मैं ¨हदी हूं ¨हद का, घुटन में जी रही हूं..
बांका। ¨हदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में ¨हदी दिवस पखवाड़ा के तहत विचार सह काव्य गोष्ठी क
बांका। ¨हदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में ¨हदी दिवस पखवाड़ा के तहत विचार सह काव्य गोष्ठी का आयोजन आनंद कॉलोनी में हुआ। इस मौके पर ¨हदी की सेवा के लिए कई लोगों को सम्मानित भी किया गया। कवियों ने पहले सत्र में ¨हदी की दशा और दिशा में अपना विचार रखा। दूसरे सत्र में ¨हदी सहित कई विषयों पर कविता का पाठ हुआ। अनिल कुमार विकल की पंक्ति- मैं ¨हदी हूं ¨हद का, अंग्रेजी सताती है, घुटन में जी रही हूं..से ¨हदी का का दर्द उभारा। खुशीलाल मंजर की गजल अपनी मर्जी से जीता हूं, तेरा क्या लेता हूं.. पढ़ी। विकास ¨सह गुल्टी ने छोड़ी के अपनो देहरी..अंगिका कविता सुनाई। मौके पर सरयुग सौम्य, रामधारी ¨सह काव्यतीर्थ, प्रेमसागर कुशवाहा, अंबिका झा हनुमान, संदीप वक्तनाम, दीनानाथ प्राणसुखका, ओम ¨सह पुष्कर, लक्ष्मण मंडल, सुनील झा सारंग, सोमकृष्ण आदि ने कविता पाठ किया। इसके पहले टीएनबी कॉलेज के सेवानिवृत प्रोफेसर सह साहित्यकार रामचंद्र घोष, प्रो.रामनरेश भगत, डा.अचल भारती व शंकर दास ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस मौके पर शिक्षण संस्थान और पत्रकारिता से जुड़े कई लोगों को सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम में कुंज बिहारी दास, नकुल प्रसाद यादव, सुनील कुमार दास, उमेश कुमार, मयंक राज, सपना कुमारी, तनु श्री, आर्यन राज, सूरज कुमार आदि ने प्रमुख रुप से भाग लिया। विचार गोष्ठी में डा.रामचंद्र घोष ने कहा कि भारतीय संविधान में धारा 343 से 350 तक ¨हदी को राजभाषा बनाने का जिक्र है। हम इसे दिन को भारतीय राजभाषा दिवस के रुप में मनाएं। ¨हदी में अगर मातृभाषा और राजभाषा बनने की योग्यता है तो यह राष्ट्रभाषा में जरूर बन सकती है।