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कुओं को लगी आधुनिकता की नजर, बने खंडहर

-उपभोक्तावादी प्रवृत्ति ने भारतीय परंपराओं के तानेबाने को किया बुरी तरह प्रभावित -हाशिए प

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 01:49 AM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 01:49 AM (IST)
कुओं को लगी आधुनिकता की नजर, बने खंडहर

-उपभोक्तावादी प्रवृत्ति ने भारतीय परंपराओं के तानेबाने को किया बुरी तरह प्रभावित

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-हाशिए पर चले गए कुआं-तालाब जैसे जल प्राप्ति के परंपरागत साधन

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कोट

कुएं का खत्म होना एक तरह से अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है। कुआं ना सिर्फ जल प्राप्ति का साधन है बल्कि जल भंडारण का भी बेहतरीन माध्यम है। कुआं भूजल के स्तर को बरकरार रखने में मददगार है। कोसी के इलाके में गिरते भूजल के स्तर का कारण कुओं का समाप्त होना भी है।

भगवानजी पाठक, संयोजक

कोसी कंसोर्टियम

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जागरण संवाददाता, सुपौल: शहरीकरण व आधुनिक जीवन शैली अपनाने की होड़ से जन्म ली उपभोक्तावादी प्रवृत्ति ने वर्षो से चली आ रही भारतीय परंपराओं के तानेबाने को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। इसी का परिणाम है कि आज कुओं व तालाबों जैसी परंपरागत जलस्त्रोत व्यवस्था पिछले पायदान पर खड़ी हो गई है। इस तरह के जलस्त्रोतों का निर्माण करने में हमारे पूर्वजों ने जो अहम भूमिका निभाई उसका आने वाले समय में अस्तित्व ही मिटता दिखाई पड़ रहा है। स्थिति यह है कि कुएं व तालाब जैसे परंपरागत जलस्त्रोत कई जगह कचरा पात्र में तब्दील है तो कहीं खंडहर नजर आता है।

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महंगी साबित होगी उपेक्षा

माना कि इस कोसी क्षेत्र में जल का अकूत भंडार है लेकिन इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि तापमान में वृद्धि, कम बारिश और अंधाधुंध भूजल के दोहन से जल स्तर में दिनोंदिन आती गिरावट भविष्य के लिए खतरे का संकेत है। यही कारण है कि भविष्य में मंडराते खतरे के बाबत आज पानी बचाने के लिए लोगों को सीख दी जा रही है। जब पानी की कमी महसूस होगी तब कुओं व पोखरों जैसी चीजों की उपेक्षा महंगी साबित होगी। ऐसे समय में पानी की आवश्यकता पूरी करने के लिए पुन: कुओं व तालाबों की ओर रुख करने को विवश होना पड़ेगा।

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कुआं व तालाब निर्माण था पुण्य का कार्य

एक समय था जब कुआं व तालाब निर्माण करवाना पुण्य का कार्य माना जाता था। कुआं व तालाब खुदवाने के बाद उसका पूजन करवाया जाता था तब उसके पानी का उपयोग किया जाता था। ऐसे समय में न कहीं चापाकल था और न नल। हर टोले व मोहल्ले में एक या दो कुआं व तालाब मिल ही जाते थे जहां से हर घर को पानी की जरुरत पूरी होती थी। लेकिन आज पुरखों की दी हुई इस टिकाऊ व संयमित परंपरागत जलस्त्रोत व्यवस्था को नष्ट करने पर तुले हुए हैं। वो भी ऐसे समय में जब हमें इसकी अधिक आवश्यकता है।

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शुद्ध होता है कुएं का पानी

पानी के इलाके में रहने के बावजूद हमें पीने के लिए सहजता से शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है। मालूम हो कोसी क्षेत्र के भूजल में आयरन अत्यधिक मात्रा में है जो यहां के लोगों के लिए एक तरह से जहर है। आयरन मुक्त पानी मिले इसके लिए लाखों-करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन कुआं जैसे परंपरागत जलस्त्रोत को पुनर्जीवित करने के लिए कोई संवेदनशील नहीं हो रहा है। कुआं वह जलस्त्रोत है जहां से हमें आयरनमुक्त व स्वच्छ पानी मिल सकता है। कहा जाता है कि कुआं में आयरन नीचे उसके तलहटी में बैठ जाता है और ऊपर शुद्ध पानी रह जाता है।


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