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रोग एवं भय नाश की कामना से भक्तों ने की मां की पूजा : फारबिसगंज दुर्गा पूजा

फोटो नंबर 04 एआरआर 08 कैप्शन बड़ा शिवालय स्थित स्थापित माता की प्रतिमा। कात्यानी की पूज

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 12:38 AM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 12:38 AM (IST)
रोग एवं भय नाश की कामना से भक्तों ने की मां की पूजा : फारबिसगंज दुर्गा पूजा

फोटो नंबर 04 एआरआर 08

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कैप्शन: बड़ा शिवालय स्थित स्थापित माता की प्रतिमा।

कात्यानी की पूजा छठे दिन मां कात्यानी स्वरूप की पूजा

शहर के बड़ा शिवालय परिसर स्थित मंदिर में 51 वर्ष से हो रही है पूजा

रोग एवं भय नाश की कामना से भक्तों ने की मां कात्यानी की पूजा

छठे दिन मां कात्यानी स्वरूप की पूजा

शहर के बड़ा शिवालय परिसर स्थित मंदिर में 51 वर्ष से हो रही है पूजा

संसू.,फारबिसगंज (अररिया): नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। देवी मां के छठे स्वरूप को कात्यायनी नाम से पुकारा जाता है। मां कात्यायनी को दानवों और पापी जीव धारियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार इनकी उपासना से संपूर्ण रोगों और भय का नाश होता है। महिषासुर राक्षस का वध करने के कारण इनका एक नाम महिषासुर मर्दिनी भी है। फलदायिनी और संहारिणी हैं रूप मां कात्यायनी को सबसे फलदायी माना जाता है, लेकिन साथ ही ये दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती हैं। शारदीय नवरात्र के छठे दिन शुक्रवार को शहर के विभिन्न पूजा पंडालों सहित मंदिरों में माता के छठे स्वरूप माता कात्यानी की पूजा अर्चना की गई। भक्तो ने मां के इस स्वरूप की पूजा कर सम्पूर्ण रोग एवं भय का नाश की कामना की। शहर के वार्ड संख्या 14 स्थित बड़ा शिवालय दुर्गा पूजा समिति मंदिर में पिछले 51 वर्षो से शारदीय नवरात्र के अवसर पर दुर्गा पूजा होती आ रही है। यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत 1968 ई. में बंधु महल दुर्गापूजा समिति के नाम से स्व. जगदीश जायसवाल, गोपाल आ•ाद, नाडु दा, अजय कुमार सिन्हा और रामसेवक पंडित ने की थी। उस समय यह दुर्गा मंदिर आज की तरह पक्के भवन का नही था। दुर्गा पूजा के लिए बांस, बल्लों और तिरपाल आदि से पंडाल बनाया जाता था। हर साल पंडाल बनाने की परेशानी को देखते हुए पूजा समिति ने स्थानीय लोगों के सहयोग और चंदा से पक्का मंदिर का निर्माण कराया। रायगंज, बंगाल के मूर्तिकार हेमेन पाल ने सबसे पहले यहां माता दुर्गा की प्रतिमा बनाई थी। उसके बाद से आज तक आनंदो पाल यहां की मूर्ति बना रहे हैं। वही पुजारी रूपंकर चटर्जी ने बताया मां कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा बाली मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। उन्होनें एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का फूल लेकर सुशोभित है। साथ ही दूसरें दोनों हाथों में वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। मां कत्यायनी का वाहन सिंह हैं। नवरात्र की षष्ठी तिथि के दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। क्योंकि इसी तिथि में देवी ने जन्म लिया था और महर्षि ने इनकी पूजा की थी,इनकी आराधना से सभी प्रकार के रोग एवं भय का नाश होता है। वही पूजा को लेकर शहर का माहौल भक्तिमय बना हुआ है।


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