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मैदान और नौकरी के अभाव में टूट रहा फुटबॉल से नाता

बांका। फुटबॉल विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्ध खेल है। यह शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी खेल है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 08:26 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 06:11 AM (IST)
मैदान और नौकरी के अभाव में टूट रहा फुटबॉल से नाता

बांका। फुटबॉल विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्ध खेल है। यह शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी खेल है। पहले बिहार के गांव-गांव में फुटबॉल खेला जाता था। दो दशक में ही स्थिति बदल गई है।

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किक्रेट दूसरी सभी खेल की दुश्मन बन कर सामने आई है। किक्रेट की चमक के बीच दूसरे सभी खेल संकट के दौर से गुजर रहे हैं। राज्यस्तरीय मोईनुल हक फुटबॉल के आयोजन में जुटे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी और रेफरी के मुताबिक बिहार में खेल मैदान और नौकरी का रास्ता खोलकर ही फुटबॉल में नई जान फूंकी जा सकती है।

नेशनल खेल चुके शिवहर के खिलाड़ी अमन ठाकुर कहते हैं कि बिहार में खिलाड़ियों के प्रोत्साहन का कोई इंतजाम नहीं है। सेना में 15 अंक बोनस ही फुटबॉल खिलाड़ियों का एकमात्र सहारा है। बिहार की नौकरियों में नेशनल खेलने वालों तक की कोई गुंजाइस नहीं है। नेशनल खिलाड़ी शिवहर के कप्तान पिटू सिंह कहते हैं कि सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने से फुटबॉल की यह दुर्दशा है। बांका की कौन पूछे पटना में भी फुटबॉल का एक स्तरीय स्टेडियम नहीं है। जब खेल मैदान ही नहीं मिलेगा तो बच्चे खेलेंगे कहां। रेफरी शिवव्रत गौतम कहते हैं कि फुटबॉल में प्रचार-प्रसार की कमी है। बांका के हर आदिवासी गांव में फुटबॉल जिदा है, लेकिन सुविधा नहीं है। रेफरी मु. सलाम कहते हैं कि फुटबॉल में क्रिकेट का चकाचौंध नहीं है। इस कारण फुटबॉल पिछड़ रहा है। धनबाद रेलवे में तैनात मुकेश राय कहते हैं कि फुटबॉल खेलकर उन्होंने रेलवे में नौकरी ली। खेल का क्रेज बढ़ा है। हर किसी को खेल में भी करियर चाहिए। कोई 10 साल फुटबॉल मैदान में पसीना बहाएगा तो उसे इससे रोजगार भी चाहिए। रोजगार का यह दरवाजा सभी स्तर पर खोलना होगा। राष्ट्रीय खिलाड़ी मोहन कुमार बताते हैं कि फुटबॉल की देश में स्थिति पहले से बेहतर हो रही है। पहले हम इसमें काफी पीछे थे। ओलंपिक क्वालिफाइंग तक हम पहुंच रहे हैं। फुटबॉल में करियर कभी खत्म नहीं होने वाला है। यह खेल भी कभी कम नहीं होगा।


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