अररिया उपचुनाव: सिंपैथी, सेंटीमेंट व पार्टी लाइन के बहाव तेज, किनारे पर विकास
अररिया लोस उपचुनाव में सिंपैथी, सेंटीमेंट, पार्टी लाइन व फैक्टर के बहाव तेज हैं, जबकि विकास का मुद्दा किनारे पड़ा है। पढ़ें लोकसभा उपचुनाव को ले अररिया की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट।
अररिया [विनय मिश्र]। अररिया में सन् 2018 में ही सन् 2019 का चुनाव देख सकते हैं। यह टाइम मशीन में बैठकर एक साल आगे जाने जैसा हो सकता है। नरेंद्र मोदी सरकार को काम करते काफी दिन हो गए हैं। उपलब्धियां और शिकायतें स्पष्ट हैं। लालू प्रसाद यादव के जेल गए कई महीने बीत गए हैं। न्याय और नाइंसाफी की दलीलें साफ हैं। राजद, जदयू और भाजपा के मददगार जाति वाले टोले चिन्हित हैं। उनका चिह्न बदलता नहीं दिख रहा। दिवंगत और पूर्व सांसदों की उदारता और कृपणता के किस्से भी आम हैं।
मंच पर हाथ थामे खड़े गठबंधन के नेताओं की जेब की छुरियां भी कभी-कभार चमक ही उठती हैं। दोस्ती वाली दुश्मनी जगजाहिर है। हथेली की आड़ी-तिरछी रेखाओं को देखकर अपने देश में भविष्य बताने का रिवाज है। वैसी ही रेखाएं अररिया में बनी हुई हैं। रिजल्ट चाहे जो हो, 2019 की चुनावी बारिश, तूफान और गर्मी का फोरकास्ट यहां जारी है।
सड़क पर दुआर, वैसे दरवाजे खोलकर रखते हैं हम
अररिया के दिवंगत सांसद मोहम्मद तसलीमुद्दीन का पैतृक गांव है सिसौना। जोकीहाट में है यह गांव, जहां से तसलीमुद्दीन के बाद उनके बेटे सरफराज आलम विधायक थे। जदयू औऱ विधायकी से इस्तीफा देकर सरफराज राजद की टिकट पर लोकसभा का उपचुनाव लड़ रहे। अपने पिता के नाम पर।
गांव की कोठी पर तसलीम साहब (यहां के लोग मोहम्मद तसलमुद्दीन को यही कहते हैं) के भतीजे 15 मिनट की बातचीत में 11 मिनट अपने चचा से यहां के लोगों के लगाव के बारे में बताते रहे। तो सरफराज क्या तसलीम साहब की तरह हैं? वह कहते हैं कि तसलीम साहब बाप थे। ये बेटा हैं। वैसे कैसे हो सकते, लेकिन उनके नक्शेकदम पर चलेंगे। ऐसा कहते हुए वह हमारी आंखों में देखते हैं कि हमें उनकी बात पर यकीन हुआ कि नहीं।
तसलीमुद्दीन की कोठी के सामने पक्का कैंपस है। अचानक एक कार गांव की तरफ वाले एक गेट से घुसती है और दूसरे गेट से निकल जाती है। यह तो आपका कैंपस है, फिर आम रास्ता जैसे गाडिय़ां क्यों चल रहीं? एक गेट पर एक सड़क का एक छोर है, दूसरे गेट पर दूसरा छोर। बीच में कोठी का पक्का दुआर है। वह सफाई देते हैं कि किसी का रास्ता नहीं रोकते। वैसे वह यह नहीं बताते कि बीच की सड़क गायब होकर पक्का दुआर कैसे बन गई?
