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पपीता की खेती कर रहा दिव्यांग दीनानाथ

औरंगाबाद । कहा जाता है कि जज्बे में जो शक्ति है उसका उपयोग कर व्यक्ति अपना मुकाम बना लेता है। कृषि क

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 May 2018 11:06 PM (IST)Updated: Wed, 30 May 2018 11:06 PM (IST)
पपीता की खेती कर रहा दिव्यांग दीनानाथ
पपीता की खेती कर रहा दिव्यांग दीनानाथ

औरंगाबाद । कहा जाता है कि जज्बे में जो शक्ति है उसका उपयोग कर व्यक्ति अपना मुकाम बना लेता है। कृषि का क्षेत्र विस्तृत एवं स्थायित्व का द्योतक है। भारत किसान का देश है बचपन में यह बात बच्चों को बतायी जाती थी। आज का युवा नयी तकनीक की ओर दौड़ लगा रहा है। विज्ञान की प्रगति ने उसे उसके पैतृक पेशे कृषि से अलग कर रखा है। इन सबके बावजूद कृषि का क्षेत्र अछूता नहीं है। औरंगाबाद जिले में युवा किसान के जज्बे को देख लोग गौरवान्वित हो रहे है। जिले के भिन्न भिन्न गांव में युवा किसान नए फसल व पौधे लगाकर ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। यह कृषि की नई प्रगति का इबारत है। ट्रैक्टर मैकेनिक का खेती की ओर झुकाव एक मिसाल

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अंबा के दधपा बिगहा का किसान सह ट्रैक्टर मैकेनिक दिव्यांग दीनानाथ वर्मा ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। दीनानाथ ने डेढ़ बीघा खेत में रेड लेडी पपीता की खेती कर सुर्खियों में छाया है। औषधीय खेती के प्रति लगाव के संबंध में दीना ने बताया कि ओबरा प्रखंड के रघुनाथपुर गांव निवासी सुरजीत पाठक से उसे प्रेरणा मिली। सुरजीत को यह प्रेरणा उद्यान विभाग औरंगाबाद से मिली। सुरजीत बीज की अनुपलब्धता के कारण मात्र एक बीघे में पपीते की खेती कर रहे हैं। दीना ने बताया कि बीज बनारस से मंगाया गया था। वहां लाल पपीते को देख जिज्ञासा हुई की यह खेती लाभकारी हो सकती है एवं ठान लिया कि अब खेती करेंगे। 10 ग्रामबीज की कीमत है तीन हजार

किसान दीनानाथ ने बताया कि पपीते का बीज तीन हजार प्रति दस ग्राम की दर से मंगाया। बीज को फरवरी माह के प्रारंभ में ही बिचड़ा डाल दिया। मार्च के अंत तक बिचड़ा तैयार हो गया। उनमें से कुछ बिचड़े गल गए तथा कुछ नष्ट भी हुआ। डेढ़ बीघा खेत में उसे लगाया गया है। फरवरी से शुरू कर दी जाती है खेत की तैयारी

खेत को उर्वर बनाने के लिए विशेषज्ञों की मदद से फरवरी माह से ही इसकी तैयारी कर दी जाती है। मार्च महीने के अंत में बिचड़े को तीन फीट का बेस लेकर खेत में लगा दिया जाता है। इस बीच पानी का विशेष ध्यान रखा जाता है। खेत को हल्का बनाने के लिए खुरपी से पेड़ के जड़ों के आस पास मिट्टी को भुरभुरा बना दिया जाता है। दीनानाथ ने बताया कि अप्रैल माह से सितंबर माह तक यह कार्य चलता रहता है। अक्टूबर के महीने में पपीता का फल पककर तैयार होने लगता है। समय समय पर दवा का छिड़काव आवश्यक

दिव्यांग किसान ने बताया कि फल व पेड़ को बचाए रखने के लिए रोग को देखकर उस पर दवा का इस्तेमाल किया जाता है। दवा छिड़काव से फल का बचाव होता है। कहां है बाजार और क्या है मूल्य

दीनानाथ ने बताया कि वैसे तो गुणकारी पपीते की मांग पूरे देश में है। औरंगाबाद के किसान द्वारा उत्पादित फल को जिले के फल व्यवसायी अपने लिए खरीद लाते हैं। वे बताते हैं कि 20 से 40 रुपये प्रति किलो की दर से फल बेच देते हैं। लागत में बीज, खाद, पानी व रासायनिक दवा का खर्च आता है। फल का वजन दो किलो से पांच किलो तक का हो सकता है। पपीता में कैल्सियम के साथ विटामिन ए

औषधीय फल पपीता में विटामिन ए की प्रचुरता है। विटामिन ए त्वचा एवं नेत्र रोग से बचाव करता है। पपीते में कैल्सियम की मात्रा भी बहुतायत होतें हैं। कैल्सियम रक्त तंतुओं का निर्माण, हृदय, एवं नाड़ियों के लिए लाभदायक है। यह नेत्र रोग के लिए भी आवश्यक माना जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के जमाने में लगभग हर व्यक्ति को पेट का रोग किसी न किसी रूप में घेर रखा है। पपीता में पाया जानेवाला पेप्सिन नामक तत्व पांचन क्रिया व आंत के लिए रामबाण माना जाता है। पपीता को औषधीय गुण का भंडार कहें तो यह गलत नहीं होगा। पपीता के बारे में कहा जाता है कि यह सुपाच्य तथा शरीर को तत्काल आवश्यक तत्व दे देता है। अगले वर्ष तो पपीता तब सुर्खियों में आया था जब घातक रोग डेंगू से बचने के लिए लोग इसके पत्ते का अर्क पी रहे थे। यह खून में प्लेट्स की मात्रा को बढाने में सहायक होता है।


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