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तीन दशक में डिल्ला समाप्त, तीन किलोमीटर पश्चिम खिसका सोन

अमरकंटक से निकलकर बिहार में गंगा में मिलने वाले सोन के अस्तित्व पर संकट दिखने लगा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 04:43 PM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 04:43 PM (IST)
तीन दशक में डिल्ला समाप्त, तीन किलोमीटर पश्चिम खिसका सोन
तीन दशक में डिल्ला समाप्त, तीन किलोमीटर पश्चिम खिसका सोन

दाउदनगर (औरंगाबाद)। अमरकंटक से निकलकर बिहार में गंगा में मिलने वाले सोन के अस्तित्व पर संकट दिखने लगा है। यदि सरकार और जनता नहीं सजग हुई तो आने वाले दशक में वह पुनपुन की तरह नाला या नहर बन सकता है। जलवायु परिवर्तन, वृक्षों का कटना व खनन इसके मुख्य कारण माने जा रहे हैं।

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छठवीं सदी में सोन तरार देवकुंड होते हुए रामपुर चाय की तरफ जाता था। 1400 वर्ष में यह 10 से 25 किलोमीटर पश्चिम खिसक गया। अब सोन बीते तीन से चार दशक में करीब दो से तीन किलोमीटर पश्चिम खिसक गया है। खिसकने के क्रम में सोन जो जमीन छोड़ रहा है, उस पर खेती हो रही है। कभी सोन का विकराल रूप हुआ करता था। उसका बाढ़ हुल्लड़ कहलाता था। दाउदनगर में महादेव स्थान के बाद डिल्ला शुरू होता था। उसके बाद जलधारा। जहां आज धोबी घाट बन गया है। पानी घुटने भर भी नहीं रहता। सोन में स्नान करना हो या सूर्य को अ‌र्घ्य देना हो, अब दो से तीन किलोमीटर अधिक पश्चिम दिशा में यात्रा करनी पड़ती है। सोन के दोनों तरफ पेड़ लगाना ही उपाय : सुनील

फोटो : 15 एयूआर 11

सेंटर फॉर व‌र्ल्ड सॉलिडेरिटी संस्था से जुड़कर बीते कई वर्षों से सोन एवं पुनपुन पर काम कर रहे जदयू नेता सुनील कुमार सिंह का कहना है कि सोन के दोनों किनारे पेड़ लगाकर नदी के जीवन को बचाया जा सकता है। खनन को सीमित करना होगा। उन्होंने बताया कि बड़े जोत वाले किसानों को जागरूक कर उनकी जमीनों पर बड़े पैमाने पर पौधारोपण कराना होगा। बाढ़ रक्षा के लिए प्राकृतिक रचना रचना थी डिल्ला : अवधेश

फोटो : 15 एयूआर 12

बीते चार दशक से सुबह में सोन की सैर करने वाले अवधेश कुमार पांडे बताते हैं कि डिल्ला खत्म हो गया। इस पर चढ़कर हम लोग कूदते थे। चढ़ने में थक जाते थे। शहर को बाढ़ से बचाने के लिए यह प्राकृतिक रचना थी। इसके बाद सोन शुरू हो जाता था। आज स्थिति यह है कि डिल्ला भी समाप्त हो गया और सोन की जलधारा भी नहीं बची। बालू की निकासी से परेशानी : मृत्युंजय

फोटो : 15 एयूआर 13

बीते 15 वर्ष से सुबह सोन जाने वाले मृत्युंजय कुमार का कहना है कि बालू की निकासी से काफी तरह की परेशानी आई है। डिल्ला के साथ-साथ सोन का प्राकृतिक सौंदर्य भी खत्म हो गया। जलधाराएं सिमटती चली गईं। आज स्थिति यह है कि सोन में पानी की तलाश के लिए 2 से 3 किलोमीटर की अधिक यात्रा करनी पड़ती है। बाढ़ देखे कई दशक बीत गए। ----------------------------

- खनन के कारण धीरे-धीरे बर्बाद हो रहा सोन

- कभी डिल्ला पर मस्ती करते थे नौजवान

- आने वाले तीन दशक में नाला बन सकता है सोन


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