कभी तालाब के पानी से बनता था खाना, अब गंदगी के लिए विख्यात
औरंगाबाद । जल संकट वैश्विक संकट का स्थान लेता जा रहा है। जल संचय का दायरा नित्य सिमटता जा रहा है। जल
औरंगाबाद । जल संकट वैश्विक संकट का स्थान लेता जा रहा है। जल संचय का दायरा नित्य सिमटता जा रहा है। जल प्राप्ति की राह दुर्गम बनता जा रहा है। गांव में खोदे गए कुआं कब के भरे जा चुके हैं। छोटे तालाब का अस्तित्व कब का सिमट गया है। नल के पानी पर निर्भर आज की पीढ़ी को यह ख्याल न रहा कि बगैर जलाशय का जल प्राप्त करना कितना कठिन होगा। आधुनिक दौर डिब्बा व बोतल बंद पानी तक आ पहुंचा है फिर भी सामान्य मानव की चेतना शून्य है। भूजल दोहन के अनुरूप अब पाताल लोक में पानी की कमी स्पष्ट रूप से सामने आता जा रहा है। ऐसे में आवश्यक है कि बरसात के पानी को जलाशयों में संग्रह कर पाताल लोक के जलस्तर में वृद्धि करें। आवश्यक है कि हम प्राचीन जल संग्रह स्थल की पड़ताल करें। पड़ताल में कुटुंबा प्रखंड के चार प्राचीन तालाब आज अस्तित्व बचाने को बेताब है। कुटुंबागढ़ के तालाब के अस्तित्व पर खतरा
कुटुंबागढ़ के प्राचीन तालाब के संबंध में जब जानकारी लेने पहुंचा तो कोई व्यक्ति उसके निर्माण काल के संबंध में स्पष्ट जानकारी नहीं दे सका। गढ़ के इतिहास को अगर देखा जाए तो यह तालाब 14वीं-15वीं शताब्दी के पूर्व का माना जा सकता है। गढ़ की खोदाई से तो इसके निर्माण का स्वरूप वैदिक काल का माना जा सकेगा। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब से वे जन्म लिए तब से तालाब देख रहे हैं। अधिकांश लोग बताते हैं कि यह राजतंत्र के समय से मौजूद है। प्राचीन तालाब लगभग 13 एकड़ की है। सीताराम भगत का कहना है कि तालाब अब सिमट गया हैं। तालाब 50 से 60 एकड़ जमीन पर फैला था। तालाब पर घाट बना था जहां पर्व त्योहार के अवसर पर विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान संपन्न किया जाता था। अब तालाब की गहराई वो नहीं रही। ¨सचाई व अनुष्ठान का केंद्र था तालाब : ओंकारनाथ
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पूर्व मुखिया ओंकारनाथ ¨सह बताते हैं कि उक्त तालाब से कुटुंबा व आसपास के गांव की अ¨सचित भूमि की ¨सचाई सालों भर की जाती थी। तालाब गांव वालों का एक मात्र सहारा था जिससे कई प्रकार का कार्य किया जाता था। उन्होंने बताया कि दक्षिणी क्षेत्र स्थित पहाड़ की श्रृंखलाओं से छनकर पानी पनसहिया नाले के रास्ते तक यहां पहुंचता था। साफ व स्वच्छ पानी की धारा तालाब में बहती थी। बताया कि चार प्राचीन तालाब कुटुंबागढ़ तालाब, झिकटिया तालाब, मलहा सलहा तालाब एवं खैरों तालाब प्रखंड का पुराने समय का तालाब है। मलहा सलहा, खैरों तालाब पर अब सरकार का कब्जा है जबकि कुटुंबा व झिकटिया का तालाब व्यक्तिगत कब्जे में है। कौन है तालाब का मालिक
वर्तमान में प्राचीन तालाब के दो हिस्सेदार हैं। एक पक्ष में बिनोद ¨सह, अनिरूद्ध ¨सह एवं आशीष ¨सह एवं दूसरे पक्ष से पूर्व मुखिया ओंकारनाथ ¨सह, विश्वनाथ ¨सह, रामसुंदर ¨सह एवं रामनारायण ¨सह है। तालाब में फेंकी जाती है गंदगी
प्राचीनगढ़ के तालाब में अब केवल बरसात में ही पानी देखने को मिलता है। पूरे वर्ष तालाब सूखा पड़ा रहता है। अब ¨सचाई कम शौच क्रिया का केंद्र बन गया है तालाब। आसपास के बसावटों का शौचालय व नाली का पानी तालाब में गिरता है। बदबू, सड़न एवं बहाकर लाई गई मिट्टी के कारण तालाब की गहराई अब मात्र 10 से 15 फीट ही रह गई है। लंबे चौड़े भू भाग का तालाब सिमट कर छोटा हो गया है। ग्रामीण बताते हैं कि पुराने जमाने में तालाब का पानी से कुटुंबावासी दाल पकाते थे। बरसात में होता है मछली पालन
गढ़ का तालाब में बरसात के दिनों में मछली पालन का काम होता है। तालाब मालिक बताते हैं कि चार से पांच ¨क्वटल मछली प्रतिवर्ष निकाली जाती है। तालाब की उड़ाही कई दशकों से नहीं हो पाया है। पास के तालाब में युवा खेलते हैं क्रिकेट
