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'दिल्ली सरकार की रुचि केवल सत्ता हथियाने में, जमीनी स्तर पर हालात बहुत खराब', दिल्ली हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता के विनियोग में है और जमीनी स्तर पर हालात बहुत खराब हैं। अदालत ने कहा कि एक अदालत के तौर पर किताबें वर्दी बांटना हमारा काम नहीं है। हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कोई अपने काम में असफल हो रहा है। दिल्ली सरकार की रूचि सिर्फ सत्ता हासिल करने में है।

By Vineet Tripathi Edited By: Sonu Suman Published: Sat, 27 Apr 2024 05:50 PM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2024 05:50 PM (IST)
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के कामकाज पर की कड़ी टिप्पणी।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। आबकारी घोटाला से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में जेल जाने के बाद भी मुख्यमंत्री बने रहने के अरविंद केजरीवाल के निर्णय के चलते बेपटरी हुई राष्ट्रीय राजधानी की व्यवस्था पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आड़े हाथ लिया है।

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परियोजनाओं में रुकावट और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के स्कूली बच्चों को किताबें, वर्दी की आपूर्ति नहीं होने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार व एमसीडी को आड़े हाथ लेते हुए जमकर फटकार लगाई है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा न देकर अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हित से ऊपर रखा है।

जमीनी स्तर पर हालात बहुत खराब हैं

अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता के विनियोग में है और जमीनी स्तर पर हालात बहुत खराब हैं। अदालत ने कहा कि एक अदालत के तौर पर किताबें, वर्दी बांटना हमारा काम नहीं है। हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कोई अपने काम में असफल हो रहा है। दिल्ली सरकार की रूचि सिर्फ सत्ता हासिल करने में है।

अदालत ने टिप्पणियां तब की जब गैर सरकारी संगठन सोशल जूरिस्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से कुछ अनुमोदन की आवश्यकता है और वह आबकारी नीति के संबंधित मनी लांड्रिंग मामले में हिरासत में हैं।

पाठ्यपुस्तकें और वर्दी न मिलने का उठाया मुद्दा

जवाब से नाखुश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने कहा कि मुझे नहीं पता कि आप (दिल्ली सरकार) कितनी शक्ति चाहते हैं, लेकिन समस्या यह है कि आप सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहे हैं। जनहित याचिका में एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को पाठ्य पुस्तकें, वर्दी समेत अन्य सामग्री नहीं मिलने का मुद्दा उठाया गया था।

मामले में मंगलवार यानी 23 अप्रैल को को हुई पिछली सुनवाई पर एमसीडी आयुक्त ने अदालत में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होकर सूचित किया था कि केवल स्थायी समिति के पास पांच करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंध देने की शक्ति है। पीठ ने तब कहा था कि यदि किसी कारण से स्थायी समिति का गठन नहीं किया जाता है, तो वित्तीय शक्ति दिल्ली सरकार द्वारा एक उपयुक्त प्राधिकारी को सौंपी जानी चाहिए।

दो कार्य दिवसों में आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश

अदालत ने इस पर अहम टिप्पणियां करते हुए सरकार को दो कार्य दिवसों में आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन सोशल जूरिस्ट की तरफ से पेश अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने तर्क दिया था कि एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले सात लाख छात्रों को कोई किताबें या स्टेशनरी नहीं दी गई है। इसमें से एक टिन शेड में भी चल रहा था, इसलिए बच्चे बेकार बैठे थे।

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि उन्हें शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज से निर्देश मिले हैं कि एमसीडी की स्थायी समिति की अनुपस्थिति में एक उपयुक्त प्राधिकारी को अधिक शक्तियां सौंपने के लिए मुख्यमंत्री की सहमति की आवश्यकता होगी जो वर्तमान में हिरासत में हैं।

में टिप्पणी करने के लिए बाध्य कर रहे हैं

अदालत ने कहा कि हम आपका बयान दर्ज करेंगे कि मुख्यमंत्री हिरासत में हैं इसलिए कुछ नहीं कर सकते। अगर यह उनकी पसंद है तो उन्हें शुभकामना। पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री अंदर हैं, इसलिए हम कोई फैसला नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि आप हमें टिप्पणी करने के लिए बाध्य कर रहे हैं। आप हमें यह सब कहने के अलावा कोई मौका नहीं दे रहे हैं।

पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री के नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि छात्रों को पाठ्यपुस्तकों के बिना अध्ययन करने की अनुमति दी जा सकती है। अदालत ने कहा कि यह दिल्ली सरकार की पसंद है कि मुख्यमंत्री के हिरासत में होने के बावजूद सरकार जारी रहेगी। अदालत ने टिप्पणी की कि यदि वह (सीएम) चाहते हैं कि प्रशासन पंगु हो जाए तो यह मुख्यमंत्री का व्यक्तिगत आह्वान है।

