एकबार फिर जोर पकड़ती जा रही है कोसी रेल परियोजना की मांग
अररिया। 1959 में बथनाहा स्टेशन से भीमनगर होते पूर्वी कोसी तटबंध के किनारे नेपाल के घोपा-
अररिया। 1959 में बथनाहा स्टेशन से भीमनगर होते पूर्वी कोसी तटबंध के किनारे नेपाल के घोपा-धरान तक निर्मित सामरिक सुरक्षा एवं पर्यटन के ²ष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण कोसी रेल परियोजना काल के गाल में समा गई है। इधर, लोकसभा चुनाव 2019 निकट आते ही लोगों को इस रेल ट्रैक की याद आने लगी है। साथ ही चर्चा है कि बथनाहा से विराटनगर तक नई रेललाइन बिछा दी गई है जिसके उद्घाटन का अब लोगों को बेसब्री से इंतजार हैं। लेकिन बथनाहा से वाया भीमनगर नेपाल के घोपा धरान तक चलती रेल ट्रैक को लेकर नेपाल और भारतीय रेल द्वारा कोई पहल नहीं हो रही है। वहीं, सामरिक एवं पर्यटन की ²ष्टिकोण से महत्वपूर्ण 67 किमी लंबी अंतराष्टीय कोसी रेल परियोजना के पुर्नद्धार की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है। वीरपुर में बकायदा इसके निर्माण की मांग को लेकर सर्वदलीय संघर्ष समिति का गठन कर पिछले कई वर्षो से आंदोलन चलाया जा रहा है। विगत मार्च महीने में भीमनगर से बथनाहा तक पैदल मार्च निकाला गया था जिसमें भाड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।
इधर, नौ अक्टूबर को लोगों ने बथनाहा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन को रोककर जानकारी दी थी कि हाजीपुर रेल मंडल के तहत सुपौल जिला के प्रतापगंज से भीमनगर होते बथनाहा तक कुल 57 किमी लंबी रेलखंड का वर्ष 2005 में स्वीकृत सर्वेक्षण का कार्य पूरा हो चुका है लेकिन कार्य नहीं शुरू हुआ है। वहीं 42 माइल लंबी भीमनगर से नेपाल के घोपा-धरान तक चलने वाली कोसी रेल के पुर्नद्धार की मांगें दोनों देशों के प्राथमिकता में आज भी नहीं है। गौरतलब है कि इस परियोजना को दोबारा चालू करने के लिए स्थानीय स्तर पर नागरिकों द्वारा कई बार आवाज उठी। मगर सरकारी उदासीनता एवं उपेक्षा के कारण यह आवाज भी दब गई। गौरतलब है कि बिहार की शोक के नाम से प्रसिद्ध कोसी
नदी पर सन 1950 के दशक में बैराज एवं तटबंध का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था। उस समय बैराज के निर्माण कार्य में लगने वाले सामग्रियों की ढ़ुलाई हेतु बथनाहा स्टेशन से भीमनगर होते नेपाल के घोपा-धरान तक इस रेल सेवा का परिचालन प्रारंभ हुआ था। मगर कालांतर में बैराज एवं तटबंधों के निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के बाद सरकार को यह रेल परियोजना महत्वहीन लगने लगी। जिसके कारण इसकी उपेक्षा शुरू हो गई।
इलाके में 1987 में आई बाढ़ और 1988 के भूकंप ने रहा सहा कसर भी पूरा कर दिया। जिसमें दोनों प्रभाग में रेलवे लाइन को काफी नुकसान पहुंचा। इस तरह 80 का दशक बीतते-बीतते इस रेल परियोजना का परिचालन बिलकुल ठप पड़ गया।
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पर्यटन केंद्र धरान तक
फिर चली ट्रेन
-स्थानीय बुद्धिजीवियों में सुरेष कंठ, राजेष
चन्द्र वर्मा, गजेन्द्र ठाकुर, जितेन्द्र मल्लिक आदि ने इस रेल
परियोजना को फिर से प्रारम्भ करने की मांग सरकार से किए हैं।
लोगों ने कहा कि इस रेल परियोजना के दोबारा प्रारंभ होने
से कोसी के इस सीमावर्ती इलाके के लाखों लोगों को सहूलियत मिलेगी । वही कोसी तटबंध का पूर्व की भांति देखरेख
होता रहेगा। नेपाल के धरान तक पुराने ट्रैक को फिर से चालू करने से पर्यटन को भी बढावा मिलेगा। गौरतलब है कि इसी रेलखंड पर नेपाल के मधुवन का ईलाका व धरान के
बगल में ही ¨हदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल वराह क्षेत्र का मंदिर
अवस्थित है।