14वीं शताब्दी में बना है झिकटिया का प्राचीन तालाब
भारतीय सभ्यता व संस्कृति प्राकृतिक संसाधनों से संपोषित था। जहां सभ्यता विस्तार नदियों सरोवरों के
भारतीय सभ्यता व संस्कृति प्राकृतिक संसाधनों से संपोषित था। जहां सभ्यता विस्तार नदियों सरोवरों के किनारे पर हुआ वहीं प्रकृति के वन्य जीव एवं सुषमा से संस्कृतियां उर्वर हुईं। आज का मानव साधन संपन्न मानव बन कर नई इबारत लिख रहा है, परंतु प्रकृति की गोद से पनपी सभ्यता व संस्कृतियां धीरे-धीरे बड़े शहरों में घिर कर कराह रही है। प्रकृति प्रदत्त जल का कम होना सबसे कठिन समस्या बनती जा रही है। प्रकृति का अमूल्य जलस्त्रोत का कम होना एक आहट है जीव जगत के विलुप्तीकरण की। भारत के अधिकांश गांव आज जल संकट से जूझ रहा है। जल ही जीवन है का स्लोगन कमजोर पड़ता जा रहा है। नदियों का अविरल प्रवाह थम चुका है। आसमान से बरसनेवाले जल अब आपदा का रूप ले मानव पर आघात करने लगा है। तीन लोक में पाताल लोक को अधोलोक अर्थात नीचे का लोक कहते हैं। जीव जगत को तीनों लोक से साम्य बनाना पड़ता है। जल संग्रहण पाताल लोक का काम है जहां का जल अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। आधुनिक मानव धर्मशास्त्र की सूक्तियों व सिद्धांतों को भी मनगढ़ंत, काल्पनिक और न जाने क्या-क्या संबोधन दे रहा है पर प्रकृति की सहृदयता एवं कठोरता का अवलोकन वह नहीं कर पा रहा है। 14वीं व 15वीं शताब्दी का है झिकटिया का प्राचीन तालाब
झिकटिया गांव के अधिकांश लोग कहते हैं कि प्राचीन तालाब कब से है यह हमें ज्ञात नहीं। दादा व पिता ने बताया था कि यह उनके जन्म के पूर्व से है। तीन चार पीढि़यां यही बता रहीं हैं कि तालाब कब का है यह पता नहीं। चूंकि चार प्राचीन तालाब कुटुंबागढ़ के चार कोने पर स्थित है तो इससे सहसा ही समझा जा सकता है कि धार्मिक व सामाजिक विस्तार का यह प्राचीनगढ़ इतिहास के अनसुलझे रहस्य से भरा है। झिकटिया गांव का तालाब का जुड़ाव भी गढ़ से है क्योंकि रोहतास की राजसत्ता से जुड़े गढ़ के समीप चार तालाब सभ्यता विस्तार की कहानी कह रही है। यह बात भी सत्य है कि गढ़ वैदिक, मुगल बादशाहों, बौद्ध संप्रदायों, जैनियों के महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हो न हो चार प्राचीन तालाब का रहस्य इन्हीं में से किसी एक काल से जुड़ा हो। शीशे की तरह सफेद होता था तालाब का पानी : प्रमोद
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ग्रामीण प्रमोद पांडेय बताते हैं कि प्राचीन तालाब दस वर्ष पहले तक साफ होता था। छठ पूजा के दौरान दर्जनों गांव के लोग आकर सूर्य को अर्ध्य देते थे। उस समय तक तालाब का पानी शीशे की तरह सफेद हुआ करता था। 70 के दशक तक हर सुबह व हर शाम यहां जानवरों का मेले जैसा ²श्य देखने को मिलता था। सभी गांव के जानवर पानी पीने यहां पहुंचते थे। कंचनपुर, निसुनपुर, सुल्तानपुर, पिपरा, ढीबर, रामपुर, झरहा, रसोईया समेत अन्य गांव के लोगों का यह धार्मिक, सामाजिक तथा व्यावसायिक जुड़ाव का केंद्र था। तालाब के सहारे होती थी खेती : मुकेश
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झिकटिया निवासी मुकेश शर्मा बताते हैं कि प्राचीन तालाब दो फसलों के लिए ईश्वरीय वरदान था। धान एवं रबी फसल की उपज तालाब के सहारे पिछले 150 दशक से होता आया था। दर्जनों गांव के लोगों का यह जीवन आधार बना रहता था। सबसे अधिक लाभ उन जानवरों को था जो पानी के लिए भटकते थे। 70 के दशक से यह सूखने लगा और धीरे-धीरे यहां आदमी व जानवरों का संपर्क टूट सा गया। बाद में उत्तर कोयल नहर का बसडीहा कैनाल बनने से तालाब पर गहरा असर हुआ। ढीबर, रसोईया, पिपरा गांव के जानवर कैनाल के कारण इस पार न आ पाए। जिन गांव के लिए यह लाभदायक था पानी सूखते रहने से उस गांव के लोगों ने भी तालाब से अपना नाता तोड़ लिया। तालाब सूखने से पशु को होती है परेशानी : बबन
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झिकटिया के बबन पांडेय ने बताया तालाब गांव के किसान वृहस्पत मौआर का है। जमींदारी प्रथा के दौरान रोहतास के राजा ने यह उनके नाम कर दिया। तब से आज तक इसका स्वामित्व वृहस्पत मौआर संभालते आ रहे हैं। तालाब का तल पूरी तरह भर गया था। जिला पार्षद योजना से तालाब की उड़ाही कराई गयी पर वह भी केवल खानापूर्ति रही। उन्होंने कहा कि तालाब की कम से कम 25 फीट की उड़ाही कराया जाना आवश्यक है। मालिक के पास इतना रकम नहीं है कि वे इसकी उड़ाही करा सकें। जल संग्रहण के लिए उत्तर कोयल नहर में समय समय पर पानी देकर इसे जल से भरा रखा जा सकता है। तालाब के किनारे का सु²ढ़ीकरण व पेड़ पौधे लगाये जाने की आवश्यकता है। तालाब के खुदाई की है जरूरत : मुखिया
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कुटुंबा पंचायत की मुखिया कुमारी सावित्री ¨सह बताती हैं कि उनके पंचायत में दो प्राचीन तालाब हैं। कुटुंबागढ़ का तालाब व झिकटिया का प्राचीन तालाब। दोनों तालाब की गहरी खोदाई व सु²ढ़ीकरण कराने की जरूरत है। सरकार मुखिया को राशि नहीं दे रही है। मनरेगा योजना से इसे सु²ढ़ कराने का प्रयास किया जाएगा। नए तालाब की हो रही खुदाई : बीडीओ
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बीडीओ लोक प्रकाश ने बताया कि नए तालाब की खोदाई कराई गई है। तालाब खोदा गया परंतु उसमें जल संचय कमजोर दिखता है। बरसात के बाद जल ठहर नहीं पाता है और तालाब सूखा पड़ा रहता है। इसके लिए योजना आने पर कार्य कराया जाएगा।