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लाकडाउन में बच्चों के घर जाकर पढ़ाती रही ज्योति

बांका। चांदन प्रखंड के भनरा मध्य विद्यालय की संस्कृत शिक्षिका ज्योति कुमारी अपनी मेहनत और निष्ठा से

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Aug 2021 09:52 PM (IST)Updated: Sun, 08 Aug 2021 09:52 PM (IST)
लाकडाउन में बच्चों के घर जाकर पढ़ाती रही ज्योति
लाकडाउन में बच्चों के घर जाकर पढ़ाती रही ज्योति

बांका। चांदन प्रखंड के भनरा मध्य विद्यालय की संस्कृत शिक्षिका ज्योति कुमारी अपनी मेहनत और निष्ठा से पहचान बना चुकी है। सरकारी विद्यालय की शिक्षक होकर भी ज्योति ने वह कर दिखाया, जिसकी कहानी सुनकर दंग रह जाएंगे। लाकडाउन में विद्यालय बंद रहने के दौरान भी ज्योति नियमित रूप से अपने विद्यालय वाले गांव भरना में आती रही। विद्यालय में पढ़ाने की मनाही थी। शिक्षक उपस्थिति भी 50 फीसद थी। ऐसे में ज्योति की हाजिरी हर दिन किसी न किसी बच्चे के दरवाजे पर लगती थी। इस दौरान वह बच्चों को पढ़ाने के साथ पर्याप्त गृहकार्य भी देती थी। ताकि कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं हो।

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खुशी कुमारी के दरवाजे से शुरू हुई पढ़ाई आयुष, सहेली, कल्पना, दिव्या दर्वे, सलोनी आदि छात्रों के घर तक पहुंच गई। डेढ़ दर्जन बच्चे उनसे मोबाइल पर जुड़कर पढ़ाई करते रहे। ज्योति का अभियान यहीं नहीं रुका, यूट्यूब सहित कई डिजिटल प्लेटफार्म पर भी वह बच्चों के लिए उपलब्ध रहीं। टीचर्स आफ बिहार प्लेटफार्म पर भी वह हर सप्ताह सुरक्षित शनिवार कार्यक्रम के तहत बच्चों को जागरूक करती रहीं।

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बच्चे खुद निकाल रहे अपना अखबार

भरना विद्यालय में हर सप्ताह बच्चों का अखबार ज्योति के संपादन में निकलता है। लाकडाउन से पहले इसका 12 अंक निकला हुआ है। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे ही इस अखबार की खबरें लिखते हैं और इसका प्रकाशन भी करते हैं। एक पन्ने के अखबार में कविता, कहानी, चित्र और सप्ताह भर की गतिविधियां प्रमुख रूप से शामिल रहती है। इससे पहले भनरा विद्यालय पहला साबुन बैंक और सेनेटरी बैंक का निर्माण कर चर्चा पा चुका है। ज्योति और उसके बच्चे को आपदा प्रबंधन विभाग भी पुरस्कृत कर चुका है। सड़क सुरक्षा, जल जीवन हरियाली और वज्रपात जैसे अभियान में भनरा के बच्चे उल्लेखनीय काम कर चुके हैं।

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इतिहास से एमए, बीएड कर चुकी ज्योति मूल रूप से बौंसी प्रखंड के गोलहट्टी गांव की रहने वाली है। 2013 में टीईटी पास कर वह प्रखंड शिक्षक बनीं। ज्योति बताती हैं कि ग्रामीण इलाके के बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है। वह बेहतर करने का बस थोड़ा-थोड़ा प्रयास कर रही है। शिक्षा का मुख्य मतलब भी यही है। वह बस शिक्षक होने का धर्म निभा रही हैं।


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