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पैसे के अभाव में अधूरा रह गया सामुदायिक शौचालय का सपना

औरंगाबाद। सामुदायिक शौचालयों के निर्माण और उसके संचालन को लेकर सरकार गंभीर है। परंतु स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार योजना को धरातल पर उतार नहीं पा रहे। इसका उदाहरण औरंगाबाद प्रखंड के छोटकी बांसडीह गांव में देखने को मिला। यहां छह माह से सामुदायिक शौचालय का निर्माण अधूरा पड़ा है। सरकारी पैसों की बर्बादी किस प्रकार की जाती है। वह यहां साफ दिख रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 11:16 PM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 11:16 PM (IST)
पैसे के अभाव में अधूरा रह गया सामुदायिक शौचालय का सपना

औरंगाबाद। सामुदायिक शौचालयों के निर्माण और उसके संचालन को लेकर सरकार गंभीर है। परंतु स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार योजना को धरातल पर उतार नहीं पा रहे। इसका उदाहरण औरंगाबाद प्रखंड के छोटकी बांसडीह गांव में देखने को मिला। यहां छह माह से सामुदायिक शौचालय का निर्माण अधूरा पड़ा है। सरकारी पैसों की बर्बादी किस प्रकार की जाती है। वह यहां साफ दिख रहा है।

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इसी साल गांव में करीब तीन लाख रुपये की लागत से सामुदायिक शौचालय का निर्माण शुरू हुआ। पैसे के अभाव में शौचालय का निर्माण कार्य अधूरा रह गया। पंचायत के जनप्रतिनिधि की मानें तो शौचालय निर्माण के लिए मात्र एक लाख सात हजार 750 रुपये मिले थे। उस पैसे का कार्य करा लिया गया है। आगे का पैसा नहीं मिलने के कारण ढलाई नहीं हो पाई है। शौचालय अधूरा ही पड़ा है। अंदर न शीट लगी है और न ही दरवाजे। गड्ढा खोद दिया गया है, उसमें पानी भर गया है। पानी की टंकी का कुछ पता नहीं है। ऐसे में ग्रामीण खुले में शौच को विवश हैं। सामुदायिक शौचालय में पैसों की बर्बादी

सामुदायिक शौचालय बनाने के नाम पर पैसों की बर्बादी हो रही है। सरकार के पैसों का बंदरबांट हो रहा है। परंतु इसका लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। कहीं शौचालय अधूरा है तो कहीं बदहाल हो गया है। देखरेख के अभाव में यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है। इस पर जिला प्रशासन का भी कोई ध्यान नहीं है। बैठकर इसकी समीक्षा कर दी जा रही है। कोई आन स्पाट देखने नहीं जाते हैं, इसका गलत फायदा उठाया जा रहा है।

-------------- सामुदायिक शौचालय के निर्माण और बिना इसके संचालन के प्रति कोई गंभीर नहीं है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि के द्वारा शौचालय का निर्माण कार्य अधूरा ही छोड़ दिया गया। इसकी जांच कराकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।

रघुवीर राम, ग्रामीण, छोटकी बसडीहा।


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