कृषि वैज्ञानिकों ने बौना किया कतरनी का कद
अररिया। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के वैज्ञानिकों ने भागलपुर के कतरनी धान के साथ नया प्र
अररिया। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के वैज्ञानिकों ने भागलपुर के कतरनी धान के साथ नया प्रयोग किया है। कतरनी की इस किस्म के बिचड़ों की लंबाई कम करने में सफलता मिली है। अब इस धान की फसल की लंबाई सात की जगह पर तीन फीट की होगी।
साथ ही, पहली बार कृषि विज्ञान केंद्र ने पांच लाख रुपये के धान के बीज अररिया समेत बिहार के अन्य जिलों को बेचे हैं। भागलपुर कतरनी की खेती भागलपुर के जगदीशपुर के अलावा सुनहला, शाहकुंड एवं सुल्तानगंज में होती है। केवीके, अररिया के फॉर्म मैनेजर मनीष कुमार ने बताया कि सबौर कृषि विश्वविद्यालय के अधीन केवीके फॉर्म, अररिया में एक हेक्टेयर में भागलपुर कतरनी की खेती की गई। यह बौनी प्रजाति की है जो सबौर कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों की मेधा का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि कतरनी की इस खेती में पूरी तरह से जैविक खाद का प्रयोग किया गया है। केवीके, अररिया से धान की दूसरी प्रजाति के 72 क्िवटल बीज सबौर कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से दूसरे जिलों को उपलब्ध कराए गए हैं। साथ ही अररिया में राजेंद्र श्वेता व राजेंद्र कस्तूरी की भी रोपाई की गई है। इसके बीज अगले सत्र से किसानों को मुहैया कराए जाएंगे। इसके अलावा आलू के 50 ¨क्वटल बीज कोल्ड स्टोरेज में रखे गए हैं। ये बीज 25 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे। आलू की प्रजातियों में कुफरी ख्याति, कुफरी कंचन लाल व कुफरी ललित के बीज किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे।
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फोटो : 16 एआरआर 05
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भागलपुर कतरनी के पौधों की लंबाई अधिक होने के कारण इसका उत्पादन प्रभावित हो रहा था। कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के वैज्ञानिकों ने इसकी बौनी प्रजाति विकसित की है जो अधिकतम तीन फीट की होगी।
- प्रधान अर¨वद कुमार सिन्हा
वरीय कृषि वैज्ञानिक, अररिया