सफा संप्रदाय के लोग सात्विक तरीके से पूजा कर हुए विदा
संवाद सूत्र बाराहाट (बांका) मंदार पर सफा धर्म के लोग सात्विक तरीके से पूजा कर विदा हो रहे हैं। यहां सफा धर्म की निश्चल आस्था प्रगाढ़ है। सफा धर्म की नींव सन 1939 में आदिवासी समुदाय के चंद्र दास ने रखते हुए शराब और अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ क्षेत्र में सफा संस्कृति के माध्यम से समाज सुधार के लिए आंदोलन की शुरुआत की थी।
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- घरेलू सामान की मंदार में जमकर हुई खरीदारी
- समाज सुधार के लिए की थी आंदोलन की शुरुआत
संवाद सूत्र, बाराहाट (बांका): मंदार पर सफा धर्म के लोग सात्विक तरीके से पूजा कर विदा हो रहे हैं। यहां सफा धर्म की निश्चल आस्था प्रगाढ़ है। सफा धर्म की नींव सन 1939 में आदिवासी समुदाय के चंद्र दास ने रखते हुए शराब और अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ क्षेत्र में सफा संस्कृति के माध्यम से समाज सुधार के लिए आंदोलन की शुरुआत की थी। अपने गुरु के आदर्शों पर चलकर आज भी मंदार के पवित्र पापहरणी सरोवर में डुबकी लगाकर अपने इष्ट देवता की आराधना करते हैं।
सफा धर्म की गुरु माता रेखा हेंब्रम ने बताया कि आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व सोहराय है। इस धर्म को मानने वाले लोग मकर संक्रांति के कुछ दिन पूर्व ही मंदार में जुटने लगते हैं। यहां एक सप्ताह तक रुक कर अपने इष्ट देव की पूजा करते हैं उसके बाद अपने घर जाकर सोहराय पर्व मनाते हैं। पाकुड़ से आए सोहन मुर्मू ने बताया कि पूजा कर वापस लौट जाएंगे। चार दिनों तक कड़ाके की ठंड के बावजूद भी पापहरणी में स्नान कर भगवान श्रीराम व भगवान शिव की आराधना की। गीता, रामायण, सुंदरकांड, तुलसी और रुद्राक्ष की माला लेकर आस्था के सागर में आए सफा धर्म के लोग शनिवार को रवाना हुए। मान्यता के अनुसार पापहरणी में स्नान मात्र से ही सभी पाप धूल जाते हैं। मेले में बच्चों ने बांसुरी व खिलौने खरीदने की अभिभावकों से जिद की। अधिसंख्य लोगों की घरेलू उपयोग की सामग्री की खरीदारी की।