उनके बैठका में झुकी कमर को लाठी से सीधी करने की कोशिश करते वृद्ध परेशान और व्यग्र हैं। उनकी कोई बात होगी, जो हमारी बातचीत के बीच नहीं सुनी जा रही। उनकी व्यग्रता बढ़ती है, तो बताया जाता है कि पटना से लोग आए हैं। इनसे बात हो जाने दीजिए। फिर, आपकी गुहार भी सुनेंगे।
तसलीम साहब के भतीजे अपने चाचा की उदारता के किस्से सुनाते हैं। हां, हमारी बातचीत इस मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ती कि यहां इतनी गरीबी क्यों है, रोजगार क्यों नहीं है, लोग पलायन करने को क्यों मजबूर हैं? वे स्वरोजगार और समृद्धि से क्यों नहीं जुड़ पा रहे ताकि उन्हें किसी सांसद या विधायक के सामने बेटी की शादी या बेटे के इलाज के लिए हाथ न पसारना पड़े? सीमांचल में चार दशक तक व्यापक राजनीति करने वाले परिवार से लोग ये सवाल नहीं पूछते। संकोचवश, हम भी नहीं पूछ पाते।
दीवार पर लगी मरहूम तसलीम साहब की तस्वीर कील के सबसे आगे वाले छोर पर आ गई है। हवा से हिल रही। किसी अभिनंदन समारोह की फोटो है। फूल-माला वाले फ्रेम में। 74 साल की उम्र में हाल में उनका निधन हो गया। वे रहते तो शायद 2019 में उनसे ही यह सवाल पूछे जाते।
किससे उम्मीद है, किसी से नहीं
सुपौल से सिलीगुड़ी तक जाने वाली सड़क अररिया से जोकीहाट और किशनगंज की तरफ बढ़ती है, तो कई बार खेत में उतर जाती है। नदी और उसकी शाखाओं को जोडऩे वाले पुल भयंकर बाढ़ में टूट कर गिरे थे। बमबारी से टूटे पुलों की तरह। बाढ़ का पानी उतर गया, लेकिन सड़क पुल के खंभों पर नहीं चढ़ पाई। सड़क को खेत में उतारकर मोटरेबल बना दिया गया है।
भाजपा के झंडे वाली पांच एसयूवी टाइप गाडिय़ां हमें पार करती है। शायद नेता-कार्यकर्ता जोकीहाट जा रहे। या फिर पलासी। वैसे पलासी की संभावना अधिक है, क्योंकि जोकीहाट में भाजपा के स्टार प्रचारकों की गिनी-चुनी सभाएं हुई हैं। बड़े नेता कम ही आएं हैं जोकीहाट। प्रखंड मुख्यालय से चार किलोमीटर पूरब जहानपुर में सड़क पुराने बिहार की याद दिलाती है। दो साल से खराब थी और इस बार के बाढ़ में और टूट गई है। मुंबई, गुजरात और दिल्ली में बड़ी-बड़ी नौकरियां या व्यवसाय कर रहे लोगों के सुंदर-पक्के घरों तक पहुंचने के लिए बहुत हिलना-डुलना पड़ता है।
गांव में सोलर सिस्टम वाला वाटर स्टेशन है। आयरन के नुकसान से मुक्त पानी लोगों के घरों तक पाइप से पहुंचता है। साफ-सुथरा सरकारी स्कूल है। गांव का हर वोटर जानता है कि दूसरा आदमी किसे वोट देगा। हां, फुरसत में कैंडिडेट चयन पर अपनी महत्वपूर्ण राय देने से नहीं चूकता। पूछता हूं, उनका चेहरा पसंद नहीं तो क्या उन्हें वोट देंगे। रिटायर्ड मास्टर साहब कहते हैं तो क्या करेंगे, पार्टी लाइन से थोड़े हटेंगे। हम लोग दशकों से एक तरफ हैं।
सब धान बाइस पसेरी
अररिया में दूर-दूर के जिलों से सैकड़ों नेता कार्यकर्ता पहुंचे हैं। इस जिले ने थोक में इतने नेता कभी नहीं देखे। रात होते ही सब अररिया जिला मुख्यालय में डेरा डाल देते हैं। डेढ़ सौ रुपये पैकेट वाली बिरयानी की व्यवस्था है। खाने के बाद होटल के हॉल को सार्वजनिक शयनकक्ष बनाकर सब पसरते हैं। थकान उतारते हैं।
एक युवा कार्यकर्ता मोबाइल पर अररिया का प्रोफाइल तलाश रहा। फिर जोर-जोर से पढ़ता है - महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण (5-18 वर्ष) के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले सौ जिलों में 17 बिहार के हैं। देशभर में सबसे अधिक कुपोषण के शिकार बच्चे-युवा अररिया के हैं। इनका प्रतिशत 57.8 हैं। बगल वाले नेताजी अपनी खिचड़ी दाढ़ी खुजलाते हुए कहते हैं, ऐसी बातें न करो। उनके खिलाफ यह सुनाओगे, तो हमारे भी अगेंस्ट जाएगी। जल्दी से वह नौजवान फेसबुक स्क्रॉल कर मजेदार वीडियो देखने लगता है।
अररिया लोकसभा क्षेत्र प्रोफाइल
- अररिया लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाता : 1738067
- पुरुष मतदाता- 919115, महिला मतदाता- 818286
- 18 से 19 आयुवर्ग के मतदाता: 12,994
- 20 से 29 आयुवर्ग के मतदाता: 4,30,963
- 30 से 39 आयुवर्ग के मतदाता: 4,61,313
- थर्ड जेंडर मतदाता: 67
- 13 बार हो चुके लोकसभा चुनाव, कभी कोई महिला प्रत्याशी नहीं जीती
- पिछले लोकसभा चुनाव में 61.48 फीसद वोट पड़े
- लोकसभा चुनाव 2014 में जदयू और भाजपा को मिले थे अधिक वोट
- अररिया जिले की छह सीटों पर 2015 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला बराबरी का रहा था
- इस बार उपचुनाव में सात उम्मीदवार