्टी खत्म होने को थी कि विभाग से सूचना आई कि ड्यूटी पर आएं। ड्यूटी पर जाते समय छोटी बहन को आर्मी भाई ने कहा, अगली छुट्टी पर तुम्हारे लिए विशेष उपहार लाउंगा। लेकिन अशोक और उनके परिजनों को क्या मालूम था कि यह उनका अंतिम दर्शन है। उनके वृद्ध भाई वाल्मीकि राय ने बताया कि तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार के आदेश पर भारतीय शांति सेना आपरेशन पवन (श्रीलंका) में की गई कार्रवाई में अशोक कुमार बैच नंबर (14911345 एन) दो अक्टूबर 1987 दुश्मनों ने इनके टैंकर को ही बम से उड़ा दिया। जिसमें वे शहीद हो गए। इसकी सूचना डाक विभाग द्वारा पत्र के माध्यम से मिला। बाद में सेना के जवानों द्वारा अस्थि परिजनों को सौंपा गया। परिवार सहित पूरे गांव में मतमी सन्नाटा छा गया और परिवार के सारे सपने चकनाचूर हो गए। रोते हुए उन्होंने बताया कि हमारी इस दशा को देखने वाला कोई नहीं है। किसी तरह खेती कर जीवको पार्जन करने को मजबूर हैं। बेटे के गम में पिता ने भी 1990 में दम तोड़ दिया। परिवार की सारी जिम्मेदारी उनकी माता पार्वती देवी पर था। शहीद के भाई वाल्मीकि राय ने बताया कि आज तक किसी तरह की सुविधा न पंचायती राज, न ही नगर परिषद, न राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार से मिली।
शादी के दो साल ही बीते थे कि..
परिजनों ने बताया कि शहीद अशोक कुमार शादी-शुदा थे। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं था। शादी के दो साल के बाद ही अशोक कुमार शहीद हो गए। बाद के दिनों में सामाजिक पहल के कारण लड़की पक्ष ने लड़की की दूसरी शादी करवा दी।
पेंशन का भी समुचित लाभ नहीं मिला
शहीद के बड़े भाई वाल्मीकि राय ने कहा, चूंकि आश्रित को पेंशन का लाभ मिलता है सो पत्नी को तीन तिहाई और उनके माता जी को एक तिहाई पेंशन लाभ मिल पाता था। जिसमें शहीद की पत्नी ने दूसरी शादी कर ली। इससे मां को एक तिहाई पेन्शन का ही लाभ मिल पाता था जो इस बड़े परिवार को चलाने के लिये ऊंट के मुंह में जीरा जैसा था। 2013 में माता जी के निधन के बाद स्थानीय बैंक द्वारा जमा धन राशि भी नहीं दी गई।
इस संबंध में शहीद हुए अशोक कुमार के भाई वाल्मीकि राय ने करुणा भरे शब्दों में कहा, तबसे लेकर अब तक कोई देखने भी नहीं आया। सेना द्वारा सम्मान दिया गया। लेकिन आज तक कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिली और न ही कोई रोजी रोजगार। इसकी वजह से हमारा परिवार आज भुखमरी की ¨जदगी जीने को विवश है। हमारा भाई बहुत जीवट वाला था। हमारे परिवार को गर्व है कि अशोक देश के लिए शहीद हुआ।