पास में ही स्व. संतन भगत ने एक तालाब 50 के दशक में खोदवाया है। वर्तमान में उक्त तालाब में गांव के युवा क्रिकेट खेलते नजर आए। बताया जाता है कि उक्त तालाब से ग्रामीण महिलाएं बर्तन धोना, दाल पकाने का काम लेती थी। संतन के पांच पुत्र का अब उक्त तालाब पर कब्जा है। बड़े पुत्र पूर्व फौजी सीताराम भगत बताते हैं कि तालाब में गंदगी फेंके जाने लगा जिस कारण इसका महत्व घट गया। प्राचीनगढ़ का तालाब व उक्त तालाब में लोग छठ पूजा के दौरान अर्ध्य देने आते थे गंदगी के कारण अब यहां छठ के दौरान सन्नाटा पसरा रहता है। तालाब का मिटता जा रहा है अस्तित्व : नागेश्वर
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नागेश्वर दुबे बताते हैं कि प्राचीन गांव कुटुंबा की बात करें तो यहां पहले 50 फीट पर पानी मिल जाता था। वर्तमान समय में 100 से 150 सौ फीट की गहराई में जाने पर पानी मिलता है। धीरे-धीरे जल स्तर नीचे चला गया। गर्मी के दिनों में चापाकल पानी देना बंद कर देता है। जलस्तर जिस प्रकार से खिसक रहा है लोग पानी के लिए बेचैन हो जाएंगे। ओंकारनाथ ¨सह बताते हैं कि तालाब कितना पुराना है इसका पता लगाना अब कठिन है।तालाब की भूमि की खरीद की गई है जिसपर अब दो पक्ष का कब्जा है। तालाब का अस्तित्व धीरे-धीरे मिटता जा रहा है। सरकार की ओर से तालाब के लिए पर्याप्त धन राशि नहीं मिलने के कारण भी लोग इसकी उड़ाही नहीं करा पाते हैं। सफाई का ख्याल आमजन नहीं रख पाते जिस कारण इसकी उचित देखभाल संभव नहीं हो पा रहा है। तालाब पर पहले रहता था चहल-पहल : नेशार
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पूर्व सरपंच नेशार अहमद का कहना है कि प्राचीनगढ़ का तालाब पर युवावस्था में चहल पहल देखा करता था। धार्मिक अनुष्ठान, पानी लेने की होड़, ग्रामीणों द्वारा स्नान करने तथा विभिन्न आयोजन के कारण तालाब पर हर दिन कुछ न कुछ गतिविधियां देखने को मिलती थीं। बीते 20 वर्षों के दौरान लोग तालाब से दूर हो गए। उक्त स्थान पर स्वच्छता ने गंदगी का रूप ले लिया। लोग तालाब में बहाते है गंदगी : चंद्रशेखर
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प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर प्रसाद साहू कहते हैं कि प्राचीन तालाब पर लोग कब्जा कर लिए हैं। बसावट के लोग गंदगी तालाब में बहाते हैं। तालाब की स्वच्छता बनाए जाने के लिए बसावट वाले स्थान से नाला निकालकर पईन में गिराया जाना चाहिए। तालाब में पानी की व्यवस्था की जानी चाहिए। स्वच्छता के लिए प्रत्येक ग्रामीण अपनी जिम्मेदारी को समझें तो फिर तालाब के पुराने दिनों को लौटाया जा सकता है। तालाब यहां के लोगों के बन सकती है नजीर : सावित्री
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मुखिया कुमारी सावित्री ¨सह बताती है कि प्राचीनगढ़ का तालाब कुटुंबा वासियों के लिए एक नजीर बन सकता है। जरूरत है तालाब के मालिक व पंचायत प्रतिनिधियों के मेल से उसका विकास करने की। सरकार जलाशयों के विस्तार के लिए प्रयासरत है पर अब तक पंचायत के प्राचीन तालाब पर काम नहीं कराया जा सका है। ऐसे कई तालाब हैं जिसकी उड़ाही कर एवं जल भरने की व्यवस्था कर उसे कामयाब बनाया जा सकता है। मुखिया ने कहा कि यह ¨चता केवल सरकार की नहीं है बल्कि बदलते मौसम से पर्यावरण में भी बदलाव आया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्षा अब नाम मात्र की हो रही है। ऐसे में जलाशयों को बचाया जाना आवश्यक है। तालाब उड़ाही की राशि हो गया बंद : प्रमुख
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प्रमुख धर्मेंद्र कुमार से जब पूछा गया कि तालाब उड़ाही के लिए क्या प्रावधान है तो उन्होंने बताया कि विगत कई वर्षो से सरकार द्वारा इसके लिए राशि देना बंद कर दिया गया है। एक अलग जल संरक्षण विभाग बनाकर कार्य कराया जा रहा है। मनरेगा के माध्यम से नए तालाब बनाए जा रहे हैं। ग्राम पंचायत की मुखिया उड़ाही का कार्य को मनरेगा से कराने में सक्षम हो सकतीं है। आवश्यकता है प्रखंड स्तर पर जल संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने की।