‘नारी को क्यों मर्द बनना जरूरी नहीं है’ इस रोचक अंदाज में बताएगी ये किताब
गायत्री और अपूर्वा बहुत दिनों बाद एक शादी समारोह में मिले। अपूर्वा ने जैसे ही अपनी सहेली को देखा, उसकी सुंदर साड़ी की तारीफ करनी शुरू कर दी।
गायत्री और अपूर्वा बहुत दिनों बाद एक शादी समारोह में मिले. अपूर्वा ने जैसे ही अपनी सहेली को देखा, उसकी सुंदर साड़ी की तारीफ करनी शुरू कर दी.
इस बात पर खुश होने के बजाय गायत्री शुरू हो गई फिल्मी अंदाज़ में ‘सफरिंग सीता’(कष्ट झेलती नारी) का किरदार निभाने.
‘अरे ये तो पुरानी साड़ी है. मेरी सास ने मुझे सारी साड़ियां पुरानी दी हैं ‘सेकंड हैंड’, लेकिन न ही मैंने कोई शिकायत की, न कोई नाटक.’
इसके बाद तो हर बात पर शिकायतों की एक लम्बी लिस्ट निकल पड़ी. अपूर्वा भला कितना टॉर्चर सहती, सो बहाना बनाकर वहां से खिसक ली.
ये एक छोटी-सी झलक है ‘अपूर्वा पुरोहित’ की क़िताब 'लेडी यू आर नॉट ए मैन- एडवेंचर्स ऑफ ए वुमन एट वर्क’की, जिसका हिंदी वर्जन है ‘नारी, मर्द बनना नहीं जरूरी!’
तीन भागों में बंटी ये क़िताब महिलाओं को अपने जीवन के हर क्षेत्र में, ‘स्वीकार करें, स्वयं ढलें और सफल बनें’, इस त्रिमुखी मन्त्र को अपनाकर सफलता पाने की राह दिखाती है.
इस क़िताब की सबसे खास बात ये है कि वर्किंग वुमन्स के लिए सेल्फ हेल्प बुक है, जिसमें ज़िंदगी के कई पहलुओं को इस मजेदार अंदाज़ में लिखा गया है, जिसे पढ़कर बड़ी से बड़ी परेशानी को भी आप मुस्कुराते हुए हैंडल कर सकती हैं.
आप खुद सोचिए, आज की ज़िंदगी में ऐसा कौन है, जिसे अपनों से शिकायत नहीं है या जिसके साथ कभी भी नाइंसाफ़ी नहीं हुई? जो हो गया आप उसे बदल नहीं सकते, बस स्वीकार कर सकते हैं और खुद को अपनी वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से ढाल सकते हैं.
बस, कुछ ऐसी ही बातों को रोचक अंदाज़ में बयां करती है ये क़िताब. इस क़िताब को पढ़ते वक्त आपको ये नहीं लगेगा कि कोई आप पर ज़बर्दस्ती का ज्ञान थोप रहा है बल्कि इस क़िताब के दिलचस्प किरदार और परिस्थितियां आपको अपने आसपास के ही महसूस होंगे. ऐसा लगेगा मानो आपकी खुद की ज़िंदगी के पन्ने हैं.
जैसे कोई आम कामकाजी महिला के सामने सुबह अपनी अधूरी नींद से उठते ही जंग जैसा माहौल होता है. नाश्ता बनाना, बच्चों को स्कूल भेजना, पति को ऑफिस रवाना करके खुद ऑफिस जाना. यही नहीं उसके बाद ऑफिस में शाम तक काम करना, अपने से अलग कई व्यक्तित्व को एक साथ झेलना, डेडलाइन पर काम करना वगैरह-वगैरह. इन सबके बाद भी घर जाकर फिर से घर संभालना.
ऐसे में कभी न कभी हर महिला के मन में ये ख्याल जरूर कौंधता होगा कि ‘मर्दों की ज़िंदगी कितनी आसान होती है न!’ लेकिन ये आधा सच है. आपको खुश रहने या अपनी ज़िंदगी आसान बनाने के लिए ‘मर्द बनने की जरूरत नहीं है’ बल्कि आप जैसी भी और जो भी हैं,खुद को स्वीकार करना होगा.
ज़िंदगी को तनावमुक्त जीने का एक मूलमंत्र ये भी है कि कोई भी बड़ी उपलब्धि तभी हासिल होती है जब आप सबसे पहले अपने जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करती हैं, उसके अनुसार अपने आप को ढालती हैं. इस श्रेष्ठता को हासिल करके आप शिखर छू सकती हैं.
ये क़िताब कामकाजी स्त्रियों से जुड़े कई सारे सवालों पर गौर करती है, जैसे अपराध भावना से जूझना, महिला-बॉस होकर मर्द कर्मचारियों की हैंडलिंग और अपनी कहानी की हीरोइन बनने से लेकर ऐसी बहुत-सी बातें बड़े ही दिलचस्प ढंग से बताई गई हैं,यानि ये आपके पारिवारिक जीवन और कॅरियर दोनों को एक साथ निभाने के गुर सिखाती है,बिना किसी समझौते के.
दिलचस्प बात ये है कि जीवन की गंभीर बातों को ये क़िताब व्यंगात्मक अंदाज़ में समझाकर पेश करती है और एक सन्देश भी छोड़ जाती है. सबसे बड़ी बात ये है कि ये क़िताब औरतों में आत्मविश्वास जगाएगी और उन्हें बताएगी कि क़ामयाब होने के लिए उन्हें मर्दों की नकल करने की कोई जरूरत नहीं है. यही नहीं मर्दों के लिए भी ये क़िताब रोचकता से भरी हुई है.
‘लेडी यू आर नॉट ए मैन' भारत के सभी जाने-माने बुक-स्टोर्स और वेबसाइट्स पर उपलब्ध है. अमेज़न पर घर बैठे इस लिंक पर https://t.co/Aulj7lRZkL?ssr=true क्लिक करके यह क़िताब मंगवाई जा सकती है.