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कल तक था छात्रावास आज बैठने की भी जगह नहीं

फोटो-35 बदहाल शिक्षा बेहाल स्कूल का लोगो लगा लें। -देश से लेकर राज्य में प्रतिभा का लोहा मन

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Oct 2017 03:08 AM (IST)Updated: Mon, 23 Oct 2017 03:08 AM (IST)
कल तक था छात्रावास आज बैठने की भी जगह नहीं
कल तक था छात्रावास आज बैठने की भी जगह नहीं

संवाद सहयोगी, करपी ,

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अरवल। शिक्षा के क्षेत्र में चौमुखी विकास की बात तो की जाती है लेकिन इसपर शायद ही अमल होता है। लेकिन दावे के बाद भी वंशी प्रखंड क्षेत्र के सरस्वती मंदिर उच्च विद्यालय खटांगी का हाल ठीक इसके विपरीत है। पहले जहां इस विद्यालय में छात्रावास की सुविधा उपलब्ध हुआ करता था वही अब यहां बैठने तक की भी जगह नहीं है। एक ऐसा भी दौर था कि इस विद्यालय में नामांकन होना सौभाग्य की बात समझा जाता था। यहां पढ़ने वाले कई छात्र छात्राओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा राज्य में ही नहीं बल्कि देश स्तर पर मनवा चुके हैं। महान किसान नेता पंडित यदुनंदन शर्मा ने 1951 ई. में इस विद्यालय की नींव रखी थी। विद्यालय अपने स्थापना काल के बाद से उन्नत अवस्था के लिए चर्चित रहा था। इस विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाले डॉ सियाराम ¨सह बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय पटना, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष के पद को सुशोभित कर रहे हैं। इस विद्यालय के छात्र रहे राकेश कुमार जहानाबाद में एक प्रतिष्ठित स्कूल का संचालन कर उत्कृष्ट शिक्षाविद की श्रेणी में चर्चित हैं। इतना ही नहीं इसी विद्यालय के छात्र संजय कुमार पटना में शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करते हुए इलाके का नाम रोशन कर रहे हैं। सरकारी उपेक्षा के कारण यह विद्यालय अस्तित्व संकट के दौर से गुजर रहा है। विद्यालय में नामांकित 828 विद्यार्थियों के लिए मात्र दो कमरे ही उपलब्ध है। हाईटेक सुविधा तो दूर की बात यहां बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं है । विद्यालय के माध्यमिक कक्षाओं में 650 छात्र छात्राओं का नामांकन है। जिन्हें पढ़ाने के लिए 10 शिक्षक विद्यालय में पदस्थापित हैं। संस्कृत और अंग्रेजी विषय के शिक्षक उपलब्ध नहीं है। हालांकि सामाजिक विज्ञान में 4 शिक्षक कार्यरत हैं। विषयवार शिक्षकों की कमी के कारण कई विषयों के कक्षा आयोजित होती ही नहीं है। बदहाली का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि विद्यालय के टेन प्लस टू में नामांकित 178 छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक पदस्थापित नहीं है। परिणाम स्वरुप यह विद्यालय सिर्फ फॉर्म और पंजीयन भरने का एक जरिया बनकर रह गया है। कंप्यूटर शिक्षा की बात तो करना ही यहां पर बेमानी होगा। यहां प्रायोगिक शिक्षा की भी कोई व्यवस्था नहीं है। हालांकि पुस्तकालय के नाम पर विद्यालय को पुस्तकें उपलब्ध कराई गई है, लेकिन कमरे की कमी और पुस्तकालय अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने के कारण इसके लाभ से लोग वंचित हैं। हालात यह है कि गांव में बिजली रहने के बावजूद भी विद्यालय में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिस विद्यालय का इतिहास इतना गौरवमई रहा है कि उसकी चर्चा आज भी लोग करते हुए गौरव महसूस करते हैं । उसका वर्तमान इस इस कदर बदहाल है कि यहां पठन-पाठन के नाम पर महज खानापूर्ति होता है। पठन पाठन के लिए वे लोग को¨चग और ट्यूशन पर निर्भर रहने को विवश है।

सुने पूर्ववर्ती छात्रों की

विद्यालय में पहले गुणवतापूर्ण पढ़ाई की सुविधा रहती थी। विभागीय उदासीनता के कारण अब यह बदहाली के दौर से गुजर रहा है। विद्यालय में पुन: संसाधनों को उपलब्ध कराकर पढ़ाई की बेहतर व्यवस्था करने की जरूरत है। इस विद्यालय में पढ़ने वाले लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हुए नाम रोशन कर रहे हैं।

डॉ संजय कुमार,निदेशक अंकुर पब्लिक स्कूल

फोटो-40

विद्यालय का गौरवमयी इतिहास रहा है। पहले छात्रावास का संचालन होता था। अब छात्रों को बैठने की भी व्यवस्था नहीं है। इस विद्यालय को बदहाली से मुक्त कराने की जरूरत है। स्थानीय नेताओं को इसके लिए पहल करनी चाहिए।

राकेश कुमार,प्रशासक

प्रज्ञा भारती पब्लिक स्कूल

फोटो-42


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