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शक्तिपीठ बखरी में काशी के आचार्य संपन्न कराएंगे नवरात्र पूजा

बेगूसराय जादू-टोने की आराध्य देवी बहुरा मामा की धरती बखरी में पुराने दुर्गा मंदिर का वि

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Oct 2021 09:50 PM (IST)Updated: Wed, 06 Oct 2021 09:50 PM (IST)
शक्तिपीठ बखरी में काशी के आचार्य संपन्न कराएंगे नवरात्र पूजा
शक्तिपीठ बखरी में काशी के आचार्य संपन्न कराएंगे नवरात्र पूजा

बेगूसराय : जादू-टोने की आराध्य देवी बहुरा मामा की धरती बखरी में पुराने दुर्गा मंदिर का विशेष महत्व है। मंदिर को शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त है। नवरात्र पर यहां लगने वाले मेले देश परदेश में प्रसिद्ध है। इस दौरान यहां पहुंचने वाले भक्त मंदिर में विराजमान मइया के दर्शन के बगैर नहीं लौटते। यही वजह है कि मेले में यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, हालांकि कोरोना महामारी के कारण पिछले वर्ष यहां किसी तरह के मेले या सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया था। फिर शक्तिपीठ में आस्था रखने वालों की भारी भीड़ उमड़ी और सादगी से मां की पूजा अर्चना की। माना जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना कभी व्यर्थ नहीं जाती। मंदिर की एक सशक्त पूजा समिति है जो नवरात्र के अलावा वर्ष भर मंदिर के रख रखाव तथा श्रद्धालुओं की सुविधा का ख्याल रखती है।

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नवरात्र में काशी के आचार्य संपन्न कराएंगे पूजा :

शक्तिपीठ में यूं तो वर्ष भर मां की पूजा अर्चना एवं आरती के लिए स्थाई पुजारी नियुक्त हैं। परिहारा निवासी पंडित अमरनाथ चौधरी सालों भर मंदिर में रहकर मां की पूजा संपन्न कराते हैं, परंतु नवरात्र पर काशी के आचार्य द्वारा पूजा कराई जाती है। मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष रत्नेश्वर प्रसाद सिंह तथा सचिव तारानंद सिंह ने बताया कि इस वर्ष भी काशी के आचार्य शुभम भारद्वाज एवं उनकी सात सदस्यीय टीम पूजा संपन्न कराएगी। आचार्य की टीम नवरात्र शुरू होने के पहले ही यहां आ जाती है।

वाराणसी के पुरोहित करेंगे आरती :

पूजा समिति के अध्यक्ष एवं सचिव ने बताया कि इस वर्ष मैया की आरती का विशेष प्रबंध किया गया है। नवरात्र में सभी दिन आरती के लिए अस्सी गंगा घाट वाराणसी से पांच पुरोहितों को बुलाया गया है, जो वैदिक रीति-रिवाज से सुबह-शाम मां की आरती करेंगे। उन्होंने बताया कि यह पहला मौका है जब वाराणसी के गंगा घाट की तर्ज पर मां की आरती की जाएगी।

नहीं होगा मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन :

मंदिर की दुर्गा पूजा समिति ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष भी किसी भी प्रकार के मेले या सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाएगा। नवरात्र पर पंडाल, तोरण द्वार का निर्माण नहीं होगा। बाजार की साज-सज्जा भी पहले जैसी नहीं रहेगी। हालांकि मंदिर की साज-सज्जा मंदिर निर्माण के प्रस्तावित नक्शे के अनुरूप नागर शैली में की जा रही है, जो मंदिर की सुंदरता तथा ²श्यता को भव्य रूप प्रदान करेगी। इसका निर्माण जोर-शोर से चल रहा है। इसी तरह मंदिर की लाइटिग को भी आकर्षक रूप देने की तैयारी चल रही है।

नवरात्र को छोड़ यहां वर्ष भर होती है शून्य की पूजा :

नवरात्र पर यहां मां की प्रतिमा का निर्माण कर उनकी आराधना की जाती है। जबकि पूरे वर्ष शून्य की पूजा की परंपरा है। कहा जाता है कि मुगलकाल में राजस्थान के धार से आए परमार वंशी राजपूतों ने 16वीं शताब्दी में मंदिर की स्थापना की थी। तब इसमें अष्टधातु की मां की कीमती मूर्ति थी, परंतु मंदिर से उक्त मूर्ति की चोरी हो गई। तबसे यहां मइया की इच्छा के अनुरूप शून्य की पूजा का रिवाज है। मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष रत्नेश्वर प्रसाद सिंह तथा सचिव तारानंद सिंह ने बताया कि चौरी सादपुर के मूर्तिकार कपिलदेव मिस्त्री, उनके पुत्र संजय कुमार तथा सलौना गांव निवासी उमेश पंडित माता भगवती की मूर्ति का निर्माण कर रहे हैं।

अष्टमी को जुटते तंत्र-मंत्र विद्या के साधक :

बखरी तंत्र-मंत्र विद्या के साधिका की धरती है। नवरात्र पर तंत्र-मंत्र के साधक यहां आकर सिद्धी प्राप्त करते हैं। अष्टमी के दिन शाम में इनका जमावड़ा मंदिर परिसर में होता है। इनकी विचित्र भाव भंगिमा को देखने को लोगों की भारी भीड़ यहां जुटती है।

यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

निशा बलि और नीलकंठ उड़ाने की है परंपरा :

शक्तिपीठ बखरी में अष्टमी की रात्रि निशा बलि की परंपरा का निर्वाह किया जाता है। उस समय मां का पट खुलने तथा उनके दर्शन को भक्तों की भारी भीड़ मंदिर परिसर में होती है। जबकि विजयादशमी को नीलकंठ उड़ाकर जतरा निकाला जाता है।


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