छठ का त्योहार कुदरत के प्रति मनुष्य का आभार
अररिया, जागरण संवाददाता: प्रकृति से बड़ा कोई नहीं। मानव जीवन की हर जरूरत की पूर्ति के पीछे कुदरत का ह
अररिया, जागरण संवाददाता: प्रकृति से बड़ा कोई नहीं। मानव जीवन की हर जरूरत की पूर्ति के पीछे कुदरत का ही करिश्मा है। लोक आस्था का महापर्व छठ आदि देव सूर्य की पूजा के साथ साथ शायद प्रकृति के प्रति मानव जाति की कृतज्ञता ज्ञापन का ही पर्व है।
इस पूरे उत्सव पर नजर दौड़ाएं तो यह हमें प्रकृति के साथ एकजुट होकर समन्वय का जीवन जीने का संदेश देता है। इस पर्व का समाज शास्त्र भी अद्भुत है। इसमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी होती है, वहीं, कुदरत के विभिन्न अवयव भी अपने ही ढंग से आबद्ध रहते हें। जल, थल व नभ के सुंदर स्वरूप से मानव जाति का सीधा जुड़ाव भी होता है।
जरा इस पर्व के कर्मकांड को देखिये तो बात और भी साफ होती है। सूर्य देव की पूजा में केला, नींबू, नारियल, टाभ, नारंगी व सेब जैसे फल, कच्ची हल्दी व अदरख के पौधे तथा विभिन्न प्रकार के कंद मूल जैसी वस्तुएं प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती हैं।
सुबह के अर्घ्य के वक्त स्वास्थ्य के लिए अत्यंत निरोग मलय गिरि हवाओं से स्पर्श होता है तो अहले सुबह आसमान के रंगीन दृश्य भी देखने को मिलते हैं। लगभग यही स्थिति शाम के वक्त भी देखने को मिलती है। अस्ताचल गामी व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पण करने के बाद जब यह खास त्यौहार संपन्न हो जाता है तो वापस घर लौटता जन समुद्र जिस सामाजिक मजबूती का मंत्र देता है शायद उसी के सहारे लोग पूरे एक साल तक आपसी भाईचारे व एकता की डोर में बंधे रहते हैं।