मृतक के साथ आखिरी बार देखे जाने के आधार पर नहीं ठहराया जा सकता दोषी, हत्या के 26 वर्ष पुराने मामले में दिल्ली HC ने को किया बरी
हत्या के मामले में दो व्यक्तियों को 26 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए उनकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर बरी कर दिया। अपीलकर्ताओं को बरी करते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं को केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उन्हें मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हत्या के मामले में दो व्यक्तियों को 26 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए उनकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर बरी कर दिया। अपीलकर्ताओं को बरी करते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं को केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उन्हें मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था।
अदालत ने कहा कि आरोपित और मृतक एक साथ काम कर रहे थे और अभियोजन पक्ष की ''लास्ट सीन थ्योरी" को संपूर्णता के साथ पूर्ववर्ती व बाद की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि अदालत का विचार है कि आखिरी बार एक साथ देखे जाने की परिस्थिति के आधार पर आरोपित को दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं होगा, जो पूरी तरह से साबित भी नहीं हुआ है।
यह टिप्पणी करते हुए अदालत ने अक्टूबर 2001 के ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ताओं की अपील स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता मृतक के साथ काम कर रहे थे, इसलिए उनका एक साथ रहना असामान्य नहीं कहा जा सकता।
मृतक का शव जुलाई 1997 में एक रेलवे ट्रैक पर पाया गया था और कुछ दिनों के बाद अपीलकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि मृतक की हत्या कर दी गई, क्योंकि उसे अपीलकर्ताओं में से एक के एक महिला के साथ अवैध संबंध के बारे में पता चला था।
अपीलकर्ताओं के आजीवन कारावास की सजा को वर्ष 2003 और वर्ष 2004 में हाई कोर्ट द्वारा निलंबित कर दिया गया था। दोनों प्रवासी मजदूर थे और निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहते थे।