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...जब महिला ने जज से कहा पैसा नहीं, चाहिए शौहर की रिहाई; हृदय परिवर्तन का कारण पूछा तो पत्नी ने बताई दिल की बात

पत्नी का पति के प्रति ह्दय परिवर्तन कैसे हुआ? यह जानने की उत्सुकता जज को हुई। उन्होंने महिला से कहा पूरी बात बताओ क्योंकि जिस दिन जेल भेजा जा रहा था उस दिन तो नहीं रोका था। इस पर महिला ने बताया कि जेल जाने के बाद पति को अक्ल आ गई है। पति ने जेल से रिश्तेदार के जरिए बुलावा भेजा था।

By Prem Shankar Edited By: Nitesh Srivastava Published: Thu, 18 Apr 2024 07:43 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2024 07:43 PM (IST)
तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। जागरण

प्रेम अवस्थी, जागरण (बाराबंकी)। पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दुर्ग नारायण सिंह गुरुवार दोपहर उस समय अचरज में पड़ गए, जब एक महिला अपने वकील के साथ पहुंची और शपथ पत्र देते कहा कि हुजूर अब उसे गुजारे भत्ते का पैसा नहीं शौहर की रिहाई चाहिए।

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पत्नी का पति के प्रति ह्दय परिवर्तन कैसे हुआ? यह जानने की उत्सुकता जज को भी हुई। उन्होंने महिला से कहा पूरी बात बताओ, क्योंकि जिस दिन जेल भेजा जा रहा था, उस दिन तो नहीं रोका था। इस पर महिला ने बताया कि जेल जाने के बाद पति को अक्ल आ गई है।

पति ने जेल से रिश्तेदार के जरिए बुलावा भेजा था, जब जेल में मिलने गई तो पति ने अपनी गलतियों के लिए माफी मांग ली है। अब हमें अपने साथ घर में रखने व मारपीट न करने का वायदा किया है। जज ने पूछा कि वायदे से मुकर गया तो क्या करोगी?

महिला ने कहा कि कोई बात नहीं, एक मौका और दे रहे हैं। आप मान जाइये। जेल से बाहर निकला दीजिए, शायद हमारी खुशियां वापस मिल जाएं। जज ने पत्नी के प्रार्थना पत्र पर विचार कर उसके पति की जेल से रिहाई के संबंध में आदेश जारी किए।

एक माह के लिए भेजा था जेल

गुजारे भत्ते की 18,864 रुपये पत्नी को अदा करने के आदेश का अनुपालन न करने पर पत्नी की शिकायत पर ही प्रधान न्यायाधीश ने चार अप्रैल को एक माह के लिए पति को जेल भेज दिया था, लेकिन पत्नी की ओर से दिए गए प्रार्थना पत्र पर जज ने निर्धारित अवधि के पहले यानि गुरुवार को रिहाई का आदेश दे दिया।

पारिवारिक न्यायालय में राज्य सरकार की ओर से नामित अधिवक्ता वीरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि पत्नी यदि गुजारे भत्ते की धनराशि नहीं लेना चाहे और अदालत पर उपस्थित होकर शपथ पत्र दे तो अदालत पति की रिहाई कर देती है, क्योंकि अदालत की मंशा पीड़ित पत्नी को न्याय दिलाने की होती है। इस मामले में भी अदालत ने पत्नी के हित को ध्यान में रखते हुए पति की रिहाई का आदेश दिया।


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