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मिसाल: सर्वधर्म सद्भाव की मिसाल बने मोहिद, कोई मौलवी तो कोई कहता महात्मा

बांका जिले के धोरैया गांव में एक मौलाना सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले लोगों के लिए मिसाल हैं। वे सबको 'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सारा जग उसकी संतान' का पैगाम बांट रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 04 Oct 2017 08:52 AM (IST)Updated: Wed, 04 Oct 2017 11:21 PM (IST)
मिसाल: सर्वधर्म सद्भाव की मिसाल बने मोहिद, कोई मौलवी तो कोई कहता महात्मा
मिसाल: सर्वधर्म सद्भाव की मिसाल बने मोहिद, कोई मौलवी तो कोई कहता महात्मा

बांका [जीवन मिश्रा]। एक ओर जहां धर्म और संप्रदाय को लेकर लोग एक-दूसरे से लड़ रहे हैं, झगड़ रहे हैं । इंसान ही इंसान का दुश्मन बना हुआ है तो वहीं कुछ लोग एेसे भी हैं जो समाज के लिए, इस दुनिया के लिए मिसाल बने हुए हैं। एेसे ही एक व्यक्ति हैं बांका जिले के धोरैया प्रखंड निवासी मोहिद अंसारी से सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे वालों को प्रेरणा लेने की जरूरत है।

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वे सबको 'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सारा जग उसकी संतान' का पैगाम बांट रहे हैं। उनके लिए अजान और भजन एक समान हैं। धोरैया प्रखंड के अल्पसंख्यक बहुल गांव सिंगारपुर निवासी मोहिद अंसारी को उनके सर्वधर्म समभाव के मंत्र के कारण कोई मौलवी तो कोई महात्मा कह कर पुकारता है।

वह अक्सर लोगों को यह संदेश देते हैं कि चाहे इस्लाम हो या सनातन धर्म, सबका सार सदाचार-परोपकार है। एक ही देश की माटी में पले-बढ़े सभी हिन्दू- मुसलमान भाई एक ही बागवान के दो फूल हैं। 

मोहिद मोजार मुस्लिम समुदाय से आते हैं। उन्होंने बताया कि उनके दादा दासू अंसारी उर्फ दासू मियां ने उन्हें ऐसी ही शिक्षा दी थी। मोहिद के पिता स्व. शमशुल अंसारी भी लोगों के बीच यही ज्ञान बांटते थे। इस काम में मोहिद की पत्नी बेगिया खातून भी उनका पूरा साथ देती हैं।

दंपती ने बताया कि बाल-बच्चों के साथ सभी लोग नियमित रूप से नमाज की नियामत रखते हैं तो भगवान के नाम का सुमिरन करना नहीं है। ये लोग आस-पड़ोस के गांवों में ङ्क्षहदू देवी-देवताओं के भजन-कीर्तन समारोह में भी शिरकत करते हैं।

इन्होंंने बताया कि बाराहाट प्रखंड के औराबारी गांव के सत्संग भवन में उनका परिवार सत्संग भी करता है। हारमोनियम, कैशियो आदि साजों पर देवी गीत गाकर ये भक्ति की महिमा का भी बखान करते हैं।

दंपती ने बताया कि ऐसा करने के कारण कई बार उन्हें परेशानी भी हुई। समाज द्वारा कई बार उन्हें यातना भी दी गई, लेकिन उनकी आस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ा। 

मोहिद ने बताया कि खान-पान में भी उनका परिवार शुद्धता का पूरा ख्याल रखता है। हिन्दू त्योहारों पर पूरा परिवार मांसाहारी भोजन से परहेज करता है। उनका मानना है कि यदि सभी लोग एक-दूसरे के धर्मों का आदर करना सीख लें तो दंगा-फसाद जड़ से समाप्त हो जाएगा। 

ग्रामीण मोहम्मद राजा ने कहा कि मोहिद अंसारी की भक्ति भावना लोगों के लिए प्रेरणादायक है। समाज में सबका अपना-अपना धर्म होता है। मोहिद के कार्यों में समाज कोई दखलअंदाजी नहीं कर रहा है।

वहीं मोहम्मद शाहिद ने कहा कि इस्लाम में मूर्तिपूजा वर्जित है, लेकिन मोहिद के यहां पूर्वजों से ही यह परंपरा चली आ रही है। वह और उनका परिवार भजन-कीर्तन में भी शामिल होता है। लोगों के बीच उनकी अच्छी पैठ है। समाज को इससे कोई लेना-देना नहीं है।


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