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Chhath Puja 2022: देव में चार दिनों के प्रवास का किराया 10 हजार तक, छठ में आठ लाख से अधिक व्रती आने की संभावना

Chhath Puja 2022 यहां छठव्रती के स्वजन खुद किसी माध्यम से आरक्षित कराते हैं आनलाइन बुकिंग की व्यवस्था नहीं है। घर-घर होटल बन जाते हैं कोई फिक्स रेट नहीं कोई पावती नहीं कमरे शौचालय व पेयजल की व्यवस्था के अनुसार मोलभाव करिए और चार दिनों के लिए कमरा आपका।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Published: Wed, 26 Oct 2022 11:01 AM (IST)Updated: Sat, 29 Oct 2022 08:25 AM (IST)
Chhath Puja 2022: देव में चार दिनों के प्रवास का किराया 10 हजार तक, छठ में आठ लाख से अधिक व्रती आने की संभावना
Chhath Puja 2022: सूर्यमंदिर और ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीन स्वरूपों में सूर्यदेव

शुभम कुमार सिंह/गंगा भास्कर, औरंगाबाद/देव। Chhath Puja 2022: औरंगाबाद जिले के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर देव में इस बार छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान के लिए आठ लाख से अधिक श्रद्धालु व उनके स्वजन के आने की संभावना है। इस मौके पर देव के लगभग चार हजार घर सराय बन जाएंगे। छठव्रतियों के मन में छठ के दौरान देव में प्रवास का इतना महत्व है कि इस बार एक कमरे का चार दिनों का किराया 10 हजार रुपये तक पहुंच गया है। सारे गृहस्वामियों ने दो से तीन माह पहले ही अपने घर के अतिरिक्त कमरे आरक्षित कर दिए हैं। 

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आनलाइन बुकिंग की व्यवस्था नहीं 

संभवत: यह देश में एकमात्र ऐसे ठहराव की व्यवस्था है, जहां छठव्रती के स्वजन खुद आकर या अपने किसी स्थानीय नाते-रिश्तेदार के माध्यम से आरक्षित कराते हैं, आनलाइन बुकिंग की व्यवस्था नहीं है। घर-घर होटल बन जाते हैं, कोई फिक्स रेट नहीं, शुल्क की कोई पावती नहीं, कमरे, शौचालय व पेयजल की व्यवस्था के अनुसार मोलभाव करिए और चार दिनों के लिए कमरा आपका। भोजन की व्यवस्था आपको खुद करनी होती है। स्थानीय निवासियों के अनुसार दो साल के अंतराल पर छठ होने के कारण इस बार ज्यादा मारामारी है। न्यूनतम तीन हजार में एक कमरा आरक्षित किया गया है। इस बार झारखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़, महाराष्ट्र समेत देश के अन्य राज्यों से व्रती आएंगे।

धर्मशाला में रह रहे अर्द्धसैनिक बल

छठव्रतियों के लिए 12 साल पहले पर्यटन विभाग ने देव विजयदास धर्मशाला का जीर्णोद्धार कराया था। परंतु क्षेत्र नक्सल प्रभावित होने के कारण कभी भी यहां छठ के मौके पर व्रती नहीं रह सके, 12 साल से यह धर्मशाला अर्द्धसैनिक बल का ठिकाना बना हुआ है। अब क्षेत्र के नक्सलमुक्त होने के बाद धर्मशाला को खाली कर छठव्रतियों व देव मंदिर का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को उपलब्ध कराने की मांग उठने लगी है। 

यहां की गई है पार्किंग की व्यवस्था

देव के निकट महाराणा प्रताप कालेज के मैदान, देव से दक्षिण चैनपुर गांव के स्कूल, भवानीपुर गांव, अंबा-देव रोड में सिंचाई कालोनी के पास व मदनपुर रोड में पैक्स गोदाम बाला पोखर के पास पार्किंग की व्यवस्था की गई है। धान रोपनी नहीं हुई है, इस कारण हजारों श्रद्धालु खाली पड़े खेत में टेंट लगाकर चार दिनों तक टिकने की तैयारी में हैं, खेतों में भी वाहन पार्क किए जाएंगे। 

ऐसे पहुंचे देव 

देव औरंगाबाद से 18 किलोमीटर दूर है। गया से जीटी रोड से जाने पर औरंगाबाद के 12 किमी पहले शिवगंज से तीन सौ मीटर आगे देव द्वार है, यहां से मंदिर की दूरी छह किमी है। सड़क टू लेन है। देव के पास 500 मीटर मार्ग सकरा है। 

यहां ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीन स्वरूपों में हैं सूर्यदेव

देव स्थित सूर्य मंदिर देश के अन्य सूर्य मंदिरों से कई मायनों में अलग व विशिष्ट है। लगभग सौ फीट ऊंचे मंदिर का निर्माण नागर शैली में काले पत्थरों को तराशकर किया गया है। मंदिर के पत्थरों को बिना जोड़े कुछ इस तरह से जमाया गया है कि यह आज तक टिका हुआ है। यह देश का एकमात्र मंदिर है, जहां सूर्यदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीन विग्रहों के स्वरूप में विद्यमान हैं और मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की बजाय पश्चिमाभिमुख है। आरती की प्रमुख पंक्ति भी है, आप ही पालनहार प्रभु क्षमा करहूं क्लेष, तीन रूप रवि आपका ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश। 

राजा एल कुष्ठ रोग से हुए मुक्त 

मान्यता है कि मंदिर का निर्माण त्रेता युग में नौ लाख वर्ष पहले भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं किया था। मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक कहते हैं, त्रेता युग में यहां के तालाब देव कुंड में स्नान करने से प्रयागराज के राजा एल कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए थे। तभी से श्रद्धालु इसे कुष्ठ मुक्ति का साधन मानते आ रहे हैं। अपने अद्भुत स्थापत्य व प्राचीनता के कारण मंदिर विश्व धरोहर में शामिल होने की कतार में है।

सुबह चार बजे घंटी बजा जगाए जाते सूर्यदेव

मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि प्रत्येक दिन सुबह चार बजे भगवान को घंटी बजाकर जगाया जाता है। इसके बाद स्नान कर नए वस्त्र धारण, चंदन का लेप, माल्यार्पण, आदित्य हृदय स्रोत का पाठ व आरती के बाद सूर्यदेव को तैयार होने में 45 मिनट का समय लगता है। पांच बजे श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए पट खोल दिए जाते हैं। रात नौ बजे तक भगवान श्रद्धालुओं के लिए गर्भगृह के आसन पर विराजमान रहते हैं।


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