दिल्ली सरकार चाहती है तो हम सख्त टिप्पणी करेंगे

पीठ ने कहा कि आप अदालत को उस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं जिस पर अदालत नहीं जाना चाहती है। पीठ ने कहा कि विभिन्न जनहित याचिकाओं में जब भी यह मुद्दा सामने आया है तो अदालत ने हर बार यही कहा है कि यह कार्यपालिका का फैसला है, अगर दिल्ली सरकार चाहती है कि अदालत इस पर टिप्पणी करें, तो हम पूरी सख्ती के साथ करेंगे।

इसके जवाब में शादान फरासत ने कहा कि एमसीडी के पास स्थायी समिति नहीं होने का कारण यह है कि उपराज्यपाल ने अवैध रूप से एल्डरमेन की नियुक्ति की है और मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली सरकार के पास वैसे भी ज्यादा शक्तियां नहीं हैं।

छात्रों के स्कूल न जाने की सरकार को चिंता नहीं

इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि दिल्ली सरकार को छात्रों के स्कूल न जाने या पाठ्यपुस्तकें न होने की कोई चिंता नहीं है। पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार की रुचि केवल सत्ता में है और यह सत्ता का सर्वोच्च अहंकार है। साथ ही सरकार को चेतावनी दी कि अदालत की हिम्मत को कम मत आंकिए। आप हमारी शक्ति को कम आंक रहे हैं।

पीठ ने कहा कि मामले में दिल्ली सरकार का रुख इस बात की स्वीकारोक्ति है कि दिल्ली में चीजें बहुत खराब हैं और एमसीडी के तहत लगभग हर प्रमुख पहलू ठप पड़ चुके हैं। उक्त टिप्पणियाें के साथ पीठ ने जनहित याचिका पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। अदालत सोमवार को इस पर निर्णय सुनाएगी और सौरभ भारद्वाज का नाम और उनके द्वारा दिये गये निर्देश भी दर्ज करेगी।

दिल्ली सरकार को नहीं आम आदमी का ख्याल

सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा कि एमसीडी आयुक्त ऐसी स्थितियों में भी आवश्यक वित्तीय मंजूरी लेने के लिए स्वतंत्र हैं और एक उचित प्रस्ताव पारित किया जाएगा। इसके जवाब में पीठ ने कहा कि आप लोग अपनी समिति का चुनाव भी नहीं कर सकते और आप हमसे कह रहे हैं कि आप प्रस्ताव पारित करेंगे? क्या आप चाहते हैं कि हम सदन में जो हो रहा है उसका न्यायिक नोटिस लें? कैसे लोग एक-दूसरे को धक्का दे रहे हैं? इसमें कहा गया कि दिल्ली सरकार को आम आदमी का ख्याल नहीं है।

मेयर चाहेंगी, उनकी बच्चे ऐसी जगह पढ़ें जहां मेज टूटी हो

अदालत ने टिप्पणी की कि किताबों और दवाओं के वितरण से संबंधित कई परियोजनाएं बेशक रुकी हुई हैं। पीठ ने सवाल किया कि क्या आपके पास दिल नहीं है? क्या आप बच्चों के लिए महसूस नहीं करते? हमेें नहीं लगता कि आप इसमें से कुछ भी देख रहे हैं। मुझे लगता है कि आप सिर्फ घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। अदालत ने पूछा कि डेस्क और कुर्सियां टूटी हुई हैं, क्या कोई चाहेगा कि उनके बच्चे इस तरह से पढ़ें? क्या महापौर चाहेंगी कि उनके बच्चे ऐसी जगह पढ़ें जहां मेज टूटी हों।

नेतृत्व करने वालों को होना होगा उदार, ऐसा न होना दुखद

अदालत ने यह भी कहा कि बच्चों के मामले में और समय नहीं दिया जा सकता और अदालत से बार-बार अवसर देने की अपेक्षा न करें। अदालत ने टिप्पणी की कि नेतृत्व करने वाले लोगों को उदार होना होगा क्योंकि यह एक व्यक्ति के प्रभुत्व का मामला नहीं हो सकता है। हालांकि, यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि इस मामले में ऐसा नहीं हो रहा है।

अदालत की शक्ति व क्षमता को नहीं आंक सकते कम

पीठ ने दिल्ली सरकार से यह भी कहा कि वह न्यायिक आदेश पारित करने की अदालत की हिम्मत, शक्ति और क्षमता को कम नहीं आंके। यह भी कहा कि इस मुद्दे को तुरंत निपटाने की जरूरत है। बच्चों के पास नोटबुक, नोटपैड, किताबें और वर्दी नहीं हैं और वे टिन शेड में पढ़ाई कर रहे हैं। हमें नहीं लगता कि यह उचित है।

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