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पति या पत्नी के सहकर्मियों से एक दूसरे के खिलाफ अपमानजनक शिकायतें करना क्रूरता के बराबर: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने मानसिक यातना और पीड़ा सहने पर पति के पक्ष में तलाक का आदेश देते हुए कहा कि पेशेवर प्रतिष्ठा और वित्तीय भलाई को नुकसान पहुंचाने के इरादे से पति या पत्नी के कार्यालय में अधिकारी (नियोक्ता) से एक दूसरे के खिलाफ अपमानजनक शिकायतें करना क्रूरता के बराबर है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी शिकायतें करना आपसी सम्मान और सद्भावना की कमी को दर्शाता है

By Vineet Tripathi Edited By: Geetarjun Published: Thu, 18 Apr 2024 11:01 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2024 11:01 PM (IST)
पति या पत्नी के सहकर्मियों से एक दूसरे के खिलाफ अपमानजनक शिकायतें करना क्रूरता के बराबर: दिल्ली हाईकोर्ट

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मानसिक यातना और पीड़ा सहने पर पति के पक्ष में तलाक का आदेश देते हुए कहा कि पेशेवर प्रतिष्ठा और वित्तीय भलाई को नुकसान पहुंचाने के इरादे से पति या पत्नी के कार्यालय में अधिकारी (नियोक्ता) से एक दूसरे के खिलाफ अपमानजनक शिकायतें करना क्रूरता के बराबर है।

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न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसी शिकायतें करना आपसी सम्मान और सद्भावना की कमी को दर्शाता है, जो एक स्वस्थ विवाह के लिए महत्वपूर्ण है।

सहकर्मियों के सामने किया शर्मिंदा

अपीलकर्ता पति ने उसे तलाक देने से इनकार करने वाले पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उसने रिश्ते में गंभीर मानसिक यातना और पीड़ा सहन की है। उसने आरोप लगाया कि पत्नी ने सहकर्मियों के सामने उन्हें शर्मिंदगी और अपमानित करने के इरादे से उनके नियोक्ता को शिकायतें भेजीं।

पीठ ने कहा ऐसी शिकायतें पार्टियों के अलग होने के बाद की गई थीं, किसी भी तरह से पति-पत्नी को क्रूरता करने के अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता है।

2011 में हुई थी शादी

दोनों पक्षों के बीच जनवरी 2011 में हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार विवाह संपन्न हुआ और दोनों पक्ष सितंबर 2011 से अलग-अलग रह रहे थे। अदालत ने पति के इस आरोप पर भी गौर किया कि पत्नी ने अपने ससुर के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए एक संदेश भेजा था।

अदालत ने कहा कि पत्नी के आचरण से अपरिहार्य निष्कर्ष निकलता है कि उसके व्यवहार ने पति के मन में गंभीर चिंता पैदा कर दी, जिससे उसकी मानसिक शांति भंग हो गई और दोनों पक्षों के लिए अपने वैवाहिक संबंध को बनाए रखना अस्थिर हो गया।

पीठ ने कहा ऐसी घटनाएं वैवाहिक संबंधों में तनाव और अस्थिरता का माहौल पैदा करती हैं, जिससे दोनों पक्षों को भावनात्मक नुकसान होता है।

अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर करना और फिर उस पर अमल नहीं करना तलाक की कार्यवाही में देरी करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था। जिससे अपीलकर्ता पति को और अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।


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