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सोहराय की मस्ती में डूबे रहे आदिवासी

का बिहार में शिक्षा का बड़ा केंद्र बना है। बांका उन्नयन को अब सरकार ने बिहार उन्नयन बना दिया है। यह सब सरकारी शिक्षकों की मेहनत और लगन के बदौलत ही संभव हुआ है। रूबी के पढ़ाने के तरीके से वे काफी प्रभावित हैं। ऐसे कई शिक्षक बांका की शिक्षा बदलने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। अहसन जिला शिक्षा पदाधिकारी बांका

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 12:13 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 06:11 AM (IST)
सोहराय की मस्ती में डूबे रहे आदिवासी
सोहराय की मस्ती में डूबे रहे आदिवासी

बांका। आदिवासी समाज के सबसे बड़े त्योहार सोहराय का मिलन समारोह रविवार को रेलवे मैदान पर आयोजित हुआ। इसका शुभारंभ विधायक स्वीटी सीमा हेम्ब्रम, पूर्व विधायक सोनेलाल हेम्ब्रम, जिला पार्षद गणेश मुर्मू, मांझी हड़ाम शिवलाल हांसदा, माइकल हेम्ब्रम, डीसीएलआर रविरंजन गुप्ता, एसडीओ मनोज कुमार चौधरी आदि, आदिवासी मंच के अध्यक्ष जे.हांसदा, देवनारायण मरांडी आदि ने दीप जला कर किया। इसके पहले अतिथियों को संथाली लड़कियों ने मुख्य द्वार से गीत के साथ नृत्य कर मंच तक लाया। परंपरा के मुताबिक पीतल के लोटे में पानी लाकर उनका स्वागत हुआ। सभी का पगड़ी बंधन हुआ। इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति शुरु हुई। हवा के झोंकों सा संगीत के साथ संथाली भाषा में एक से एक गीत की प्रस्तुति हुई। पर आदिवासी महिला परंपरागत परिधान में नृत्य करती रही। बांसुरी और परंपरागत परिधान में कई पुरूष भी उनके साथ घंटों नृत्य करते रहे। मंच संचालन शिवनारायण किस्कू ने किया। पूर्णिया की शोभा सोरेन, बीडीओ मनोज मुर्मू, रामजी रोनाल्ड हेम्ब्रम, कर्मचंद्र हांसदा, शिवलाल किस्कू, सोनियां मरांडी, प्रियंका टुडू आदि प्रमुख रूप से इसमें शामिल हुए। सोहराय उत्सव का आनंद लेने दूर दराज गांवों से बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग जुटे थे। बड़ी संख्या में महिला और बच्चे देर शाम इसके गीत-नृत्य का आनंद लिया। अध्यक्ष जे.हांसदा ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी आबादी बांका ही नहीं, बिहार के कई जिलों में है। लेकिन हमारा सबसे बड़ा त्योहार भी सरकारी उपेक्षा का शिकार है। हमें अपना पर्व मनाने के लिए एक दिन की छुट्टी नहीं दी जाती है। नई पीढ़ी के बच्चे इसे नहीं जानेंगे तो वे हमारी पुरानी परंपरा से कट जाएंगे।

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