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क्या आइडियल बहू बनने के लिए मीरा को ज़रूरत है अपनी पहचान से समझौता करने की?

आइडियल बहू का ये तमगा हर वर्ग की महिलाओं के लिए एक अलग ज़िम्मेदारी लेकर आता है, और इन ज़िम्मेदारियों को निभाते-निभाते कब एक बहू अपने नाम के साथ अपनी पहचान भी बदल लेती है, ये उसे खुद पता नहीं चलता।

By Monika MinalEdited By: Published: Mon, 05 Feb 2018 01:38 PM (IST)Updated: Fri, 09 Feb 2018 07:20 AM (IST)
क्या आइडियल बहू बनने के लिए मीरा को ज़रूरत है अपनी पहचान से समझौता करने की?

आज के इस आधुनिक दौर में जहां महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वहीं एक सामाजिक हक़ीक़त ये भी है कि शादी के बाद महिलाओं को अपनी पहचान से समझौता करना पड़ता है। कहीं पर ये समझौता खुद को ससुराल के रंग-ढ़ंग में ढ़ालने के लिए किया जाता है तो कहीं खुद को एक आइडियल बहू के तौर पर पेश करने का दबाव उसके वजूद पर भारी पड़ जाता है।

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भले ही हम खुद को कितना भी आधुनिक मानें, लेकिन हमारा सामाजिक ताना-बाना आज भी पारंपरिक सोच पर ही टिका हुआ है। जहां हर वर्ग के हर परिवार को एक आइडियल बहू की तलाश है और आइडियल बहू की ये तलाश हर वर्ग की ज़रूरतों के हिसाब से अलग हैं, किसी को घर संभालने के लिए आइडियल बहू चाहिए तो किसी वर्ग को अपने स्टेटस और लाइफ स्टाइल में फिट होने वाली बहू की तलाश है, जो उनकी रॉयल पार्टी में उन्हीं के तौर-तरीकों में मेल जोल कर सके। आइडियल बहू का ये तमगा हर वर्ग की महिलाओं के लिए एक अलग ज़िम्मेदारी लेकर आता है, और इन ज़िम्मेदारियों को निभाते-निभाते कब एक बहू अपने नाम के साथ अपनी पहचान भी बदल लेती है, ये उसे खुद पता नहीं चलता।

आइडियल बहू बनने की इसी होड़ में लड़कियां अब ब्राइडल ग्रूमिंग सेंटर का रुख़ कर रही हैं जहां उन्हें बेहतर बहू बनने के तौर-तरीके सिखाए जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में इस तरह के ब्राइडल ग्रूमिंग सेंटरों की तादाद में इज़ाफ़ा हुआ है और साथ ही यहां पहुंचने वाली महिलाओं की तादाद भी लगातार बढ़ रही है। रोज़ाना सैकड़ों लकड़ियां अपनी वास्तविक पहचान से समझौता कर आइडियल बहू बनने के इस ट्रेंड का हिस्सा बन रही हैं।

आइडियल बहू या खुद की पहचान, किसे चुनेगी मीरा?

पंजाब की रहने वाली मीरा की कहानी किसी भी दूसरी महिला से अलग नहीं है। एक हंसमुख लड़की मीरा, जिसे कबड्डी खेलना बहुत पसंद है और वो कबड्डी की डिस्ट्रिक्ट चैंपियन बनना चाहती है। लेकिन मीरा की इस हसरत से हटकर उसके माता-पिता, हर मां-बाप की तरह ही उसकी शादी एक अच्छे घर में कराना चाहते हैं जिसके लिए वो मीरा को एक ब्राइडल ग्रूमिंग सेंटर में भेजना चाहते हैं, ताकि वो एक ट्रॉफी वाइफ के सभी तौर-तरीके सीख ले और खुद को एक आइडियल बहू के तौर पर पेश कर सके। जिससे उसे एक अच्छा ससुराल मिल पाए।

कबड्डी की डिस्ट्रिक्ट चैंपियन बनने का ख़्वाब देखने वाली मीरा ब्राइडल ग्रूमिंग सेंटर जाना नहीं चाहती। मीरा ने खुद से सवाल किया कि ‘’आखिर ऐसा क्यों है कि मुझे मेरी वास्तविक पहचान के साथ अपनाया नहीं जा सकता‘’ और ‘’क्यों मैं एक बनावटी पहचान के साथ खुद को एक ट्रॉफी वाइफ की तरह परोसूं’’, इसी उलझन से गुज़रते हुए मीरा ने फैसला किया कि वो आइडियल बहू के इस ट्रेंड का हिस्सा नहीं बनेगी और सामाजिक ढर्रे को चुनौती देते हुए अपने वजूद के साथ समझौता नहीं करेगी।

अब सवाल ये उठता है कि अपने वजूद से समझौता न करने का फैसला लेने वाली मीरा किस तरह सामाजिक चलन को चुनौती देते हुए अपनी राह खुद बनाती है...और क्या कोई मीरा को उसकी वास्तविक पहचान के साथ अपनाएगा? या अपनी शादी के लिए मीरा कर लेगी अपनी पहचान के साथ समझौता.....देखिए मीरा की कहानी ‘’कलीरें’’ सिर्फ़ ZEE TV पर !


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