क्रोध युक्त शरीर से भगवान रहते हैं दूर : जीवेंद्र कृष्ण शास्त्री
औरंगाबाद। शरीर में क्रोध का घर होने पर ईश्वर उससे दूर रहते हैं। जब तक मनुष्य क्रोध के वश में रहता
औरंगाबाद। शरीर में क्रोध का घर होने पर ईश्वर उससे दूर रहते हैं। जब तक मनुष्य क्रोध के वश में रहता है उसे परमात्मा दिखायी नहीं देते। तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसका उल्लेख किया है। विभीषण रावण प्रसंग में कहा है कि-भजन न हो¨ह निज तामस देहा। उपरोक्त बातें सतबहिनी महोत्सव में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में वाराणसी से आए प्रवचनकर्ता जीवेंद्र शास्त्री ने गुरुवार शाम को कही। कहा कि परमात्मा सर्वसंपन्न, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान है उसे कुछ नहीं चाहिए। परमात्मा शहंशाह है। शहंशाह का उदाहरण देते हुए कहा कि-चाह गई ¨चता गई मनमा वेपरवाह, जिनको कुछ न चाहिए वे हैं शहंशाह। ईश्वर सत्य का सहचर हैं और सत्य भूत भविष्य और वर्तमान में कायम रहता है। श्रीमछ्वागवत से राधा प्रसंग पर कहा-राधिका आत्मोअस्य अर्थात राधा आत्मा है। आत्मा में परमात्मा का वास होता है। कहा कि वैदिक काल से हमारी संस्कृति में स्त्रियां पूज्य रहीं है। स्त्री धरती है धरती अर्थात धारण करनेवाली। जो धारण करती है वही मां हैं। कहा कि स्वर्ग में सत्संग नहीं होता। स्वर्ग तो सत्य से परिपूर्ण है। प्रवचनकर्ता ने कहा कि संसार से सिर्फ धर्म ही साथ जाता है। इसलिए मनुष्य को धर्म धारण कर जीवन को सफल बनाना चाहिए। कहा कि देवी की पूजा देवता मनुष्य दानव सभी ने की है। स्त्रियां पूज्य हैं वे ममता की पूंज होती हैं। जहां ममता है वहां परमात्मा प्रकट होते हैं। कहा कि भारत भूमि पर नारी पूजा वेदकालीन संस्कृति का हिस्सा रहा है। प्रत्येक काल में स्त्री की मर्यादा की रक्षा के लिए स्वयं भगवान ने अलग-अलग रूप धारण कर रक्षार्थ खड़ा होते आए हैं। कलिकाल में नारी की अस्मत, मर्यादा से खेला जा रहा है जो पतन का मार्ग बता रहा है। उन्होंने कहा कि कलिकाल में भी राम का नाम कलियुग पर भारी पड़ रहा है। इससे स्पष्ट होता है। कि राम नाम हर बाधा का हल है। अवसर पर सिद्धेश्वर विद्यार्थी, लखराज पांडेय, नर¨सह पांडेय, शंकर पांडेय, प्रो. अरूण कुमार ¨सह, संजय गुप्ता, प्रवीण गुप्ता समेत भारी संख्या में लोग मौजूद थे।