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जीवनदायिनी बन गांवों को जीवन दे रही बुढ़ा बुढ़ी बांध

औरंगाबाद। बुढा-बुढ़ी बांध कई जंगलतटीय गांवों की जीवनदायिनी बन जीवन दे रही है। पहाड़ों की तराई में बसे

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 06:57 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 06:57 PM (IST)
जीवनदायिनी बन गांवों को जीवन दे रही बुढ़ा बुढ़ी बांध
जीवनदायिनी बन गांवों को जीवन दे रही बुढ़ा बुढ़ी बांध

औरंगाबाद। बुढा-बुढ़ी बांध कई जंगलतटीय गांवों की जीवनदायिनी बन जीवन दे रही है। पहाड़ों की तराई में बसे गांवों में कभी पेयजल संकट के लिए कोहराम होता था, आज गांवों के घरों का चापाकल गर्मी की लहकती तपिश में भी पानी दे रहा है। बांध से पालतू पशुओं के अलावा जंगली जानवरों एवं पक्षियों की जान बच रही है। यह गया औरंगाबाद की सीमा पर देव प्रखंड के अति नक्सल प्रभावित ढिबरा थाना के बरवासोई के जंगल में ग्रामीणों द्वारा पहाड़ों को जोड़कर बनाया गया बुढ़ा बुढ़ी बांध से संभव हुआ है। बांध बनने के पूर्व पानी के बिना जंगलों में रहने वाले जानवर एवं पक्षी बेमौत मर जाते थे। आज बांध के पानी से जीवन बचा रहे हैं। कई गांवों के लिए यह बांध जीवन रक्षक बन गई है। हालांकि ग्रामीणों का बांध बनाने का उद्देश्य नक्सल प्रभावित बरवासोई, बुढ़ा बुढ़ी, बंधनडीह, बरंडा, रामपुर, बलथर, लिलजी, बरनी, बारा समेत अन्य गांवों की बंजर भूमी को ¨सचाई सुविधा उपलब्ध करा हरियाली लाने की थी। लालफिताशाही व प्रशासनिक उपेक्षा से बंजर भूमी पर हरियाली नहीं आई पर हर वर्ष पेयजल संकट से जुझने वाले पहाड़ों की तराई में बसे गांवों का भागते जलस्तर रुका है, पशु और पक्षियों की जान बच रही है। बांध से कोसों दूर आसपास का नदी, नाला, तालाब समेत सभी जलस्त्रोत सूख गया है। ऐसी स्थिति में यह बांध इलाके के लिए वरदान साबित हुई है। बांध चारों तरफ हरियाली बिखेर रही है। वृक्षों की जान बची है। बांध के निर्माण पर करीब एक करोड़ खर्च किया गया है। बांध की ऊंचाई करीब 28 फीट और लंबाई करीब 110 फीट है। बांध की गहराई करीब 42 फीट है।बांध का निर्माण 2014 में शुरू किया गया और दिसंबर 2015 में समाप्त हुआ। हालांकि बांध से ¨सचाई के लिए की जाने वाली पइन का कार्य अधूरा रह गया है। कहते हैं स्थानीय ग्रामीण

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बरंडा रामपुर गांव के सुरेश ¨सह कहते हैं कि बांध का निर्माण जंगलतटीय व पहड़तली गांवों की बंजर भूमि को ¨सचित करने के लिए किया गया राशि के अभाव में बांध निर्माण के बाद पइन की खुदाई नहीं हो सकी। पइन की खुदाई नहीं होने से गांवों में ¨सचाई सुविधा तो नहीं मिली पर पहड़तली इलाके के गांवों में हर वर्ष भाग रहा जलस्तर रुक गया है। इस वर्ष गर्मी के इस मौसम में बांध के आसपास के गांवों में चापाकल पानी देना बंद नहीं किया है। जंगलों में चरने वाले पालतू पशु से लेकर जंगली जानवरों एवं पक्षियों की जान बच रही है। बांध नहीं बना था तो हर वर्ष गर्मी के मौसम में पानी के बिना जानवर अपनी दम तोड़ देते थे। जहां के तहां पशु व पक्षी मरे पड़े देखे जाते थे। इस वर्ष पशु की मौत नहीं हुई है। कहते हैं गोकुल सेना के अध्यक्ष

फोटो फाइल : 22 एयूआर 09

बांध बनाने में सहयोग को आगे आने वाली गोकुल सेना के अध्यक्ष संजीव नाराण ¨सह ने कहा कि पहड़तली इलाके में ¨सचाई सुविधा का अभाव देख बांध बनाने का निर्णय लिया गया। सेना के संरक्षक संजय सज्जन ¨सह एवं स्थानीय चतुर्गून पासवान, सिकंदर कुमार, सुधीर ¨सह समेत अन्य ग्रामीणों के सहयोग से इलाके के ग्रामीणों को आगे लाया गया और सहयोग की राशि से बांध का निर्माण शुरू किया गया। बांध का निर्माण तो पूरा हो गया पर बांध से ¨सचाई के लिए पइन की खुदाई नहीं हो सकी। पइन की खुदाई नहीं होने से इलाके में ¨सचाई सुविधा नहीं मिल सकी है। पइन खुदाई के लिए प्रयास जारी है। कहते हैं वन उप परिसर पदाधिकारी

फोटो फाइल : 22 एयूआर 10

वन उप परिसर पदाधिकारी अमित कुमार ने बताया कि बांध से वृक्षों के पटवन में सहूलियत हुई है। गर्मी के मौसम में बांध के आसपास के हजारों वृक्ष हरे भरे हैं। हर वर्ष पानी की तलाश में जंगली जानवर गांवों में उतर आते हैं बांध से उनकी जान बच रही है। बांध से इलाके का भागते जलस्तर में रुकावट आई है।


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