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न दवा न पानी, यही है सदर अस्पताल की कहानी

औरंगाबाद। सदर अस्पताल में मरीजों का इलाज नहीं हो रहा है। अस्पताल को आइएसओ का दर्जा प्राप्

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 05:30 PM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 05:30 PM (IST)
न दवा न पानी, यही है सदर अस्पताल की कहानी

औरंगाबाद। सदर अस्पताल में मरीजों का इलाज नहीं हो रहा है। अस्पताल को आइएसओ का दर्जा प्राप्त है, परंतु सुविधा नगण्य है। माडल अस्पताल में जो सुविधा होनी चाहिए वह नहीं है। दूर के गांव से अस्पताल पहुंचने वाले मरीज इलाज को तड़पते हैं। अस्पताल में चिकित्सक के साथ दवा की कमी है। अस्पताल में बेहतर इलाज नहीं हो पाता है। मरीजों को दवा नहीं मिल रहा है। अस्पताल में न बुखार की दवा है, न खांसी का सिरप, न उल्टी की दवा और न ही पेट दर्द की गोली। यहां सभी कार्य भगवान भरोसे चल रहा है। मौसम में हो रहे उतार-चढ़ाव के कारण मरीजों की संख्या बढ़ी है। दवा न रहने के कारण चिकित्सक मरीज को पुर्जा थमा देते हैं। अस्पताल में 71 की जगह मात्र 22 दवा उपलब्ध है। बदलते मौसम में आमजन वायरल बुखार से पीड़ित हैं। बुखार उतारने को पारासीटामोल चाहिए परंतु यहां नहीं है। बदलते मौसम में खांसी के मरीज बढ़ जाते हैं, खांसी का सिरप छह माह से अस्पताल में खत्म है। पूछने पर कहा जाता है कि सरकार द्वारा खांसी की सिरप बंद कर दी गई है। कई और प्रमुख दवा का अभाव है। चिकित्सक जो दवा लिख रहे हैं उसमें अधिकतर दवा अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। दवा के लिए मरीजों को बाजार का दौड़ लगाना पड़ रहा है। दवा के मामले में आउटडोर के अलावा इंडोर की स्थिति बदतर है। बुधवार को सदर अस्पताल में इलाज कराने पहुंची शुभावती देवी ने बताया कि मेरे पुत्र अभिमन्यु को तीन दिन से बुखार लग रहा है एवं खांसी है। चिकित्सक से इलाज कराया। उन्होंने दवा लिखी परंतु यहां नहीं मिल रहा है। दवा काउंटर से बताया कि यह दवा खत्म हो गई है, बाहर से लेना पड़ेगा।

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न जांच की सुविधा न अल्ट्रासाउंड की : सदर अस्पताल में चिकित्सक एवं दवा की कमी के साथ कई महत्वपूर्ण सामग्री नहीं है। विभागीय अधिकारियों को पता है परंतु वे चुप बैठे हैं। अस्पताल में जांच घर की स्थिति अत्यंत दयनीय है। जांच घर में न तो खून निकालने वाला लेनसेट है और न ही टाइफाइड जांच करने वाला कीट। हेपेटाइटिस एवं सुगर जांच करने का सामान नहीं है। सोचा जा सकता है कि यह सामग्री प्रतिदिन उपयोग होता है। सबसे अधिक उपयोग लेनसेट का होता है। लेनसेट नहीं होने के कारण टेक्निशियन के नीडील से मरीजों का खून निकालते हैं। टाइफाइड एवं सुगर जांच के लिए मरीजों को बाहर जाना पड़ेगा। मरीज निजी नर्सिंग होम में अधिक पैसे देकर जांच कराते हैं। जिले के एक भी सरकारी अस्पतालों में आल्ट्रासाउंड नहीं होता है। सदर अस्पताल में प्रतिदिन करीब 300 महिलाएं इलाज के लिए आती है। 100 से ज्यादा महिलाओं को आल्ट्रासाउंड करवाना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में आल्ट्रासाउंड न होने के कारण परेशानी होती है। गरीब मरीज पैसा न रहने पर बगैर जांच कराए घर चले जाते हैं।

दवा की खरीदारी में फंसी है पेंच

: जिले के सरकारी अस्पतालों में दवा खरीदारी में पेंच फंसा है। किसी तरह अस्पताल का विधि व्यवस्था संचालित हो रहा है। मरीज अधिकारियों को कोसते रहते हैं और अधिकारी विभाग को। अधिकारियों का कहना है कि दवा खरीदारी के लिए विभाग द्वारा आदेश नहीं मिल रहा है। विभाग खुद दवा उपलब्ध कराएगा। छह महीने से सदर अस्पताल में दवा नहीं है परंतु अधिकारी चैन की नींद सो रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ. अमरेंद्र नारायण झा ने दवा की खरीदारी के लिए स्वास्थ्य विभाग के उपसचिव को पत्र लिखा था। अस्पताल प्रबंधन ने इंडिया मार्ट पोर्टल से दवा की खरीदारी के लिए योजना बनाई थी परंतु उपसचिव ने रोक लगा दिया। प्रबंधन की माने तो विभाग जेम पोर्टल से दवा खरीदारी कर उपलब्ध कराएगी। सिविल सर्जन ने पारासीटामोल, आइवी सेट, खांसी का सिरप, मेट्रोनिडाजोल, ओ¨रडाजोल, डाइक्लोफैनिक इंजेक्शन समेत 14 दवा उपलब्ध कराने के लिए पत्र लिखा है। बताया जाता है कि नियम के पेंच में मामला फंस गया है।

अब तक नहीं खुला आइसीयू का ताला : सदर अस्पताल में आइसीयू में इलाज का सपना पूरा अधूरा रह गया। 21 अप्रैल 2017 को आइसीयू का उद्घाटन सांसद सुशील कुमार ¨सह ने किया था। 21 महीने बीत गया पर इसमें इलाज नहीं हुआ। आइसीयू में ताला लटका है। उद्घाटन के समय आइसीयू के बारे में लंबे वादे किए थे पर आज हालात बदतर है। आइसीयू का निर्माण पावर ग्रिड द्वारा करीब दो करोड़ 77 लाख की लागत से किया गया था परंतु इसका लाभ यहां के मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। विभाग चिकित्सक की कमी बता चुप हो गया है। आइसीयू चालू नहीं हुआ परंतु 2.5 लाख रुपये बिजली बिल की भुगतान कर दिया गया। सोच सकते हैं कि जब आइसीयू चालू नहीं हुआ बिजली बिल कैसे आ गया।

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अस्पताल में शीघ्र उपलब्ध होगी दवा : सीएस

फोटो : 12 एयूआर 02

सिविल सर्जन डॉ. अमरेंद्र नारायण झा ने स्वीकार किया है अस्पतालों में चिकित्सक के साथ नर्सों की कमी है। चिकित्सकों के कमी की सूचना विभाग को भेजा गया है। जितने चिकित्सक कार्यरत हैं उससे बेहतर तरीके से मरीजों का इलाज किया जा रहा है। अस्पताल में दवा की कमी है। कई महत्वपूर्ण दवाएं नहीं है। शीघ्र ही दवा की आपूर्ति की जाएगी। विभाग द्वारा पत्र प्राप्त हो चुका है। इसकी सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। दवा को लेकर मरीजों को परेशानी न हो इसका ख्याल रखा जाएगा। आल्ट्रासाउंड शुरू कराने की प्रक्रिया चल रही है। सदर अस्पताल में मरीजों के लिए यह सुविधा शीघ्र उपलब्ध होगी।


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