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अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा नगर भवन

संतोष अमन, दाउदनगर (औरंगाबाद) : अभिनय एक कला है और रंगमंच में अभिनेता कलाकार। वह दूस

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 12:21 AM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 12:21 AM (IST)
अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा नगर भवन
अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा नगर भवन

संतोष अमन, दाउदनगर (औरंगाबाद) : अभिनय एक कला है और रंगमंच में अभिनेता कलाकार। वह दूसरे की रचना का रचयिता और व्याख्याता दोनों है उसका यंत्र उसका शरीर है, इसमें वह एक ही समय में रचयिता और रचना दोनो है। ये समझ कुछ हद तक अभिनेता के प्रशिक्षण की गुणवत्ता और प्रकार निर्धारित कर देते हैं लेकिन प्रशिक्षण के अभाव में दाउदनगर की सांस्कृतिक गतिविधियां मिटती जा रही है। कारण अभ्यास स्थल का अभाव है। दाउदनगर शहर कलाकारों की है और यहां के कलाकार बाहर में जलवा दिखा चुके हैं। अपने शहर में कोई कार्यक्रम के लिए यहां नगर भवन रहते भी अन्य जगह का चुनाव करना पड़ता है। शहर में जब नगर भवन बना था तब शहर के रंगमंच के कलाकारों के लिए टाउन हॉल एक तोहफा से कम नहीं था, लेकिन आज नगर भवन अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। छोटे बड़े संस्कृति, राजनीतिक या सामाजिक कार्यक्रम के लिए एक नगर भवन की आवश्यक होता है। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर करीब 16 वर्ष पहले दाउदनगर में नगर भवन का निर्माण तत्कालीन विधायक राजाराम ¨सह के ऐच्छिक निधि से कई चरणों में कराया गया था। सांस्कृतिक कार्यक्रम या अन्य कार्यक्रम कराने लायक नगर भवन की स्थिति ठीक नहीं है। कार्यक्रम करने में सर्वाधिक समस्या आवाज को लेकर होती है। ध्वनी गुंजने से बोल स्पष्ट नहीं सुनाई पड़ते हैं। छत से पानी टपकने की शिकायत मिलती है।ओबरा के तत्कालीन विधायक सह मंत्री रामविलास ¨सह ने 17 जुलाई 1993 को गोह के तत्कालीन विधायक रामशरण यादव की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में दाउदनगर नगर भवन का शिलान्यास किया था। निर्माण कार्य वर्ष 2002 के आसपास तत्कालीन विधायक राजाराम ¨सह के ऐच्छिक निधि से किया गया था। प्रोत्साहन न मिलने से बंद हो नाटक का मंचन

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शहर में वर्षों पहले नाटक का मंचन होता था। रंगमंच के अच्छे कलाकार हुआ करते थे। मंच से कलाकार ।यहां के कलाकार बाहर जाकर भी अपना जलवा बिखेर चुके हैं। स्थानीय कलाकार ब्रजेश कुमार एवं द्वारिका प्रसाद बताते हैं कि पहले जन सहयोग एवं आपसी चंदा कर नाटक का मंचन किया जाता था, लेकिन आज स्थिति यह हो गई है नाटक खेलना महंगा हो गया है। एक नाटक खेलने में मंच समेत 40 से 50 हजार खर्च हो जाता है। पहले की अपेक्षा नाटक के प्रेमी भी नहीं रहे। नाटक के समझने वालों के भी कमी आ गई है। धीरे-धीरे नाटक विलुप्त होता जा रहा है। अब इक्का-दुक्का कहीं नाटक मंचन होता है। कलाकार संजय तेजस्वी, मास्टर भोलू, गो¨वदा राज, विकास, सुशील पुष्प, लोक गायक पंकज पाल, अंजन ¨सह, संदीप ¨सह का कहना है कि शहर में नगर भवन के होते हुए भी अपनी कला के प्रदर्शन हेतु अलग जगह पर मंच बनाना पड़ता है जिसमें सभी संसाधन उपलब्ध कराने में काफी खर्च आती है। असली सांप के साथ की थी भूमिका

वर्ष 1980 में यहां के कलाकार अभिनव कला परिषद के बैनर तले पराजय नामक नाटक लेकर देव गए थे। उसी समय देव में कल हमारा है फिल्म का शू¨टग चल रहा था। उस फिल्म के निर्देशक केके हंगल निर्णायक मंडली में थे। इस नाटक में दाउदनगर के चर्चित वरिष्ठ कलाकार डा. दिनू प्रसाद एक सपेरे की भूमिका में थे। उन्होंने ¨जदा कोबरा सांप लेकर मंच पर आए तो सभी दंग रह गए। बताया जाता है कि रिहर्सल में सांप ने इन्हें डंस लिया था, फिर भी असली सांप के साथ भूमिका को निभाया। इस नाटक ने प्रथम पुरस्कार जीता। नाटक में मुनीब की भूमिका निभाया तो वो भी बहुत चर्चित हुआ था।उन्हें आज भी लोग मुनीब जी ही कहते हैं। नब्बे के दशक में दुर्गा पूजा के अवसर पर दो दिवसीय संगीत ड्रामा का मंचन होता था।देवकुमार, श्याम लाल प्रदेशी, लाल बिहारी सहित लोग भूमिका निभाते थे। दर्शक रात भर टीके रहते थे। फंड लेने में हो रही है परेशानी

एसडीओ अनीस अख्तर का कहना है कि इस संबंध में वे सांसद और विधायक से संपर्क किए हैं। उन्होंने बताया कि यह किसी विभाग के अंतर्गत नहीं है, जिस कारण फंड लेने में परेशानी हो रही है। वे खुद चाहते हैं कि शीघ्र नगर भवन का जीर्णोद्धार हो।


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