घर-द्वार, खेती-बाड़ी गवां रहे तटवासी
यह एक ऐसा दर्द है जो आसमान में काले बादलों को देख गहरा उठता है।
अररिया। यह एक ऐसा दर्द है जो आसमान में काले बादलों को देख गहरा उठता है। समस्या यथावत बनी रहती है। पीड़ितों की आवाज नदी की धार में बह जाती है ।
यह दर्द है नदियों की गोद में बसे जिले के दर्जनों गांवों में हो रहे कटाव का । नेपाल से आने वाली नदियों के कटाव की पीड़ा एक बार फिर गहरा रही है । हजारों एकड़ उपजाऊ खेत व दर्जनों की संख्या में कच्चे -पक्के घर नदी में कट कर समा रहे हैं । जिले के पांच दर्जन से अधिक गांव पर कटाव की तलवार लटकती रहती है। लेकिन प्रशासन ,प्रतिनिधि मौन । यही हाल फारबिसगंज प्रखंड के पूर्वी क्षेत्रों का है, जहां परमान नदी के किनारे बसे लगभग एक दर्जन गांव इस पीड़ा से ग्रसित हैं । प्रखंड के गुरम्ही एवं खवासपुर गांव की समस्या ऐसी है जहां प्रतिवर्ष कटाव के दर्द को लोग झेलने पर विवश हैं। यहां पर परमान नदी के कटाव एक भीषण समस्या है । वैसे तो वर्ष भर कटाव की समस्या से लोग प्रभावित होते रहते है, लेकिन बाढ़ एवं बरसात में कटान की समस्या और अधिक भयानक रुप ले लेती है । पिछले एक डेढ़ दशक से दर्जनों घर परमान नदी के गोद में विलीन हो चुका है। इतना हीं नही परमान नदी ने खवासपूर गुरम्ही , घोड़ाघाट, रमई,खैरखा, मधुबनी, कमता सहित कई ऐसे गांव है जहां के कृषि योग्य भूमि को तहस नहस कर दिया है। इसमें सबसे अधिक प्रभावित खवासपुर के महादलित टोले के लोग है, जहां इसका कहर अधिक है। यहां प्रतिवर्ष कई घर नदी में समा जा जाते हैं। कटाव के बाद लोग यत्र- तत्र विस्थापित सी ¨जदगी जीने पर विवश हैं। कटाव के स्थायी समाधान नहीं किया जा रहा है। नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को पांच दशक पहले की तरह करके बाढ़ व कटाव से स्थाई निजात दिलाया जा सकता है। विडंबना यह है कि इस पीड़ा की चर्चा बारिश एवं बाढ़ के समय ही होती है और बाढ़ बरसात के बीतते ही सब चुप हो जाते है । जिसका उदाहरण यह है कि अभी बांस के सहारे कटाव की रोकथाम की व्यवस्था की जा रही है जो नाकाफी है। ग्रामीण बताते हैं कि प्रतिवर्ष बाढ़ के समय में बम्बू पाइ¨लग की जाती है जो कोई कारगर नहीं है । इसके नाम पर लाखों खर्च हो जाते है, लेकिन समाधान कुछ नहीं हो पाता है।